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IGNCA WORKSHOP: आइए जाने कला एवं संस्कृति की रिपोर्टिंग कैसे करें

कार्यशाला में सभी जाने माने वक्ताओं ने बहुत अनौपचारिक तरीके से चर्चाएँ चलाईं।

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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (IGNCA) ने 10 से 12 फरवरी 2023 तक युवा कला-पत्रकारों, शोधकर्ताओं तथा अन्य कला-प्रेमियों के लिये ‘कला एवं संस्कृति की रिपोर्टिंग’ पर तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया।  दिल्ली में आयोजित इस कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष डॉ. संध्या पुरेचा, आई.जी.एन.सी.ए. के सदस्य-सचिव डॉ. सच्चिदानन्द जोशी तथा आई.जी.एन.सी.ए. के कलानिधि विभाग के प्रमुख और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक डॉ. रमेश चन्द्र गौड़ उपस्थित रहे।  डॉ. संध्या पुरेचा ने कला समीक्षा का प्राचीन सन्दर्भ देते हुए ब्रह्मा के सामने की गई प्रथम नाट्य-प्रस्तुति ‘अमृतमंथन’ पर भगवान शिव की टिप्पणी को प्रथम नाट्यसमीक्षा बताया।  उन्होंने कलाओं की रिपोर्टिंग करते हुए विषय के गहन अध्ययन पर जोर दिया।  

       डॉ. सच्चिदानन्द जोशी ने कहा कि रिपोर्टिंग करते समय घटना की शैली के विषय में पहले से अध्ययन करें। उन्होंने आगे कहा कि यदि आप नाटक के विषय में रिपोर्टिंग कर रहे हैं, तो आपको ड्रामा की विभिन्न शैलियों, प्रेक्षागृहों के प्रकार और अभिनय के विभिन्न आयामों के विषय में पता होना चाहिए। कलाओं के विषय में लिखते समय सभ्य व्यवहार और शिष्टाचार का निभाना आवश्यक होता है। 


डॉ. रमेश चन्द्र गौड़ ने कार्यशाला के उद्देश्यों और कला की रिपोर्टिंग के आज के परिदृश्य पर प्रकाश डाला। द्वितीय सत्र में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के संस्कृत और भारतीय अध्ययन के अध्यक्ष डॉ. सन्तोष कुमार शुक्ल ने ‘भारतीय ज्ञान परम्परा: कला और संस्कृति’ विषय पर अपने विचार रखे। अगले सत्र में लेखिका और कला-स्तम्भकार श्रीमती सुजाता प्रसाद भारतीय संस्कृति पर संवाद में आकार और रंगों की महत्ता विषय पर बोलीं। राधिका चन्द्रशेखर की लघु फिल्म ‘काशी गंगा विश्वाश्रय’ से दिन का समापन हुआ। 


दूसरे दिन 12 फरवरी को कार्यशाला का आरम्भ अनिल के. राजदान की फिल्म ‘कल्हण: कश्मीर का सूर्य’ के प्रदर्शन से हुआ।  पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर, प्रसिद्ध नृत्यांगना डॉ. सोनल मानसिंह, वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार विनोद भरद्वाज, लेखक, सांस्कृतिक संवाददाता एवं रंग समीक्षक अनिल गोयल और वरिष्ठ कवि एवं कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल ने प्रतिभागियों के साथ परिचर्चा में भाग लिया।
        पद्म भूषण से सम्मानित, राज्यसभा सदस्य सोनल मानसिंह ने ‘प्रस्तुतिकारक कलाओं और सांस्कृतिक रिपोर्टिंग’ विषय पर बोलते हुए कहा कि कलाओं के संवाददाताओं के लिये भी नाट्यशास्त्र का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। 
लेखक, सांस्कृतिक संवाददाता एवं रंग समीक्षक अनिल गोयल ने कलाओं और संस्कृति के विस्तृत आयामों की जानकारी दी। उन्होंने सांस्कृतिक रिपोर्टिंग को प्रस्तुतिकारक और चाक्षुष कलाओं के साथ-साथ साहित्य, वास्तु, पुरातत्व, इतिहास, भाषा इत्यादि के साथ भी जोड़ा।  प्रैस रिलीज पत्रकारिता, हिन्दी और अंग्रेजी के समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में कलाओं के लिये स्थान के पूर्ण अभाव, पेड न्यूज, कलाओं में बढ़ती कॉर्पोरेट संस्कृति के दुष्प्रभाव, तथा इस क्षेत्र में बढ़ते सेलेब्रिटी संस्कृति जैसे विषयों को उठाया। आज के समय में कला एवं संस्कृति की रिपोर्टिंग के बदलते परिदृश्य के नकारात्मक और सकारात्मक पक्षों, और इस बदलते परिदृश्य में राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उभरती नई संभावनाओं की भी जानकारी उन्होंने दी। 
 
प्रयाग शुक्ल ने आज के समय में कला लेखन की आवश्यकता के विषय पर बातचीत की, और अपनी लम्बी कला-संवाद यात्रा के रोचक विवरण प्रतिभागियों को दिये, जिन्हें सभी ने बहुत पसन्द किया.  उन्होंने इस बात को भी उभारा कि संस्कृति हमें अपनी समृद्ध विरासत के बारे में भी बताती है। 

तीसरे दिन 12 फरवरी को भारतीय जनसंचार संस्थान की प्रो. अनुभूति यादव, वरिष्ठ नाटककार और कला प्रशासक दया प्रकाश सिन्हा, पत्र सूचना कार्यालय की नानु भसीन, इंस्टिट्यूट फॉर गवर्नेंस, पॉलिसीज एंड पॉलिटिक्स (IGPP) के डॉ. मनीष तिवारी और कू की पब्लिक पालिसी और आउटरीच प्रभारी नियति वर्मा ने प्रतिभागियों के साथ चर्चा की। पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा ने कलाओं को दर्शकों के सामने उसकी समग्रता में प्रस्तुत करने पर बल दिया।  
 
      प्रो. गौड़ ने समापन सत्र में बोलते हुए कहा कि हमें सेलेब्रिटी संस्कृति से बचना चाहिये, और कलाओं का विशद अध्ययन अच्छी रिपोर्टिंग के लिये आवश्यक है।  तीसरे दिवस के प्रारम्भ में दीपक चतुर्वेदी निर्देशित फिल्म ‘काशी पवित्र भूगोल’ दिखाई गई। 

कार्यशाला में इन तीनों दिन सभी वक्ताओं ने बहुत अनौपचारिक तरीके से चर्चाएँ चलाईं
 सभी प्रतिभागी भी बहुत उत्साह के साथ प्रश्न व टिप्पणियाँ करते रहे, जिससे चर्चाओं के मध्य जीवन्तता बनी रही। 
एन.जी.एम.ए., दिल्ली की सहायक निदेशक (जनसंपर्क) डॉ. पी. हर्षा भार्गवी ने सभी वक्ताओं को सम्मानित किया। 
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