राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने किया दो दिवसीय राष्ट्रीय साहित्यिक सम्मिलन का उद्घाटन, कहा – “सभी भाषाओं का साहित्य मेरा साहित्य है”
उद्घाटन सत्र के बाद ‘सीधा दिल से: कवि सम्मिलन’ का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता उर्दू के प्रख्यात शायर शीन काफ निज़ाम ने की

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साहित्य अकादेमी एवं राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में ‘कितना बदल चुका है साहित्य?’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय साहित्यिक सम्मिलन का शुभारंभ आज राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केंद्र, नई दिल्ली में हुआ। इस गरिमामय आयोजन का उद्घाटन भारत की माननीय राष्ट्रपति महामहिम श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने किया।
राष्ट्रपति का उद्घाटन भाषण: साहित्य में भारतीयता का स्पंदन
राष्ट्रपति श्रीमती मुर्मु ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि हमारे देश की 140 करोड़ की जनसंख्या में अनेक भाषाएँ और अनगिनत बोलियाँ हैं, जिनमें साहित्यिक परंपराओं की असीम विविधता समाहित है। लेकिन इस विविधता में एकता का स्वर—भारतीयता—स्पष्ट रूप से महसूस होता है। उन्होंने कहा, “मैं मानती हूँ कि सभी भारतीय भाषाओं में रचित साहित्य मेरा ही साहित्य है।”
उन्होंने गोपबंधु दास, रवींद्रनाथ ठाकुर, फकीरमोहन सेनापति, गंगाधर मेहर और प्रतिभा राय जैसे महापुरुषों का उल्लेख करते हुए कहा कि आधुनिक साहित्य उपदेशात्मक नहीं, प्रेरणात्मक होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि समाज और सामाजिक संस्थानों के बदलने के साथ साहित्य की प्राथमिकताएँ और विषय भी बदले हैं, लेकिन जो साहित्य स्थायी मानवीय मूल्यों को स्थापित करता है, वही कालजयी बनता है।
संस्कृति मंत्री का वक्तव्य: साहित्य समाज का दर्पण और पथ-प्रदर्शक

सम्मेलन में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित भारत सरकार के संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने साहित्य को समाज का दर्पण और मार्गदर्शक बताया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में देश एक “सांस्कृतिक पुनरुद्धार” के युग में प्रवेश कर चुका है, जहाँ साहित्यकारों की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
साहित्य अकादेमी की उपलब्धियाँ और आयोजन की महत्ता
संस्कृति मंत्रालय की विशेष सचिव एवं वित्तीय सलाहकार रंजना चौपड़ा ने कहा कि साहित्य अकादेमी, संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत संस्थाओं में एक अग्रणी संस्था है जिसने हाल के वर्षों में अनेक उपलब्धियाँ हासिल की हैं। यह सम्मेलन उसकी रचनात्मक सक्रियता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
कवि सम्मिलन “सीधा दिल से”: भाषाई विविधता में रचनात्मक समरसता
उद्घाटन सत्र के बाद ‘सीधा दिल से: कवि सम्मिलन’ का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता उर्दू के प्रख्यात शायर शीन काफ निज़ाम ने की। सत्र में साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस बहुभाषी कविता-पाठ में देश के विविध कोनों से आए निम्नलिखित कवियों ने भाग लिया:
- रणजीत दास (बाङ्ला)
- श्रीमती ममंग दई (अंग्रेज़ी)
- दिलीप झवेरी (गुजराती)
- अरुण कमल (हिंदी)
- महेश गर्ग (हिंदी)
- शफ़ी शौक (कश्मीरी)
- दमयंती बेशरा (संताली)
- रवि सुब्रह्मण्यम् (तमिऴ)
सभी कवियों का पारंपरिक अंगवस्त्रम से सम्मान अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव द्वारा किया गया। सत्र का संचालन प्रसिद्ध कवयित्री अलका सिन्हा ने किया।
आने वाले सत्र: साहित्यिक विमर्श और सांस्कृतिक प्रस्तुति
सम्मेलन के दूसरे दिन निम्नलिखित प्रमुख विषयों पर तीन विचार-सत्र आयोजित किए जाएंगे:
- भारत की स्त्रीवादी साहित्य: नए आधार की तलाश में
- साहित्य में परिवर्तन बनाम परिवर्तन का साहित्य
- वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारतीय साहित्य की नई दिशाएँ
अंत में, देवी अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक विशेष सांस्कृतिक प्रस्तुति “अहिल्याबाई गाथा” का मंचन किया जाएगा, जिसे सुप्रसिद्ध कथाकार हिमांशु बाजपेयी और प्रज्ञा शर्मा प्रस्तुत करेंगे।
यह सम्मिलन भारतीय साहित्य की बदलती धारा को समझने और उस पर गंभीर चिंतन करने का एक सशक्त मंच बनकर उभरा है। साहित्यिक विविधता और सांस्कृतिक संवाद के इस अनूठे संगम से समकालीन भारतीय साहित्य की नई दिशाएँ निश्चित ही परिभाषित होंगी।
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