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सड़क किनारे सपनों की उड़ान: शिक्षा से संवरता भविष्य, नन्हे सपनों को मिल रहे पंख

दिल्ली के धौला कुआं, करकरडूमा व विश्वास नगर जैसे इलाकों में भी सड़क किनारे शिक्षा संचालित केंद्र  

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गुनगुनी धूप में नारायण फ्लाईओवर स्थित जवाहर कैंप के फुटपाथ पर बैठकर पढ़ते बच्चों की आंखों में बड़े सपने झलक रहे थे। कोई डॉक्टर बनने की चाह रखता था, तो कोई इंजीनियर बनने का सपना देख रहा था। इन नन्हे सपनों को पंख देने के लिए पुनर्जागरण समिति पूरी मेहनत से कार्य कर रही है। समिति का उद्देश्य केवल बच्चों को शिक्षित करना है।
 टीम जब नारायण फ्लाईओवर स्थित जवाहर कैंप पहुंची, तो वहां का नजारा प्रेरक था। तीन शिक्षक दर्जनों बच्चों को ब्लैकबोर्ड और चित्रों के माध्यम से पढ़ा रहे थे। आमतौर पर यहां 80 से अधिक बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं, लेकिन परीक्षा के चलते बच्चों की उपस्थिति कम थी। यहां पढ़ने वाले अधिकतर छात्र रिक्शा चालक, दिहाड़ी मजदूर और गरीब तबके से ताल्लुक रखते हैं। उनके अभिभावकों के पास ट्यूशन का खर्च उठाने की क्षमता नहीं है, इसलिए पुनर्जागरण समिति उन्हें मुफ्त शिक्षा प्रदान करती है।
तीन से अठारह साल तक के बच्चों के चेहरों पर मुस्कान
शिक्षा प्राप्त कर रहे तीन से अठारह वर्ष की आयु के बच्चों के चेहरों पर उत्साह की झलक देखने को मिली । आसपास के इलाकों से आए बच्चे अपने भविष्य को संवारने की उम्मीद के साथ यहां आते हैं। इस दौरान 14 वर्षीय छात्रा साक्षी ने गर्व से कहा कि मुझे पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना है और अपने माता-पिता का नाम रोशन करना है। वहीं, 16 वर्षीय सुबीर ने कहा कि मेरा सपना है कि मैं एक दिन इंजीनियर बनूं।
बच्चों के भविष्य को संवारने की मुहिम
 
शिक्षक गौरव ने बताया कि उनकी संस्था केवल इस कैंप तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के छह राज्यों में शिक्षा अभियान चला रही है। अब तक लगभग 6,200 से अधिक बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान की जा चुकी है। उन्होंने आगे बताया कि धौला कुआं, करकरडूमा व विश्वास नगर जैसे इलाकों में भी सड़क किनारे शिक्षा केंद्र संचालित किए हैं।
सड़क किनारे शिक्षा और सुरक्षा की चुनौती
ऐसे में शिक्षक गौरव ने बताया कि फुटपाथ पर बच्चों को पढ़ाना जोखिम भरा है, क्योंकि सड़क किनारे उनकी सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंता बनी रहती है। बावजूद इसके, जगह की कमी के कारण उन्हें मजबूरन यहां पढ़ाना पड़ता है। कई बार सरकारी कार्यालयों से जगह के लिए अनुरोध किया, लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी। गौरव ने आगे कहा कि उनकी संस्था केवल छह राज्यों तक सीमित नहीं रहना चाहती। लक्ष्य है कि देश के हर जरूरतमंद बच्चे तक शिक्षा की रोशनी पहुंचे। संस्था मानती है कि शिक्षा ही समाज में बदलाव लाने का सबसे सशक्त माध्यम है।
वहीं, संस्था के एक अन्य सदस्य मुरारी चौहान ने बताया कि बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ उनके पोषण का भी ध्यान रखा जाता है। सप्ताह में दो दिन बच्चों को स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन दिया जाता है। इसके अलावा, सभी छात्रों को मुफ्त स्टेशनरी प्रदान की जाती है ताकि आर्थिक तंगी के कारण उनकी पढ़ाई में कोई बाधा न आए।
-काजल कुमारी
 
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