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साहित्य अकादमी द्वारा मनोरंजन दास की जन्मशतवार्षिकी पर संगोष्ठी का आयोजन
मनोरंजन दास ओड़िया नाटकों में युगबोध प्रस्तुत करने वाले नाटककार थे -कुमुद शर्मा

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साहित्य अकादमी द्वारा आज ओड़िआ के प्रख्यात नाटककार मनोरंजन दास की जन्मशताब्दी पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने की और उद्घाटन वक्तव्य प्रख्यात नाटककार अनंत महापात्र ने दिया। बीज वक्तव्य साहित्य अकादमी के सामान्य परिषद् के सदस्य बिजॅय कुमार सतपथी, प्रारंभिक वक्तव्य ओड़िआ परामर्श मंडल के संयोजक गौरहरि दास द्वारा प्रस्तुत किए गए। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में मनोरंजन दास की सुपुत्री सिकता दास भी उपस्थित थी। स्वागत वक्तव्य साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव द्वारा प्रस्तुत किया गया।

इस अवसर पर उपाध्यक्ष, संसदीय राजभाषा समिति भर्तृहरि महताब भी उपस्थित थे। संगोष्ठी के आरंभ में मनोरंजन दास पर साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित विनिबंध का लोकार्पण भी किया गया। सभी आमंत्रित वक्ताओं का स्वागत साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवाराव द्वारा अंगवस्त्रम् एवं साहित्य अकादमी की पुस्तकें भेंट करके किया गया। सचिव महोदय ने अपने स्वागत वक्तव्य में भारत में प्रदर्शनकारी कलाओं की समृद्ध परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि मनोरंजन दास द्वारा ही ओड़िआ नाटकों में आधुनिकता का प्रवेश होता है। गौरहरि दास ने प्रारंभिक वक्तव्य देते हुए कहा कि मनोरंजन दास ओड़िआ नाटक के महानायक थे। उन्होंने सोलह नाटक और पैंतीस एकांकी नाटकों का सृजन किया। उन्होंने ओड़िआ नाटकों को न केवल नई धारा प्रदान की, बल्कि अपना पूरा जीवन ओड़िआ नाटकों के विकास में लगा दिया।
उद्घाटन वक्तव्य में अनंत महापात्र ने उनको याद करते हुए कहा कि उन्होंने अपने कार्य से पूरी सदी को प्रभावित किया और निरंतर आने वाले बदलावों को अपने नाटकों में बेहद सच्चाई के साथ प्रस्तुत किया। उन्होंने उनके कई नाटकों जिसमें उन्होंने काम किया और उनको निर्देशित किया, की भी जानकारी श्रोताओं के साथ साझा की। बीज वक्तव्य में बिजॅय कुमार सतपथी ने उन्हें नवनाट्य धारा के प्रवर्तक के रूप में याद करते हुए कहा कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन से प्रेरणा ली और उनके प्रारंभिक नाटक उससे प्रभावित थे। उन्होंने जनमानस तक अपनी बात पहुँचाने के लिए विशेष नाटक लिखे जिसमें आकाशवाणी के लिए लिखे गए नाटकों को शामिल किया जा सकता है। मनोरंजन दास की सुपुत्री सिकता दास जोकि प्रसिद्ध ओड़िशी नृत्यांगना भी है, ने अपने पिता के कई आत्मीय संस्मरण साझा करते हुए उनपर लिखी गई विभिन्न पुस्तकों की जानकारी दी।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कुमुद शर्मा ने कहा कि मनोरंजन दास अपने समय के पूरे युगबोध को प्रस्तुत करने वाले रचनाकार थे। उनके नाटक वैचारिक धरातल पर सभी को सोचने के लिए विवश करते थे। नाटकों को आधुनिक दौर में ले जाने के साथ ही उन्होंने भारत की नाट्य परंपरा का भी अनुशीलन किया।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कुमुद शर्मा ने कहा कि मनोरंजन दास अपने समय के पूरे युगबोध को प्रस्तुत करने वाले रचनाकार थे। उनके नाटक वैचारिक धरातल पर सभी को सोचने के लिए विवश करते थे। नाटकों को आधुनिक दौर में ले जाने के साथ ही उन्होंने भारत की नाट्य परंपरा का भी अनुशीलन किया। संगोष्ठी के दो अन्य सत्र निर्मलकांति भट्टाचार्य और सत्यव्रत राउत की अध्यक्षता में सम्पन्न हुए जिसमें जितेंद्र कुमार नायक, अजय पटनायक, श्रीमन मिश्र, तरुणकांति राउत, प्रबोध कुमार रथ, प्रदीप के. मोहंती और बिजयानंद सिंह ने अपने-अपने आलेख प्रस्तुत किए। जितेंद्र कुमार नायक ने मनोरंजन दास के नाटकों के अंग्रेज़ी अनुवाद के दौरान हुए अपने अनुभवोें को साझा किया। वहीं अजय पटनायक ने मोहन राकेश और मनोरंजन दास के नाटकों में समानता की तलाश की।
सत्यव्रत राउत ने मनोरंजन दास के अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए। तरुणकांति राउत ने मनोरंजन दास के नाटकों की सरल प्रस्तुति पर अपना वक्तव्य दिया। प्रबोध कुमार रथ ने मनोरंजन दास के नाटकों को तीन श्रेणियों में बाँटकर समीक्षा प्रस्तुत की। प्रदीप के. मोहंती ने मनोरंजन दास को सर्वश्रेष्ठ, यथार्थवादी नाटककार के रूप में याद किया और बिजयानंद सिंह ने नाटकों के प्रचार-प्रसार में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया।
कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन साहित्य अकादमी के उपसचिव कृष्णा किंबहुने द्वारा किया गया।





