IGFRI झांसी में उच्चस्तरीय बैठक एवं नई परियोजनाओं का शिलान्यास
एडवांस फेनॉमिक्स फैसिलिटी और नई परियोजनाओं के शिलान्यास से आईजीएफआरआई में बढ़ेगा शोध कार्य

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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान (IGFRI), झांसी में एक महत्वपूर्ण बैठक एवं विशेष कार्यक्रम का आयोजन संस्थान के प्रेक्षागृह में किया गया। इस अवसर पर डॉ. एम.एल. जाट, सचिव, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा तथा महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भा.कृ.अ.प.), कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार मुख्य अतिथि रहे। कार्यक्रम में डॉ. डी.के. यादव, उप महानिदेशक (फसल विज्ञान), भा.कृ.अ.प. विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित हुए, जबकि संस्थान निदेशक डॉ. पंकज कौशल ने अध्यक्षता की।
स्वागत एवं प्रारंभिक सत्र
कार्यक्रम का आरंभ भा.कृ.अ.प. के कुलगीत से हुआ। इसके उपरांत निदेशक डॉ. पंकज कौशल ने संस्थान की शोध गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत किया और सभी अतिथियों का स्वागत किया।
मुख्य अतिथि का उद्बोधन
अपने संबोधन में डॉ. एम.एल. जाट ने कहा कि चरागाह एवं चारा संसाधनों के वैज्ञानिक प्रबंधन से न केवल चारा सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है बल्कि पशुपालन आधारित जीवन शैली में भी सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। उन्होंने अनुसंधान कार्यों में वैश्विक दृष्टिकोण, समन्वय और टीमवर्क को और सशक्त बनाने पर बल दिया।
विशिष्ट अतिथि डॉ. डी.के. यादव ने अपने संबोधन में कहा कि गुणवत्तापूर्ण एवं पौष्टिक चारा पशुपालन के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए नवीन अनुसंधान पद्धतियों और तकनीकों को अपनाना समय की मांग है।
परियोजनाओं का शिलान्यास
इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं अतिथिगणों ने आईजीएफआरआई–रिलायंस सहयोगात्मक परियोजना के अंतर्गत जैव ऊर्जा घासों के अनुसंधान हेतु उत्कृष्टता केंद्र का शिलान्यास किया। परियोजना के बारे में विभागाध्यक्ष (फसल सुधार) एवं मुख्य अन्वेषक डॉ. शाहिद अहमद ने विस्तृत जानकारी दी। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रतिनिधि डॉ. मनीष रूड़कीवाल एवं डॉ. बामसी कृष्णा जस्ती ने भी परियोजना की रूपरेखा प्रस्तुत की।
कार्यक्रम के दौरान मंचस्थ अतिथियों ने विभिन्न प्रकाशनों एवं वीडियो का विमोचन भी किया।
शोध कार्यों का अवलोकन
कार्यक्रम के पूर्व महानिदेशक एवं अन्य अतिथियों ने केंद्रीय शोध प्रक्षेत्र का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने वन चरागाह प्रबंधन, कृषि अभियांत्रिकी, फसल सुधार, फसल उत्पादन, बीज तकनीकी, भेड़-बकरी इकाई एवं बीज प्रसंस्करण जैसे विभागों में किए जा रहे कार्यों की जानकारी प्राप्त की।
संस्थान परिसर में वृक्षारोपण के उपरांत एडवांस फेनोमिक्स फैसिलिटी का शिलान्यास किया गया। अतिथियों ने विभिन्न विभागों के स्टालों का भी अवलोकन किया, जहाँ बहुवर्षीय एवं दलहनी चारा फसलें, वर्ष पर्यंत हरा चारा उत्पादन एवं गैर-परंपरागत चारा फसलों से संबंधित जानकारियाँ दी गईं।
1. संस्थान की स्थापना सन् 1962 में चरागाह प्रबंधन एवं चारा संसाधनों के विकास के लिए की गयी थी।2. 43 चारा फसलों की कुल 434 प्रजातियां विकसित की गई है, जिसमें से बरसीम की वरदान, जई की Kent UP0212, मक्का की African tall प्रमुख है।3. पिछले 5 वर्षों में राष्ट्रीय स्तर पर फसल विज्ञान, पशु विज्ञान, फसल उत्पादन एवं प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, शिक्षा एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्रों में 20 तकनीकियां प्रमाणित हुई है एवं 15 चारा फसलों की प्रजातियों का लाइसेंस प्राइवेट कंपनियों को किसानों तक पहुंचाने के लिए दिया गया है।4. रु 130 करोड़ से अधिक के 22 बड़े – बड़े Externally Sponsored Projects निर्दिष्ट उद्देश्यों के लिए सफलतापूर्वक पूर्ण किए गए।5. विश्व की प्रथम बीज उत्पादन करने वाली बाजरा नेपियर हाइब्रिड की प्रजाति के विकास की प्रक्रिया के अंतिम चरण पर है।6. तकनीकी क्षेत्र में जीनोम एडिटिंग के माध्यम से लंबे समय तक हरा चारा उत्पादन, Delayed flowering तथा बायोटिक एवं एबायोटिक स्ट्रेस के टॉलरेंस के लिए विस्तृत जेनेटिक बेस का विकास ।7. 21 प्रदेशों में स्थित 22 स्थायी एवं 27 अन्य केंद्रों के माध्यम से देशभर में चारे की उत्पादकता, उपलब्धता एवं गुणवत्ता को बढ़ाने की दिशा में सराहनीय प्रयास ।8. चारे की जई प्रजातियों के बारे में जागरूकता एवं बढ़ावा देने के लिए देश के 100 स्थानों पर चारा वाटिका की स्थापना की गई।9. प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले चरागाहों से अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त लाभों के वृहद स्तर पर विश्लेषण के लिए मॉडल का विकास।
10. 1997 में हरे चारे की कमी 61% थी जो कि संस्थान के प्रयासों से 2019 में 11% तक घट गयी है।11. देश के 29 प्रदेशों के लिए Fodder Development Plan बनाया जिसमें से 7 राज्यों – उत्तर प्रदेश, असम, गोवा,राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा ने इसे लागू कर दिया है।12. 13 प्रमुख चारा प्रजातियों ने देश की इकॉनमी में लगभग 42640 करोड़ रु के बराबर किसानों को लाभ दिया। जिसमें अफ्रीकन टॉल अकेले का 33000 करोड़ का योगदान है एवं वरदान से 788 करोड़ का योगदान रहा।13. देश में चारा प्रजातियों के ब्रीडर सीड की मांग के अनुरूप उत्पादन कर रहे है, इसी प्रकार बाजरा नेपियर हाइब्रिड तथा अन्य बहुवर्षीय घासों के प्लाटिंग मटेरियल को देश के 25 राज्यों में उगाए जा रहे है।
उपस्थिति एवं संचालन
इस अवसर पर भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान एवं केंद्रीय कृषि वानिकी अनुसंधान संस्थान, झांसी के निदेशक डॉ. ए. अरुणाचलम, विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक, प्रशासनिक एवं तकनीकी अधिकारी/कर्मचारी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का सफल संचालन एवं आभार प्रदर्शन डॉ. विजय कुमार यादव ने किया।

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