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चांदनी चौक की गलियां “मीर तकी मीर” की याद में रौशन हुईं

जश्न-ए-अदब साहित्योत्सव ने खुदा-ए-सुखन मीर ताकी मीर की 300वीं जयंती (1723-1810) पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की

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ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी “मीर” Memories। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो। अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी मीर ने अपनी आँखों से देखा था।

जश्न-ए-अदब साहित्योत्सव ने भारत के सबसे प्रतिभाशाली शब्दकार, निर्विवादित रूप से महान उर्दु कवि और उर्दु भाषा को नया आयाम देने वाले मीर तकी मीर की 300वीं जयंती (1723-1810) के अवसर पर उन्हें श्रृद्धांजली अर्पित की। जश्न-ए-अदब साहित्योत्सव ने कवि के सम्मान में दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया है, कार्यक्रम का आयेाजन चांदनी चौंक (Chandni Chowk) में स्थित 100 वर्ष पुरानी एक हवेली में इस सप्ताहान्त 4 व 5 फरवरी शाम को किया जा रहा है, जिसके माध्यम से जश्न-ए-अदब 18वीं सदी के इस महान उर्दु कवि को सलाम करता है। कार्यक्रम का लाईव प्रसारण यू-ट्यूब चैनल पर किया जाएगा, इसके अलावा दर्शक जश्न-ए-अदब के फेसबुक पेज एवं इंस्टाग्राम हैण्डल पर कार्यक्रम की झलकियों का लुत्फ़ उठा सकते हैं।
दो दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरूआत अनस फैज़ी द्वारा ‘दिल्ली के ना थे कुचे’ दास्ताने-मीर के साथ हुई।
जिसके बाद कवि फ़रहात अहसास  (Farhat Ehsas)
एवं कवि अनस फैज़ी (Anas Faizi)के बीच एक विशेष चर्चा सत्र ‘मस्तानंद है मेरा फ़रमाया हुआ’ का आयोजन हुआ।

युवा नृत्यांगनाओं स्तुति एवं अनामिका ने मीर की कविता ‘इश्क़ मीर भारी पत्थर है’ पर कथक नृत्य द्वारा  प्रस्तुति पेश की।

‘हम हुए तुम हुए कि मीर हुए’ विषय पर आधारित सत्र दिन का मुख्य आकर्षण केन्द्र था, जहां जाने-माने दिग्गज रघुबीर यादव ने अपने अनोखे अंदाज़ में मीर तकी मीर की कविता प्रस्तुत की।

पहले दिन का समापन नियाज़ी बंधुओं- सुल्तान नियाज़ी एवं उस्मान नियाज़ी द्वारा शानदार कव्वाली के साथ हुआ, इस मौके पर विशेष सत्र ‘इश्क मशूक इश्क आशिक है’ का आयोजन भी हुआ।
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