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फूलों की होली: अक्षरधाम में श्री स्वामिनारायण होली मंगल मिलन
उत्सव में उपस्थित सभी ने भगवान स्वामिनारायण और गुणातीतानन्द स्वामीजी की मूर्तियों पर रंगों तथा फूलों से अपना स्नेह अर्पित किया

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दिल्ली स्थित अक्षरधाम मंदिर परिसर के विशाल उद्यान में “श्री स्वामिनारायण होली मंगल मिलन” का आयोजन हुआ। इस उत्सव हेतु प्रांगण की सजावट में रंग-बिरंगे पुष्पों, इंद्रधनुषी वन्दनवारों तथा रंगीन प्रकाशदीपों का प्रयोग किया गया था। भगवान स्वामिनारायण तथा उनके प्रथम अनुगामी गुणातीतानंद स्वामी जी महाराज की मूर्तियों को अलंकृत झूले (हिंडोले) में विराजमान किया गया थाI

बी.ए.पी.एस. अक्षरधाम संस्थान द्वारा इस प्रकार का भव्य आयोजन प्रत्येक वर्ष किया जाता है परंतु इस वर्ष यह समारोह अति विशेष था।

12000 श्रद्धालुओं से प्रांगण भरा हुआ था। जिसमें सभी वर्ग,आयु, जाति और व्यवसाय के लोग शामिल थे। गणमान्य अतिथियों में राजनीति, कला, साहित्य, चिकित्सा, विधि तथा आध्यात्मिक क्षेत्र के अग्रणी थे। संतों और धार्मिक गुरुओं की उपस्थिति ने इस सुअवसर को शोभायमान किया।

कार्यक्रम का प्रारंभ शाम पाँच बजे धुन प्रार्थना एवं कीर्तन गान से हुआ। पर्व, हिन्दू संस्कृति का गौरव है। आज की आधुनिक जीवन शैली में संस्कृति और संस्कार के अकाल से उत्पन्न होने वाली उपाधियों पर युवकों ने शिक्षाप्रद संवाद प्रस्तुत किया। रंग, नाटिका और संगीत की त्रिवेणी में जन-समुदाय मंत्रमुग्ध था। अक्षरधाम के प्रभारी संत पूज्य मुनिवत्सलदास स्वामी जी ने युगों से चले आ रहे होली पर्व के इतिहास पर प्रकाश डाला। साथ ही, उन्होंने भारतीय संस्कारों और मूल्यों के संरक्षण के लिए सत्संग को एकमात्र आधार बताया। संतो ने भारतीय इतिहास से सुमित्रा तथा सुनीति जैसी माताओं का उदाहरण देते हुए बताया की शिशुओं को सभी प्रकार के कुसंग से बचाने हेतु आध्यात्मिकता सत्संग से जोड़ने की आवश्यकता है। यदि संस्कार नहीं होंगे तो संतति और सम्पत्ति दोनो गवाने का समय आएगा। बी.ए.पी.एस. के वरिष्ठ संतों ने भगवान स्वामिनारायण तथा उनके अनुगामियों के समय के फूलदोलोत्सवों के रोचक प्रसंगों को साझा किया।

200 वर्षों से मनाया जा रहा यह परंपरागत उत्सव इस संप्रदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है I श्रीमद्भागवत गीता में उल्लेखित परब्रह्म और अक्षरब्रह्म के अस्तित्व का आज सभा में सभी को परिचय मिला और आज भी यही सिद्धांत वेदों का आधार हैI
उत्सव में उपस्थित सभी ने भगवान स्वामिनारायण और गुणातीतानन्द स्वामीजी की मूर्तियों पर रंगों तथा फूलों से अपना स्नेह अर्पित किया। समारोह का समापन भव्य आरती से हुआ जिसमें 12000 दीपकों की रोशनी ने सभा को दीप्त कियाI तत्पश्चात, महकते फूलों की प्रासादिक पंखुड़ियों से सभी प्लावित हुए। संतो ने भक्तों पर प्रासादिक आशीर्वाद के पुष्प का प्रोक्षण किया। सभी ने स्वादिष्ट और पारंपरिक व्यंजनों का महाप्रसाद ग्रहण किया।
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