मैं कविता की खिड़कियाँ बनाता हूँ, जो हमेशा खुली रहती हैं। -मोहन राणा
साहित्य अकादेमी के प्रवासी मंच पर गूँजी लंदन प्रवासी कवि मोहन राणा की कविताएँ, श्रोताओं ने की सराहना

👆भाषा ऊपर से चेंज करें
नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी ने अपने प्रतिष्ठित कार्यक्रम प्रवासी मंच के अंतर्गत इंग्लैंड (UK) से आए प्रसिद्ध कवि मोहन राणा के काव्य पाठ का आयोजन किया। दिल्ली में जन्में और वर्तमान में लंदन में रह रहे मोहन राणा के अब तक दस कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। हाल ही में उनका नया संग्रह “पंक्तियों के बीच” पाठकों के बीच आया है।

काव्य पाठ के दौरान कवि मोहन राणा ने अपनी रचना प्रक्रिया पर विस्तार से विचार साझा किए। उन्होंने कहा— “कविता और शब्द-संवेदना के बीच कवि एक कार्बन कॉपी की तरह होता है। कविता दो बार अनूदित होती है— पहली बार जब वह लिखी जाती है और दूसरी बार जब उसे पढ़ा या लिखा जाता है।” अपनी रचनात्मकता को समझाते हुए उन्होंने कहा कि “मैं कविता की खिड़कियाँ बनाता हूँ, जो हमेशा खुली रहती हैं।”
कार्यक्रम में उन्होंने अपनी चर्चित कविताएँ प्रस्तुत कीं, जिनमें “पारगमन”, “यह जगह काफी है”, “एक सामान्य दिसंबर का दिन”, “चार चिड़ी तीन इक्के और एक जोकर”, “पानी का रंग”, “छतनार चीड़ की छाया में”, “होगा एक और शब्द” तथा “अर्थ शब्दों में नहीं तुम्हारे भीतर है” प्रमुख थीं।
कविता पाठ के उपरांत उपस्थित श्रोताओं ने कवि से संवाद किया और उनकी कविताओं पर अपने विचार भी साझा किए। इस अवसर पर विमलेश कांति वर्मा, नारायण कुमार, अनिल जोशी, विनोद तिवारी, राजकुमार गौतम जैसे कई प्रतिष्ठित लेखक भी मौजूद रहे।
कार्यक्रम का संचालन एवं कवि मोहन राणा का स्वागत साहित्य अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया। –भूपिंदर सिंह

Stay Updated with Dainik India 24×7!
Follow us for real-time updates:




