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निर्जला एकादशी व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा बनी रहती है

इस व्रत का आरंभ एकादशी के सूर्योदया से निर्जला रहने के साथ होता है और इसका समापन द्वादशी को सूर्योदय तक उसी अवस्था में रह कर किया जाता है  

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हिन्दू धर्म में एकादशी का बहुत महत्व है। लेकिन निर्जला एकादशी का व्रत बहुत ही कठिन माना जाता है। हर साल ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इस व्रत में पानी पीना वर्जित है। इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। यह व्रत कोई भी कर सकता है, क्योंकि इसमें भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से साल भर की सभी एकादशी का फल प्राप्त हो जाता है और भगवान विष्णु की विशेष कृपा बनी रहती है। खासतौर से निर्जला एकादशी का व्रत दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
      विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्विद महामण्डलेष्वर स्वामी वेदमूर्तिनंद सरस्वती जी ने बताया कि अगर आप सालभर में किसी भी एकादशी का व्रत नहीं कर पाते हैं, तो मात्र निर्जला  एकादशी का व्रत रखने से ही आपको सभी एकादशी का फल प्राप्त हो जाता है। इस व्रत का आरंभ एकादशी के सूर्योदया से निर्जला रहने के साथ होता है और इसका समापन द्वादशी को सूर्योदय तक उसी अवस्था में रह कर किया जाता है। इस व्रत में अन्न खाना तो दूर की बात है। पानी तक ग्रहण नहीं किया जाता है।
व्रत कैसे करें
निर्जला एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान के बाद भगवान विष्णु की विधिवत तरीके से पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस दिन  नमःभगवते वासुदेवाय का जाप अवश्य करें। इसके बाद कथा सुनें और भगवान का कीर्तन जरूर करें। निर्जला एकादशी के दिन दान-पूण्य का अधिक महत्व माना जाता है। इस दिन आप वस्त्र, छाता अन्न और बिस्तर का दान कर सकते हैं। अगर किसी प्रकार की कोई समस्या है तो आप सूर्योदय से लकर दूसरे दिन सूर्योदय तक जल का त्याग करके भी व्रत का फल ले सकते हैं।
-संध्या रानी
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