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आरामबाग पूजा में सुंदरबन के निवासियों का दर्द झलका

नई दिल्ली में आयोजित आरामबाग पूजा समिति ने हमेशा सामाजिक सरोकार के मुद्दे उठाने पर जोर दिया है

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दिल्ली की सबसे पुरानी दुर्गापूजा समितियों में से एक आरामबाग पूजा समिति (एपीएस) पहाड़गंज में मोतिया खान, रानी झांसी कॉम्प्लेक्स में नारायण सत्संग मंदिर में दुर्गा पूजा पंडाल का 34वां संस्करण आयोजित करने के लिए बिल्कुल तैयार है। इस साल दुर्गा पूजा मोहत्सव की थीम “सुंदरी सुंदरबन” है, जिससे उस इलाके के गरीब और साधन विहीन लोगों की ओर से लगातार झेले जाने वाले दुख, परेशानी और पीड़ा की समाज मे ध्यान आकर्षित किया जायेगा।
     सुंदर बन राष्ट्रीय उद्यान भारत के पश्चिम बंगाल राज्य के दक्षिणी भाग के सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र में बाघ संरक्षित क्षेत्र है। यह पश्चिम बंगाल में हुगली और पूर्व में रायमंगल जैसे नदियों के आखिरी भाग में स्थित है। 2585 वर्गमीटर के आधे क्षेत्र में नदियां और झीलें हैं। सुंदर बन में रहने वाले लोग साल के 12 महीने बाढ़, चक्रवात, भूकंप और अकाल जैसी प्राकृतिक आपदाएं झेलते रहते हैं।
     समिति ने इस क्षेत्र के 10 पीड़ित परिवारों को दुर्गापूजा महोत्सव में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है। उनके और सुंदरबन में रह रहे दूसरे लोगों के अस्तित्व की रक्षा के लिए यहां आने वाले हर परिवार को 15 हजार रुपये, कंबल, मच्छरदानी और दूसरी जरूरी चीजें दान में देने का फैसला किया गया है।
     आरामबाग पूजा समिति के अध्यक्ष अभिजीत के बोस ने कहा, “हम इस साल दुर्गापूजा महोत्सव के 34वें संस्करण की मेजबानी कर बेहद खुश हैं। शुरुआत से ही हमने दुर्गापूजा के पंडाल में 80 फीसदी सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे उठाए हैं। 20 फीसदी जश्न होता है। इस साल हमने आजादी के 75 साल भी सुंदरबन क्षेत्र में रहने वाले गरीब निवासियों की पीड़ा, दर्द और कठिनाइयों को उभारा है। हालांकि इस क्षेत्र के विकास के लिए कई योजनाएं लाई गईं, लेकिन सुंदरबन में रहने वाले गरीब और अशिक्षित लोगों को इन सरकारी योजनाओं से लाभ नहीं मिल पाया। इस क्षेत्र के निवासी घने जंगलों के बीच बहने वाली नदियों में मछली पकड़ने और अपनी जीविकोपार्जन के लिए शहद इकट्ठा करने के लिए जंगलों में जाते हैं। इसके नतीजे के तौर पर वह कई बार बाघ के हमलों में मारे जाते हैं। वहां के साहूकार इन व्यक्तियों की विधवाओं को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते हैं। ये लोग ही इन महिलाओं से मछली खरीदते हैं और उन्हें पैसे देते हैं। यही कारण है कि आज भी सुंदरबन में अंधकार है।“
     अभिजीत. के. बोस ने कहा, “पूजा समिति के तौर पर हमारे संसाधन काफी सीमित है इसलिए हमने सुंदरबन के निवासियों की पीड़ा की ओर सरकारी एजेंसियों और कई हितधारकों का ध्यान आकर्षित किया है और लगातार इस मुद्दे पर जनजागरूकता उत्पन्न करने पर विचार कर रहे हैं “|
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