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वेद भारतीय संस्कृति और ज्ञान का अभिन्न हिस्सा -डॉ. मोहन भागवत

अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में श्रीपाद दामोदर सातवलेकर द्वारा वेदों के हिंदी भाष्य के तृतीय संस्करण के लोकार्पण के अवसर पर यह विचार प्रकट किए

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने वेदों को भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान की अद्वितीय निधि बताते हुए कहा कि वेद संपूर्ण ब्रह्माण्ड के मूल हैं और विश्व को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करते हैं। उन्होंने अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में श्रीपाद दामोदर सातवलेकर द्वारा वेदों के हिंदी भाष्य के तृतीय संस्करण के लोकार्पण के अवसर पर यह विचार प्रकट किए।
     डॉ. भागवत ने कहा कि वेद और भारत एक ही हैं और वे सनातन धर्म का आधार प्रदान करते हैं। वेदों में ज्ञान, विज्ञान, गणित, धर्म, चिकित्सा और संगीत का समृद्ध भंडार है। वेदों में अंकगणित, घन और घनमूल के सिद्धांतों का उल्लेख भी मिलता है। वेद मानवता को एकता और समग्र विश्व के कल्याण का मार्ग दिखाते हैं, और सनातन संस्कृति में जीवन जीने के लिए स्पर्धा की आवश्यकता नहीं होती।
     उन्होंने वेदों की अनन्तता और ज्ञान की सार्वभौमता को भी रेखांकित किया। डॉ. भागवत के अनुसार, वेदों के अध्ययन से मानवता को प्रकाश मिलता है और यह भारतीय संस्कृति की स्थायी धरोहर है।
     कार्यक्रम में महामंडलेश्वर पू स्वामी बालकानन्द गिरी जी महाराज ने भी अक्रांताओं द्वारा वेदों और गुरुकुलों को नष्ट करने के प्रयासों की चर्चा की और बताया कि वेदों की स्थिरता और अमरता ऋषियों की स्मृतियों में रची-बसी है।
      चारों वेदों के 10 खंडों में हुए हिंदी भाष्य का लोकार्पण संघ प्रमुख द्वारा सम्पन्न हुआ। विहिप के संरक्षक दिनेश चंद्र ने इस महत्वपूर्ण कार्य की विस्तृत जानकारी दी और बताया कि स्वाध्याय मंडल पारडी, गुजरात तथा लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के वेद अध्ययन केंद्र द्वारा किए गए 10 वर्षों के कठिन परिश्रम को मान्यता दी गई। कार्यक्रम में देशभर के धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों के पदाधिकारी और गणमान्य व्यक्तित्व उपस्थित थे।
-भूपिंदर सिंह
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