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महिलाओं में सृजन की शक्ति, एक आयाम बल्कि एक ऐसी सुपर पावर है, जिससे स्वयं कई माताएं भी बेखबर है- हरलीन कौर कालिया

माँ का गर्भ वास्तव में वह पहला स्कूल है जहाँ शिशु जीवन के उन पाठों को सीखता है जिन्हें माँ पढ़ाने के लिए चुनती है

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माँ होने का अर्थशास्त्र
(मानवता की भविष्य निर्मात्री)

हाल ही मेंकैलिफोर्निया की एक प्रमुख बीमा गाइड कंपनी इनसयोर डॉट कॉम द्वारा जारी 10वें वार्षिक    मदर्स डे के इनडेक्स को पढ़ते हुए हरलीन कौर कालिया  माई सुपर बेबी इनिशिएटिव के संस्थापक  ने पाया कि एक माँ द्वारा अपने परिवार के कर्तव्य का निर्वाहन करने के लिए माताओं की महत्ता को स्वीकार  हुए उनकी वार्षिक सैलरी का आंकलन करता है   , जो महिलाओं के हितों के लिए काम करने वाले संगठनों को भी निश्चित रूप से संतुष्टि प्रदान करता होगा।
यह एक अच्छी खबर है कि माँ की भूमिका को पहचान देने वाले इस इंडेक्स की वैल्यू पिछले वर्ष की तुलना में 32 प्रतिशत की वृद्धि के साथ अपने सर्वकालीन उच्चतम स्तर 93920 डॉलर प्रतिवर्ष पहुंच गई है। दुनिया की सभी माताएं इसके लिए बधाई की पात्र है। आज इस महामारी के दौर में जब वैश्विक अर्थव्यवस्था अत्यधिक बुरे दौर से गुजर रही है, तब इंडेक्स की इस वृद्धि ने साबित किया है कि आप सभी “सुपर वूमैन” हो। आखिरकार, आपको ऐसा क्यूं ना कहा जाए जबकि पिछले साल कोरोना महामारी के कारण सभी माताओं ने अपने बच्चों तथा पूरे परिवार के स्वास्थ्य पर ध्यान रखते हुए बच्चों के लिए ट्यूटर से लेकर उनकी ऑनलाइन कक्षाओं के लिए सहायता की है और साथ ही अपने पतियों के साथ भी अपनी भूमिकाओं को बाखूबी निभाया है। एक ही समय में इतनी सारी भूमिकाएं निभाना अपने आप में काबिलेतारीफ है।

दुनिया की सभी माताएँ इस बात से सहमत होंगी कि इंडेक्स का 93,920 डॉलर प्रतिवर्ष का आंकड़ा चाहे कितना भी प्रभावशाली क्यों न लगे लेकिन इसका माँ होने के उल्लासपूर्ण आनंद से कोई मुकाबला नहीं हो सकता। यह एक गौरवमयी सच्चाई है कि गर्भावस्था का समय और फिर बच्चे के जन्म के बाद बदलते जीवन का अनुभव, बच्चे के साथ उमंगों से भरपूर क्षणों और माँ एवं बच्चे के बंधन का किसी मुद्रा के रूप में मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है।

महिलाओं में सृजन की शक्ति, एक आयाम बल्कि एक ऐसी सुपर पावर है, जिससे स्वयं कई माताएं और महिलाओं के लिए काम करने वाले संगठन भी बेखबर है। सृजन केवल ’पुनरुत्पादन’ नहीं है, यह वास्तव में गर्भ के अंदर शिशु के भाग्य और भविष्य को आकार देने का एक सचेत प्रयास है। माँ का गर्भ वास्तव में वह पहला स्कूल है जहाँ शिशु जीवन के उन पाठों को सीखता है जिन्हें माँ पढ़ाने के लिए चुनती है। प्रसवपूर्व और प्रसवकालीन आधुनिक विज्ञान भी अब गर्भ में शिशु द्वारा सीखने के तथ्य को प्रमाणित करता है जो विश्व की कई प्राचीन संस्कृतियों, विशेष रूप से भारतीय संस्कृति में पहले से उल्लेखित है।
हममें से अधिकांश लोग महाभारत के महान योद्धा अभिमन्यु की वीरतापूर्ण कहानी से परिचित हैं जिन्होंने अपनी माता के गर्भ में रहते हुए “चक्रव्यूह” तोड़ने की कला सीखी थी। हम माँ कायाधू के बारे में भी जानते हैं, जिन्होंने अपने बच्चे को ‘भक्ति’ में लीन करके उसे अपने राक्षसी माता-पिता के प्रभावों से बचाते हुए ऋषि प्रहलाद को जन्म दिया। जीजा बाई ने भी मुगलों के अत्याचार से लोहा लेने वाले महान शिवाजी को भी गर्भावस्था के दौरान ही वीरता की शिक्षा दी थी।

ऐसे अनेक किस्से जो गर्भ के अंदर एक बच्चे के विकास पर एक माँ के कार्यों और विचारों के महत्व को उजागर करते हैं, हमारे लोकगीतों तथा लोक कथाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। हममें से सभी ने हमारी माताओं, दादी, नानी को घर की महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान गीता, रामायण जैसी धार्मिक पुस्तकें पढ़ने, सुखद चित्रों को देखने तथा आध्यात्मिक कार्यों में ध्यान लगाने के लिए सुझाव देते हुए सुना है। आधुनिक विज्ञान अब इसे “womb learning” के रूप में वर्णित करता है। प्रश्न यह है कि क्या womb learning वास्तव में काम करता है? मैं कहूंगी- हाँ, यह अद्भुत काम करता है।

आज womb learning एक प्रसवपूर्व स्थापित तथ्य है, जो एक माँ की उसके गर्भस्थ शिशु के डी.एन.ए. (DNA) को प्रभावित करने की आंतरिक योग्यता और क्षमता है। गर्भावस्था का समय एक बच्चे की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास को आकार देने के लिए एक महत्वपूर्ण समय होता है, जो न केवल बच्चे को उसके जीवनकाल में बल्कि कई पीढ़ियों को भी प्रभावित करता है।
विश्व की कई महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व बैंक, यूनिसेफ आदि ने स्वीकार किया है कि गर्भावस्था की अवधि अत्यंत महत्वपूर्ण है। जो शिशु के स्वास्थ्य, सीखने की योग्यता के साथ-साथ उसके सामाजिक और भावनात्मक विकास को प्रभावित करता है, जिसका असर उसके बचपन, किशोरावस्था तथा युवावस्था में भी रहता है।

इसके अलावाएक अग्रणी अंतर्राष्ट्रीय संगठन APPAH –Association for Prenatal and Perinatal Psychology and Health ने भी “एक सकारात्मक और पौष्टिक गर्भ और जन्म का अनुभव हर बच्चे का जन्म अधिकार है और प्रत्येक बच्चे को अपनी उच्चतम क्षमता तक पहुँचने के लिए मंच निर्धारित करता है”, की धारणा की पुरजोर वकालत की है।

संक्षेप में, एक माँ न केवल शिशु को जन्म देती है बल्कि उसको सम्पूर्ण आकार भी देती है। यही कारण है कि माँ की इस दैवीय शक्ति के लिए ही प्राचीन भारतीय शास्त्रों में मां को देवी का दर्जा दिया गया हैं। फिर भी मेरा यह मानना है कि आज शिशु के विकास के मद्देनजर गर्भावस्था के दौरान अपेक्षाकृत बहुत कम ध्यान दिया जाता है। मुझे गलत मत समझिए, मैं महिलाओं को कार्य क्षेत्र से दूर केवल माँ की भूमिका तक सीमित रखने के पक्ष में नहीं हूं। इसके विपरीत मैं इस बात की वकालत करती हूं कि हमें हर माँ को उसके रचनात्मक कार्यों के लिए और मानवता के विकास के लिए समर्थन एवं सम्मान जरूर देना चाहिए।
गौर कीजिए कि पुतली बाई से जन्मे मोहनदास करमचंद गांधी ने कैसे भारत के पूरे राजनीतिक भविष्य को बदल दिया? एक मदर टेरेसा ने कैसे मानवता की सेवा में अपना जीवन लगा दिया? एक आइंस्टीन ने भौतिक दुनिया के बारे में कैसे हमारी धारणा बदल दी?

हरलीन कौर कालिया
एक जागरूक गर्भावस्था कोच, माई सुपर बेबी इनिशिएटिव की संस्थापक, गोल्डन पीरियड एजुकेटर हैं।

 

 

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