मेरे अलफ़ाज़/कवितासाहित्य

भारतीय साहित्य में भाषाई एकता का गहरा संबंध है, जो इसे और अधिक पठनीय बनाता है -के. श्रीनिवास राव

हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं पर साहित्य अकादमी में हुआ महत्वपूर्ण परिसंवाद

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आज साहित्य अकादमी में ‘हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएँ’ विषयक एक महत्वपूर्ण परिसंवाद का आयोजन किया गया। इस परिसंवाद का उद्घाटन हिंदी पखवाड़े के अवसर पर किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में प्रख्यात हिंदी मीडिया विशेषज्ञ राहुल देव, विशिष्ट अतिथि के रूप में बंजारा लेखक आर. रमेश आर्य, और अध्यक्ष के रूप में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के पूर्व कुलपति राम मोहन पाठक ने भाग लिया।
     साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवास राव ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि हिंदी, भारत की बहुभाषी संस्कृति में संवाद की एक सशक्त धारा तैयार करती है। उन्होंने बताया कि भारतीय साहित्य में भाषाई एकता का गहरा संबंध है, जो इसे और अधिक पठनीय बनाता है। राहुल देव ने वर्तमान समय में सभी भारतीय भाषाओं के संकट की चर्चा की और संवाद को अनिवार्य बताया, जबकि आर. रमेश आर्य ने भाषा और संस्कृति के आपसी संबंधों पर जोर दिया।
     परिसंवाद का पहला सत्र प्रेमपाल शर्मा की अध्यक्षता में संपन्न हुआ, जिसमें विभिन्न भाषाओं के विशेषज्ञों ने हिंदी और अन्य भाषाओं के बीच के अंतर्संबंधों पर विचार रखे। सुधांशु त्रिवेदी, रजनी बाला, और एनी राय ने अपने-अपने भाषाओं में हिंदी की परंपराओं और समानताओं का उल्लेख किया, जबकि प्रेमपाल शर्मा ने मातृभाषाओं के अध्ययन पर जोर दिया।
     द्वितीय सत्र में पूरन चंद टंडन की अध्यक्षता में असमिया, गुजराती, मराठी और तेलुगु भाषाओं के विशेषज्ञों ने अपने विचार साझा किए। पापोरी गोस्वामी ने असम में हिंदी की पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए शंकरदेव का उदाहरण प्रस्तुत किया, वहीं मनोज माईणकर ने हिंदी-मराठी संबंधों की ऐतिहासिक गहराई को दर्शाया। वर्षा दास और ए. कृष्णा राव ने गुजराती और तेलुगु में हिंदी के प्रभाव पर अपने विचार रखे।
     कार्यक्रम में विमलेश कांति वर्मा, रीतारानी पालीवाल, और अन्य प्रमुख हिंदी विशेषज्ञों की उपस्थिति ने इस परिसंवाद को और भी महत्वपूर्ण बना दिया। पूरन चंद टंडन ने सम्मेलन के समापन पर कहा कि पिछले वर्षों में भारतीय भाषाओं के बीच सौहार्द और संवाद में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
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