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वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य की साहित्यिक विरासत पर दो दिवसीय संगोष्ठी संपन्न

साहित्य जगत के इस अग्रणी व्यक्तित्व को समर्पित यह संगोष्ठी असमिया साहित्य के लिए प्रेरणा स्रोत बनी

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साहित्य अकादमी द्वारा असमिया साहित्य के महानायक और साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य की जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर आयोजित दो-दिवसीय संगोष्ठी का आज सफल समापन हुआ। इस अवसर पर उनके लेखन, संपादन, और असमिया साहित्य के योगदान पर गहन चर्चा की गई।
पहला सत्र: कथात्मक उपलब्धियों पर चर्चा
     आज के प्रथम सत्र की अध्यक्षता कुलधर सइकिया ने की। उन्होंने वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य के उपन्यासों और कथात्मक शैली की सराहना करते हुए कहा कि उनके साहित्य में सामाजिक संघर्ष और परिवेश का अद्भुत संयोजन देखने को मिलता है। उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘आई’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने इसे समाज की माँ की परिकल्पना बताया।
     विभाष चौधरी ने उनके लेखन पर रूसी साहित्यकारों टॉलस्टॉय और दोस्तोएव्स्की के प्रभाव की चर्चा की। उन्होंने कहा कि भट्टाचार्य जी ने इतिहास और वर्तमान का ऐसा मेल प्रस्तुत किया, जो साहित्यिक जगत में एक अनूठा प्रयोग है।
     निर्मल कांति भट्टाचार्जी ने उनकी लेखन यात्रा का विवरण देते हुए गाँधीवादी विचारधारा के उनके लेखन पर प्रभाव की बात कही। उन्होंने बताया कि भट्टाचार्य जी ने आम आदमी के संघर्षों को अपनी कहानियों और उपन्यासों में जीवंत किया। सत्यकाम बरठाकुर ने उनके साहित्य को मानवता का प्रतीक बताते हुए कहा कि उनके लेखन ने सत्य और नैतिकता को उच्च स्थान प्रदान किया।
दूसरा सत्र: संपादन और साहित्यिक नेतृत्व
     दूसरे सत्र की अध्यक्षता मनोज गोस्वामी ने की। इस सत्र में भट्टाचार्य जी के संपादकीय कार्य और असमिया साहित्य में उनके योगदान पर चर्चा हुई। मनोज गोस्वामी ने कहा कि उन्होंने अपनी पत्रिका ‘रामधेनु’ के माध्यम से युवा लेखकों की एक पूरी पीढ़ी को तैयार किया। अनुराधा शर्मा ने उनके संपादकीय दृष्टिकोण और युवा लेखकों को प्रोत्साहित करने की उनकी पहल की सराहना की।
     दीप सइकिया ने असमिया साहित्य में आधुनिकतावाद पर उनके योगदान को रेखांकित किया। वहीं, दिलीप चंदन ने उनके संपादकीय दृष्टिकोण और साहित्य में नए रुझानों की स्थापना पर विस्तार से चर्चा की।
कार्यक्रम का समापन
     इस संगोष्ठी का संचालन साहित्य अकादमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया। दो दिनों तक चले इस आयोजन ने वीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य की साहित्यिक विरासत और उनके योगदान को गहराई से समझने का अवसर दिया।
साहित्य जगत के इस अग्रणी व्यक्तित्व को समर्पित यह संगोष्ठी असमिया साहित्य के लिए प्रेरणा स्रोत बनी।
-भूपिंदर सिंह
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