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ठाकुर प्रसाद सिंह की जन्मशतवार्षिकी पर साहित्य अकादमी का विशेष कार्यक्रम

साहित्य मंच कार्यक्रम में राधेश्याम बंधु, जगदीश व्योम और रमा सिंह ने अपने-अपने आलेख प्रस्तुत किए  

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साहित्य अकादमी द्वारा आज प्रसिद्ध गीतकार और लेखक ठाकुर प्रसाद सिंह की जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर एक विशेष साहित्य मंच कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर गहन चर्चा की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात गीतकार राजेंद्र गौतम ने की, जबकि राधेश्याम बंधु, जगदीश व्योम और रमा सिंह ने अपने-अपने आलेख प्रस्तुत किए।

राजेंद्र गौतम ने अपने अध्यक्षीय भाषण में ठाकुर प्रसाद सिंह के गीतों को “अनुभवजनित भाषा के परिचायक” और “अमूल्य” बताते हुए कहा कि उनके गीतों में रंगों से जुड़ी विश्लेषणों की बहुलता आश्चर्यचकित करती है। उन्होंने आगे कहा कि इन गीतों में न केवल सांस्कृतिक संदर्भ है, बल्कि उनपर मंडराने वाले संकटों का भी उल्लेख है, जो कभी-कभी अनाम, अज्ञात संथाल युवती के स्वकथन और संवाद के समान प्रतीत होते हैं।

जगदीश व्योम ने अपने वक्तव्य में ठाकुर प्रसाद सिंह के गीतों को लोकजीवन की सकारात्मकता से भरपूर बताया। उन्होंने उनके संग्रह “वंशी और माँदल” पर चर्चा करते हुए संथाल और मुंडा जनजातियों के परिवेश के प्रभाव को रेखांकित किया और कहा कि इन गीतों में आदिवासी जीवन की संवेदनाओं को सहजता से पकड़ने का प्रयास किया गया है।

राधेश्याम बंधु ने ठाकुर प्रसाद सिंह के संपूर्ण व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी कविताओं में आदिवासी जीवन के अभावों और त्रासद सत्य को समाहित किया गया बताया। उन्होंने अज्ञेय के हवाले से ठाकुर प्रसाद सिंह के गीतों की उत्कृष्टता का भी उदाहरण दिया।

रमा सिंह ने ठाकुर प्रसाद सिंह के प्रबंध काव्य “महामानव” पर अपना वक्तव्य दिया, जिसमें उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी पर 21 वर्ष की अवस्था में लिखा गया यह प्रबंध काव्य अपनी सरल और सहज भाषा में गांधीजी के जीवन और संघर्षों को प्रस्तुत करता है।

अकादमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए ठाकुर प्रसाद सिंह के उपन्यास “कुब्जा सुंदरी” और “सात घरों का गाँव” पर भी संक्षिप्त टिप्पणी की। उन्होंने बताया कि इन उपन्यासों में आदिवासी समुदायों के जीवन का सजीव चित्रण है, जो समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करता है।

यह कार्यक्रम ठाकुर प्रसाद सिंह के साहित्यिक योगदान को सम्मानित करने का एक अहम प्रयास था, जो उनके गीतों और रचनाओं के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करता है।

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