Book Launch: लिथुआनियाई लेखक यारोस्लावास मेलनिकस के कहानी संग्रह ‘अंतिम दिन’ का लोकार्पण
साहित्य अकादमी में आयोजित कार्यक्रम में लिथुआनिया की राजदूत दियाना मित्सकेविचेने, लेखिका ममता कालिया और अध्यक्ष माधव कौशिक रहे शामिल

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नई दिल्ली स्थित साहित्य अकादमी में लिथुआनियाई लेखक यारोस्लावास मेलनिकस के कहानी संग्रह के हिंदी अनुवाद ‘अंतिम दिन’ का लोकार्पण कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में भारत में लिथुआनिया गणराज्य की राजदूत महामहिम दियाना मित्सकेविचेने, साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक, और प्रख्यात हिंदी लेखिका ममता कालिया उपस्थित थीं। पुस्तक की हिंदी अनुवादिका रेखा सेठी भी इस अवसर पर मौजूद रहीं।
कार्यक्रम का शुभारंभ साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव के स्वागत वक्तव्य से हुआ। उन्होंने कहा कि हर संस्कृति में कहानियों की परिस्थितियाँ अपने पात्रों को नियंत्रित करती हैं और इस संग्रह में आध्यात्मिकता व दर्शन का गहरा प्रभाव दिखाई देता है। कई कहानियों में यह एहसास होता है कि मानव स्वतंत्रता भी परिस्थितियों के अधीन होती है।

महामहिम दियाना मित्सकेविचेने ने इस अवसर को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह अनुवाद भारत और लिथुआनिया के संबंधों को और आत्मीय बनाएगा। उन्होंने कहा कि “दो देशों के बीच मित्रता का सबसे बड़ा सेतु भाषा होती है, और आज हम उसे साकार होते देख रहे हैं।” राजदूत ने लेखक यारोस्लावास मेलनिकस का संदेश भी पढ़कर सुनाया, जिसमें उन्होंने भारत की आध्यात्मिकता और दर्शन से प्रभावित होने की बात कही तथा भारतीय पाठकों की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा जताई।
अनुवादिका रेखा सेठी ने कहा कि इन कहानियों का मानवीय बोध और सामाजिक परिवेश भारतीय समाज से काफी समानता रखता है। उन्होंने कहा कि “इन कहानियों को पढ़ते हुए मुझे मुक्तिबोध, निर्मल वर्मा और कुँवर नारायण की याद आई।”

लेखिका ममता कालिया ने कहा कि संग्रह की सभी कहानियाँ भारतीय मानसिकता को स्पर्श करती हैं और इनमें आधुनिकता व प्रचलित विश्वास का सुंदर सम्मिश्रण दिखाई देता है। उन्होंने कहानी ‘लेखक’ का उल्लेख करते हुए कहा कि “कई बार लेखक का रचा किरदार उससे आगे निकल जाता है और चरित्र पीछे रह जाता है।”
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में माधव कौशिक ने कहा कि “यारोस्लावास मेलनिकस ऐसे लेखक हैं जिन्होंने विज्ञान को कला सिद्ध किया है। उन्होंने समाज के कड़वे यथार्थ को प्रस्तुत करने के लिए फैंटेसी का उपयोग किया है, जो कई बार आवश्यक भी होता है।” उन्होंने कहा कि आज के समय में अनुवादक समय और सीमाओं के प्रतिबंधों को समाप्त करने वाले सबसे बड़े दूत हैं।
कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया।

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