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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का सुप्रीम कोर्ट पर तीखा हमला: राष्ट्रपति को समयबद्ध फैसला देने की सलाह पर जताई आपत्ति
उपराष्ट्रपति धनखड़ का सवाल: क्या राष्ट्रपति को निर्देश देना उचित है? न्यायपालिका पर जवाबदेही का उठाया मुद्दा

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-ओम कुमार
देश के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की उस सलाह पर आपत्ति जताई, जिसमें देश के राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समय सीमा तय की थी। इसके साथ ही उपराष्ट्रपति ने जस्टिस वर्मा के मामले में अपनी बात रखी।
देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के छठवें बैच को उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में आयोजित कार्यक्रम में संबोधित करते हुए कहा कि “हमें बेहद संवेदनशील बनना होगा। ये कोई समीक्षा दायर करने या न करने का सवाल नहीं है। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से फैसला करने के लिए कहा जा रहा है। अगर ऐसा नहीं होता है तो संबंधित विधेयक कानून बन जाता है। संविधान का अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को दरकिनार करने के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है। न्यायाधीश और न्यायपालिका अब कानून बना रही है, कार्यकारी कार्य कर रही है, सुपर-संसद के रूप में कार्य कर रही है। जबकि उन पर कोई जवाबदेही नहीं है।”
उपराष्ट्रपति ने आगे बोलते हुए कहा कि “हाल ही में एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना चाहिए। यह सवाल नहीं है कि कोई समीक्षा दायर करें या नहीं। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जाता है, और यदि नहीं, तो यह कानून बन जाता है। हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते हैं जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें, और किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145 (3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। वहां, पांच न्यायाधीश या उससे अधिक होने चाहिए।”
वंही न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आवास से बरामद हुए कैश के मामले पर देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने बोलते हुए कहा कि “14 और 15 मार्च की रात को नई दिल्ली में एक जज के घर पर एक घटना घटी। सात दिनों तक किसी को इस बारे में पता नहीं चला। हमें खुद से सवाल पूछने होंगे। क्या देरी की वजह समझी जा सकती है? क्या यह माफ़ी योग्य है? क्या इससे कुछ बुनियादी सवाल नहीं उठते? किसी भी सामान्य परिस्थिति में, और सामान्य परिस्थितियाँ कानून के शासन को परिभाषित करती हैं।”
उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने आगे बोलते हुए कहा कि “न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर लगी आग को बुझाने के लिए अग्निशमन विभाग की कार्रवाई के दौरान नकदी बरामद होने के बाद भी उनके खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है और कहा कि देश में किसी के खिलाफ भी मामला दर्ज किया जा सकता है, लेकिन अगर किसी न्यायाधीश पर मामला दर्ज करना है तो विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है।”
जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु गवर्नर Vs राज्य सरकार के केस में गवर्नर के अधिकार की ‘सीमा’ तय कर दी थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा था, राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध भी बताया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल की तरफ से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। दरअसल, 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के मामले में ऐतिहासिक फैसला लिया था। अदालत ने कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे गए बिल पर एक महीने के भीतर फैसला लेना होगा।
इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की थी। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया।
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