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साहित्य अकादेमी में सुभाष चंद्र यादव का संवाद: मैथिली साहित्य और जीवन के अनुभवों पर चर्चा

कार्यक्रम के दौरान जब दर्शकों ने उनसे उनकी आगे की योजनाओं के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि वह अपने विशाल अनुभवों के आधार पर आत्मकथा लिखने की योजना बना रहे हैं

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नई दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले के अवसर पर शुक्रवार को साहित्य अकादेमी द्वारा प्रख्यात मैथिली लेखक सुभाष चंद्र यादव के साथ ‘लेखक से संवाद’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस संवाद सत्र में प्रतिष्ठित लेखक विद्यानंद झा ने उनसे बातचीत की।

मैथिली भाषा चुनने की प्रेरणा

अपने साहित्यिक सफर की शुरुआत के बारे में सुभाष चंद्र यादव ने बताया कि उनका पहला कहानी-संग्रह 1983 में प्रकाशित हुआ था। उन्होंने स्वीकार किया कि हिंदी प्राध्यापक होने के बावजूद उन्होंने लेखन के लिए मैथिली भाषा को चुना। इस निर्णय के पीछे उन्होंने सुपौल रेलवे स्टेशन पर मिलने वाली मैथिली पत्रिका ‘मिथिला मिहिर’ को प्रेरणा बताया। वह इस पत्रिका को देखकर सोचते थे कि कभी उनकी भी रचना इसमें प्रकाशित हो। साथ ही, रमानंद रेणु जैसे साहित्यकारों के प्रभाव से उन्होंने मैथिली में लिखना शुरू किया।

लेखन शैली और जीवन की सहजता

सुभाष चंद्र यादव के लेखन में किसी प्रकार के अतिनाटकीय तत्व नहीं होते, बल्कि वह जीवन के सहज और स्वाभाविक वर्णन को ही महत्व देते हैं। इस बारे में उन्होंने कहा, “जीवन जैसा है, वैसा ही मैं लिखना चाहता हूँ। उसमें बनावटीपन नहीं होना चाहिए।”

तीन चर्चित उपन्यास और उनके पात्र

अपने तीन प्रसिद्ध उपन्यासों के बारे में बताते हुए यादव जी ने कहा कि ये सभी वास्तविक पात्रों पर आधारित हैं। उन्होंने पात्रों के चयन के पीछे की वजह बताते हुए कहा, “इन पात्रों की समस्याएँ सार्वभौमिक हैं। हम सभी को अपने जीवन में इन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।”

लेखन में अवसाद और संघर्ष का प्रभाव

यादव जी के उपन्यासों में अवसाद की छाया देखी जाती है। इस पर उन्होंने कहा, “मेरा जीवन भी संघर्षों से भरा रहा है, इसलिए इसका प्रभाव मेरे लेखन पर भी पड़ता है।” उनका लेखन ग्रामीण जीवन के खिलंदड़पन (मौज-मस्ती और निश्छल हास्य) को सामने लाने की कोशिश करता है, जिससे पाठक उनके साहित्य से आसानी से जुड़ पाते हैं।

भविष्य की योजनाएँ

कार्यक्रम के दौरान जब दर्शकों ने उनसे उनकी आगे की योजनाओं के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि वह अपने विशाल अनुभवों के आधार पर आत्मकथा लिखने की योजना बना रहे हैं।

कार्यक्रम का संचालन

इस महत्वपूर्ण संवाद सत्र का संचालन साहित्य अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया। कार्यक्रम में साहित्य प्रेमियों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही, जिन्होंने लेखक से सीधे संवाद कर उनके विचारों और लेखन प्रक्रिया को समझने का अवसर प्राप्त किया।

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