भाई बहिन के पावनप्रेम का पर्व है “रक्षाबंधन”
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रक्षाबंधन यानि राखी का त्योहार भाई और बहिन दोनों के लिए शुभ का त्योहार है। इसे हम जितना प्रेम और उल्लास के साथ मनाएँ, जीवन में उतनी ही खुशियाँ बटोर सकते हैं। इस दिन का इंतजार हर भाई और बहिन को होता है। भाई-बहिन के प्रेम, नोंकझोक, उपहार और मिठाई का पर्व है यह। यह त्योहार श्रावण मास के अंतिम दिन यानि पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। आइए जानें, इस त्योहार से जुड़ी कुछ खास बातें:
आरती की थाली सजाकर शुभ मुहूर्त में ही राखी बाँधे
रक्षाबंधन के दिन बहिनों को सबसे पहले थाली सजानी चाहिए। इस थाली में अक्षत, कुमकुम, दीपक और राखी आदि रखें। शुभ मुहूर्त में बहिन भाई को राखी बाँधे। भाई के मस्तक पर तिलक करते हुए दाहिने हाथ की कलाई में राखी बाँधे। भाई की आरती उतारें तथा उन्हें मिठाई खिलाएँ। भाई अपनी बहिन को कुछ न कुछ उपहार अवश्य दें। यदि भाई विवाहित है तो भाभी को भी राखी अर्थात लुंबा राखी बाँधी जाती है। भतीजा-भतीजी हैं तो उनको राखी और फैंसी ब्रेसलेट आदि बाँध सकते हैं।
विश्वास से जुड़ा है रक्षाबंधन का त्योहार
आपने देखा होगा कि पक्षी जगत में पक्षी अपने पंखों से अंडों का सेवन-पोषण करता है। मछली अपनी आँखों से अपने अंडे को पोषण करती है और कछुआ अपने मन से अपने अंडे का पोषण करता है। ठीक इसी प्रकार रक्षाबंधन में जब एक बहिन, भाई को राखी बाँधती है तो उसमें बहिन का विश्वास जुड़ा होता है कि मेरे भाई की सदैव रक्षा हो और भगवान की कृपा से उसकी हर कामना पूर्ण होती है।
राखी बाँधते समय भाई का मुख पूर्व दिशा में हो
जब भी बहिन अपने भाई को राखी बाँधे तो ध्यान रखें कि राखी कभी भी खड़े होकर नहीं बाँधेंगे। भाई को सामने बैठाकर ही राखी बाँधे और भाई इस तरह बैठे कि उसका मुख पूर्व दिशा की ओर हो और बहिन का मुख पश्चिम की ओर।
राखी बाँधते समय मस्तक पर तिलक करते हुए बोलें यह मंत्र
राखी बाँधते समय मंत्र बोलने का भी विधान है। जब बहिन भाई को राखी बाँधती है, तो उससे पहले मस्तक पर तिलक करते हुए एक बहुत सुंदर श्लोक शास्त्रों के अनुसार बोलना चाहिएः
ओम् स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्व-वेदाः
स्वस्ति नस्तार्क्ष्योअरिष्ट नेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।
यह कहकर बहिन भाई के मस्तक पर तिलक करे। इसके अतिरिक्त ‘ओम् जय श्रीकृष्ण’ मंत्र भी बोल सकते हैं।
कलाई पर राखी बाँधते समय बोलें रक्षाबंधन मंत्र
जब राखी बाँधनी हो तो पुराण में उसके लिए यह मंत्र लिखा हैः-
येन बद्धो बलि राजा, दानवेंद्रो महाबलः तेन त्वां प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचलः।
ऐसा कहकर बहिन अपने भाई को राखी बाँधे और इससे भाई की सदैव रक्षा होती है।
👇आइए आपको रक्षाबंधन से जुड़े कुछ प्राचीन एवं आधुनिक युग के कथा-किस्सों के बारे में बताएँ 👇
आदि युग में प्रथम राखी एक पत्नी ने अपने पति को बाँधी
भविष्य पुराण में एक बात कही गई है कि इस संसार में प्रथम राखी एक पत्नी ने अपने पति को बाँधी थी। देवराज इंद्र जब युद्ध के लिए जा रहे थे तो उनकी पत्नी शची ने श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को उनको रक्षाबंधन की राखी यानि रक्षासूत्र बाँधा था। इससे इंद्रदेव विजयी हुए थे। और तब से ये पर्व मनाया जाने लगा।
द्वापर युग में एक माँ ने अपने पुत्र को राखी बाँधी
समय आगे बीतता गया। फिर एक पत्नी ने पति को राखी बाँधना बंद किया तो एक माँ अपने बेटे को राखी बाँधने लगी। द्वापर युग में माता कुंता ने अभिमन्यु को राखी बाँधी थी। कुंता की राखी जब तक अभिमन्यु के हाथ में थी, तब तक अभिमन्यु को कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया था। वो तो राखी टूटी और अभिमन्यु फँसा। तो राखी में यह असीम शक्ति होती है।
कलियुग में बहिन द्वारा भाई को राखी बाँधने की परंपरा आरंभ हुई
समय बीता हमारे आचार्यों और ऋषियों ने देश, काल, पात्र को देखकर फिर ये निर्णय किया कि एक बहिन अपने भाई को राखी बाँधेगी। कलियुग में रक्षाबंधन के दिन बहिन अपने भाई को राखी बाँधती है और भाई सदैव उसकी रक्षा का प्रण लेता है।
रक्षाबंधन के बहाने ससुराल से बहिन के मायके आने का रिवाज़
रक्षाबंधन के बहाने बहिन अपने ससुराल से मायके आती है भाई को राखी बाँधने के लिए। हरियाली तीज से बहिन आ जाती है। कुछ दिन मायके में रहकर रक्षाबंधन करके फिर चली जाती है। हालाँकि आज अधिकांश महिलाएँ कामकाजी हैं और फिर फ्लैट संस्कृति के कारण घर भी पहले जैसे बड़े नहीं रह गए हैं। अतः इस रिवाज़ में थोड़ा बदलाव आ गया है और बहिन रक्षाबंधन के दिन ही मायके आती है और भाई को राखी बाँधकर चली जाती है। जो भाई-बहिन दूर रहने के कारण एक-दूसरे से नहीं मिल पाते हैं, वे सोशल मीडिया के जमाने में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस पर्व की रस्म को अदा करते हैं। बहिन की तरफ से राखी, रोली-चावल व मिठाई का प्रतीक चिह्न् और राखी कार्ड डाक के जरिए भेज दिया जाता है और बहिनों को उपहार भी ई-अकाउंट या कूरियर के जरिए उन्हें मिल जाता है।
रिश्तों की डोरी को मजबूत कर दिलों में प्यार बनाए रखें
माना कि आजकल दूर-देश में नौकरी के स्थानांतरण की मजबूरी ने रिश्तों को दूर कर दिया है, पर रक्षाबंधन के इस अवसर पर जो भी हमारी परंपराएँ हैं, उनका निर्वाह करते हुए प्रेम के इस धागे को मजबूती प्रदान करें और दिलों में प्यार बनाए रखें। पंजाब से सुरिंदर कौर कहती हैं कि मेरा भाई दिल्ली में रहता है। हालाँकि दिल्ली दूर नहीं फिर भी हर साल जाकर राखी बाँधना मुश्किल हो जाता है। इसलिए अपने हाथों से उसे चिट्ठी लिखकर उसमें अपना प्यार और आशीर्वाद लपेटकर राखी के साथ पोस्ट कर देती हूँ। भाई का राखी के दिन फोन आ जाता है, उससे बात कर दिल को तसल्ली मिलती है और उसकी लंबी उम्र के लिए दिल से हजारों दुआएँ निकलती हैं।
गाजियाबाद निवासी गोगी कहती हैं कि मेरा भाई अनुज बेंगलुरु में अपने परिवार के साथ रहता है। पिछले 15 सालों में ऐसा मौका बहुत कम आया है कि हमने राखी का पर्व एकसाथ मनाया हो। पर मेरा मानना है कि प्रेम व रिश्तों को दूरियों से नहीं नापा जा सकता। वह मुझसे छोटा है पर उसने हमेशा बड़े भाई की तरह अपना फर्ज निभाया है। कठिन समय में एक रक्षक की तरह मेरी रक्षा की है। मैं समय से ही पहले ही भाई, भाभी (नेहा) व अपने दोनों भतीजों (ऋषभ व श्रेयांस) की राखी पोस्ट कर देती हूँ और भाई की उन्नति, लंबी आयु व परिवार की समृद्धि के लिए शुभकामना करती हूँ।
कोविड -19 के दौरान नौकरी गंवाने वाली महिलाओं द्वारा स्वयं सहायता समूह द्वारा बनाई गई राखी। “उम्मीद” डीएम कार्यालय नई दिल्ली जिला द्वारा एक पहल
इस तरह भाई बहिन के आपसी रिश्ते और प्रेम का यह पावन पर्व बरसों से यूँ ही हमारे जीवन में ढेरों उमंगों के साथ आता है और रिश्तों की ढीली पड़ती इस डोर को और भी मजबूत करके चला जाता है।
प्रस्तुति: वर्षिका