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Heatwave: थम नहीं रहा देश में बढ़ती गर्मी का कहर -ज्ञानेन्द्र रावत

ग्लोबल वार्मिंग का कहर: बढ़ता तापमान, गिरती ज़िंदगियां

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आजकल भीषण गर्मी के कहर और लू की भयावहता से सर्वत्र त्राहि- त्राहि मची है। गर्मी ने सारा जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। इस भीषण गर्मी के चलते जहां लोग हाय-हाय कर रहे हैं, वहीं हजारों-लाखों लोग गर्मी जनित बीमारियों की चपेट में आकर मौत के मुंह में जाने को मजबूर हैं। मैदान से लेकर पहाड़ तक तेज गर्मी से झुलस रहे हैं। हालत यह है कि दिन के साथ रातें भी गर्म हैं। रात में भी गर्मी से चैन नहीं मिल रहा है। लू जिसे हीटवेव भी कहते हैं, उसकी तीव्रता और घातकता में दिन-ब-दिन तेजी से बढ़ोतरी हो रही है जिससे हर साल दुनिया भर में 1.53 लाख से ज्यादा लोग अनचाहे मौत के मुंह में चले जाते हैं। आईपीई ग्लोबल और इसरो इंडिया के अध्ययन की मानें अगले पांच सालो में यानी 2030 तक देश के दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, सूरत, ठाणे, भुवनेश्वर, हैदराबाद और पटना जैसे शहरों में लू के दिन दोगुने हो जायेंगे। यही नहीं देश के 69 फीसदी तटीय जिले 2030 तक जून से लेकर सितम्बर के लम्बे समय तक भीषण गर्मी की मार झेलेंगे। मौजूदा समय में देश की राजधानी दिल्ली के ज्यादातर हिस्से पिछले पांच दिनों से भट्टी की तरह तप रहे हैं। दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान, पंजाब,हिमाचल, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, ओडिसा, मेघालय और मणिपुर आदि राज्यों के 84 फीसदी जिले चरम लू जैसी स्थिति की चपेट में हैं। उत्तर प्रदेश का एक ही तिहाई हिस्सा यानी तकरीबन 24  जिले भीषण गर्मी से झुलस रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली में जून 1945 में अधिकतम पारा 46.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था लेकिन अब यहां पारा 45 के पार है लेकिन गर्मी की तपिश की मार 54 डिग्री सेल्सियस जैसी है। दिनभर सभी जगहों पर सन्नाटे जैसे हालात दिखे। दिल्ली में आज एनसीआर की हालत कमोबेश दिल्ली जैसी ही है। राजस्थान का ग़ंगानगर  जिला और पंजाब का बठिंडा जिला 48 को पार कर गया है। पंजाब के अमृतसर और लुधियाना में पारा 45 के करीब पहुंच गया है। चंडीगढ़, गुरदासपुर, पटियाला और फरीदकोट में पारा 44 डिग्री सेल्सियस,हिमाचल के ऊना, कुल्लू, बिलासपुर, कांगड़ा व मंडी जिले 43.5 डिग्री तापमान के चलते लू के थपेडो़ं की मार से तप रहे हैं। हिमाचल के छह जिले हाई अलर्ट पर हैं। जम्मू के छह जिलों सांबा, जम्मू, कठुआ, रामबन, ऊधमपुर और रियासी भीषण गर्मी से झुलस रहे हैं।
      देश के उत्तर, मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों में भीषण गर्मी और लू से होने वाली मौतों को रोकने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एन एच आर सी ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा भीषण गर्मी और लू के कारण लोगों की मौतों को लेकर जारी रिपोर्ट पर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, दिल्ली समेत 11 राज्यों को कमजोर वर्गों खासकर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों, बाहरी कामगारों, बुजुर्गों, बच्चों और बेघर लोगों की सुरक्षा के लिए तत्काल समुचित एवं एहतियाती कदम उठाने के निर्देश दिए हैं जो पर्याप्त आश्रय और संसाधनों की कमी के कारण जोखिम में हैं। अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार बीते 22 महीनों में से 21 महीने धरती का तापमान पूर्व औद्योगिक काल वर्ष 1850  से 1900 तक के औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है। जबकि 2024 से मई 2025 की अवधि में वर्ष 1850- 1900 बेंचमार्क की तुलना में धरती 1.57 डिग्री सेल्सियस गर्म रही। तो असल में धरती का तापमान जिस तेजी से बढ़ रहा है वह समूची दुनिया के लिए ख़तरनाक संकेत है। यह भी कि तापमान में बढ़ोतरी नित नए-नये कीर्तिमान बना रही है। बीते दस सालों ने तो धरती के सर्वाधिक गर्म होने का रिकार्ड कायम किया है। फिर यह  कि साल दर साल तापमान में बढ़ोतरी के रिकार्ड ध्वस्त हो रहे हैं। चिंता इस बात की है कि भविष्य में इस पर अंकुश की कोई उम्मीद नहीं दिखाई देती। कारण तापमान को नियंत्रित करने के  सारे प्रयासों का अभी तक नाकाम साबित होना है। दुनिया के शोध और अध्ययन भी इसका खुलासा करते हैं कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी के बिना बेतहाशा बढ़ती गर्मी पर अंकुश की फिलहाल उम्मीद ही बेमानी है। मौसम विज्ञान विभाग ने तो लोगों को  सतर्क रहने, गर्मी से बचने और शरीर में पानी की कमी होने से बचने की सलाह दी है। जरूरी हो तभी बाहर निकलें और मुंह पर कपड़ा बांधें ताकि लू ना लगे। डाक्टर दिन में कम से कम आठ से दस गिलास पानी पीने की सलाह दे रहे हैं। उनके अनुसार जब शरीर का तापमान 104 फारेनहाइट यानी 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर चला जाता है तो शरीर बाहर की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाता है। खासतौर से ऐसे हालात में बुजुर्गों, शिशुओं,बाहर काम करने वाले लोगों, मानसिक रोगियो,मोटे लोगों, शुगर के रोगी,खराब रक्त संचार वाले व अत्याधिक दवा लेने वाले लोगों को विशेष रूप से सावधान रहने की ज़रूरत है। ऐसे लोग हीट स्ट्रोक के लिए सबसे ज्यादा संवेदनशील होते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि यह भीषण गर्मी सिर्फ थकान और चक्कर आने तक ही सीमित नहीं है ,इससे किडनी फेल होने का खतरा भी बढ़ रहा है। डाक्टरों की मानें तो गर्मी में लापरवाही जानलेवा हो सकती है।खासकर शरीर में अगर पानी और इलैक्ट्रॉलाइट्स की कमी हो जाये। हर साल गर्मियों में अचानक किडनी फेल होने यानी एक्यूट किडनी इंजरी के मामले बढ़ जाते हैं और अधिकांश मामलों में डायलिसिस तक की जरूरत पड़ जाती है। गर्मी में लू के दौरान मधुमेह के रोगियों के लिए खतरा बढ़ जाता है। लू न केवल तबियत बिगाड़ सकती है बल्कि हल्की सी लापरवाही जानलेवा भी हो सकती है। यह कहना है नयी दिल्ली स्थित एम्स के हार्मोन विभाग के प्रोफेसर डाक्टर राजेश खड़गावत का। उनके अनुसार मधुमेह के मरीजों में आटोनामिक न्यूरोपैथी के कारण पसीना कम निकलता है और शरीर का तापमान नियंत्रित नहीं हो पाता है। इसके कारण लू लगने की गंभीर स्थितियां पैदा हो सकती हैं। और यदि रोगी असामान्य तरीके से मोटा है तो इस जोखिम को और बढ़ा देता है। डा० खड़गावत के मुताबिक भारत, श्रीलंका और सेंट्रल अमेरिका जैसे इलाकों में गर्मी के चलते क्रानिक किडनी के मामले काफी बढे़ हैं। यही नहीं गर्मी की वजह से मौसम में पानी की कमी से पथरी,यूरिनल इनफैक्शन और डायबिटिक क्रीटोएसिडोसिस जैसी स्थिति का खतरा बढ़ जाता है। यदि इस बारे में जर्नल इनवायरमेंट ल रिसर्च में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक लू के दौरान मधुमेह के मरीजों में मौत का खतरा लगभग 18 फीसदी और बीमार होने का खतरा 10 फीसदी तक बढ़ जाता है। साउथ एशियन ऐसोसिएशन फैडरेशन आफ एंडोक्राइन सोसाइटी के डाक्टरों ने कहा है कि यदि लगातार 10 दिन या उससे ज्यादा समय तक तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा रहता है तो मधुमेह के रोगियों को खतरा काफी बढ़ जाता है।
    बर्लिन स्थित मर्केटर रिसर्च इंस्टीट्यूट इन ग्लोबल कामंस एण्ड क्लाइमेट चेंज का अध्ययन तो काफी पहले ही यह संकेत दे चुका है कि आने वाले दिनों में धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के प्रयास बेहद कठिन हैं। तापमान का इस तरह बढ़ना तब तक जारी रहेगा जब तक कि हम ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी नहीं करते। वैस्टर्न आस्ट्रेलिया यूनीवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक धरती 1.7 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो चुकी है। यदि तापमान में गिरावट नहीं हुयी तो यह ग्रह किस दिशा में जायेगा,यह कहना बहुत मुश्किल है। धरती के तापमान में बढ़ोतरी के कारणों में ग्लोबल वार्मिग एक कारण है ही, अलनीनो भी एक बड़ा कारण है। इसके साथ ग्रीन हाउस गैसों, कार्बन डाइऑक्साइड का सतत उत्सर्जन, सल्फर डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा, वनों के तेजी से होते विनाश, कार्बन फ्लोरो कार्बन गैसों का सतत उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन का दहन आदि की भी अहम भूमिका है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता।
     अमेरिका की पर्यावरण संस्था ग्लोबल विटनेस और कोलंबिया विश्वविद्यालय के विज्ञानियों के  मुताबिक सदी के अंत तक अत्याधिक गर्मी से 1.5 करोड़ लोगों की मौत हो जायेगी। पिछले कुछ वर्षो में हीटवेव ने दुनिया के हर महाद्वीप को प्रभावित किया है। इससे जंगल में आग लगने से हजारों लोगों की जान चली गयी है। वहीं योरोप में 60 हजार से अधिक लोगों की जान चली गयी। दुनिया के जलवायु विशेषज्ञों के सर्वे की मानें तो‌ वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ेगा। ऐसा होने पर बाढ़ आयेगी, विनाशकारी गर्मी बढे़गी और भयंकर तूफ़ान आयेंगे। इस बारे में फ्रांस के आईडीडीआई नीति अनुसंधान संस्थान के डाo हेनरी वाइसमैन की मानें तो तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने पर हीटवेव और तूफ़ान की तीव्रता में तेजी आयेगी। अगर तापमान तीन डिग्री तक पहुंचता है तो दुनिया के कई शहर समुद्र में डूब जायेंगे। समुद्र में गर्मी का भंडार भी तेजी से बढ़ रहा है। इससे चक्रवात और भारी वर्षा की घटनाएं बढ़ेंगीं। समुद्र का पानी असामान्य रूप से  गर्म होगा। इससे वायुमंडल गर्म होगा। समुद्री जैव विविधता और मछलियों पर खतरा बढे़गा। समुद्र के अमलीकरण में तेजी आयेगी। इससे मूंगे की चट्टानों, खोल वाले जीवों सहित समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ेगा और बड़े पैमाने पर जीवों के आवास का खात्मा हो जायेगा।
      पृथ्वी आयोग और नानजिंग यूनीवर्सिटी के सहयोग से यूनिवर्सिटी आफ एक्सेटर इंस्टीट्यूट फार ग्लोबल सिस्टम यूके के शोध में खुलासा हुआ है कि बढ़ती गर्मी के कारण दुनिया में दो अरब तथा भारत में साठ करोड़ लोगों पर खतरा मंडरा रहा है। समूची दुनिया की 22 से 39 फीसदी आबादी गर्मी के दुष्प्रभाव झेलेगी। यदि तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होती है तो अत्याधिक गर्मी के संपर्क में आने से भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। जबकि 6 करोड़ लोग पहले ही खतरनाक गर्मी के संपर्क में हैं। उस स्थिति में यह आंकड़ा काफी बढ़ जायेगा। अगले दशकों में करोड़ों लोग इतने अधिक तापमान का सामना करेंगे जो अभी तक केवल सहारा जैसे गर्म मरुस्थल में अनुभव किया जाता रहा है । इस दशक के अंत तक 29 डिग्री सेल्सियस से ऊपर औसत वार्षिक तापमान पहुंच जायेगा। उस समय तकरीब दो अरब लोगों को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ेगा। इससे हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क और गुर्दे के साथ  दिमाग और हार्मोनल प्रणाली भी प्रभावित हो सकती है। यह समय पूर्व मृत्यु और विकलांगता का कारण हो सकता है। जबकि अत्याधिक तापमान के कारण हर साल 50 लाख से ज़्यादा लोग अनचाहे मौत के मुंह में चले जाते हैं। तापमान में बढ़ोतरी के चलते वाष्पीकरण की दर में वृद्धि होने और इससे मिट्टी की नमी कम होने से कई क्षेत्र सूखे का सामना करेंगे। नतीजतन फसलों की पैदावार में कमी आने से खाद्य असुरक्षा, गरीबी, बेरोजगारी और बाढ़ का खतरा बढ़ेगा। जलाशयों में पानी का भंडारण कम होने और भूजल का स्तर गिरते जाने से जल संकट गहरायेगा। इसलिए जरूरी है कि हम सतर्क रहें, सादा जीवन जियें और इस हेतु दूसरों को प्रेरित करें।‌ अधिकाधिक वृक्षारोपण करें, प्लास्टिक का कम से कम प्रयोग करें। यह जान लें कि प्लास्टिक का उत्पादन नहीं घटा तो तापमान और बढ़ेगा। अक्षय ऊर्जा को प्रमुखता देनी होगी और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना होगा। सबसे बड़ी बात कि हमें प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करना होगा। उसकी रक्षा जीवन का ध्येय बनाना होगा और प्रकृति प्रदत्त संसाधनों की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहना होगा। तभी धरती बची रह पायेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।)
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