दुनिया (International)ब्रेकिंग न्यूज़मेरे अलफ़ाज़/कविता

“मन का है क्या, ये है बावरा”

न है फिकर, न डर कोई.........

👆भाषा ऊपर से चेंज करें

मन अपनी ख्वाहिशों को पाने में इतना मग्न होता है कि वो उन ख्वाहिशों को पाने के लिये क्या कुछ खो देता है उसे पता ही नहीं चलता। इसीलिये कहा है कि मन पे किसी का ज़ोर नहीं चलता। सब इसको वश में करना चाहते हैं। मगर ये किसी के वश में नहीं आता। और हमेशा कुछ पाकर, कुछ खोने के गम में मन रहता है पछताता।

“मन का है क्या, ये है बावरा”

ख्वाहिशों की सीमा लांघकर,
उड़ता हुआ मन जा रहा।

न है फिकर, न डर कोई,
क्या खो रहा, क्या पा रहा।

सबको पीछे पछाड़कर,
थामें हुए अपनी डगर।

सबसे ऊंची उड़ान भर,
ये उड़ रहा है बेखबर।।

रूकना इसके बस में नहीं,
न रोक पाया इसे कोई।

इक चाह खत्म होती नहीं,
उम्मीद बांधे वो दूसरी।

मन का है क्या,ये है बावरा,
इसने नचाए कितने ही।

दिल की सुनी है जिसने भी,
पाई है बिन मांगे हर खुशी।

-वंदना हेमराज सोणावणे

Related Articles

Back to top button
Close