साहित्य
साहित्य हमेशा बदलाव की कुंजी रहा है और रहेगा भी -मालाश्री लाल
साहित्य अकादमी द्वारा 'व्यक्तिगत इतिहास और सामाजिक परिवर्तन' पर साहित्य मंच कार्यक्रम का आयोजन

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साहित्य अकादमी द्वारा आज व्यक्तिगत इतिहास और सामाजिक परिवर्तन विषय पर साहित्य मंच कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मालाश्री लाल ने की और इसमें अचला बंसल, लक्ष्मी पुरी और निशात ज़ैदी ने अपने अपने वक्तव्य प्रस्तुत किए।
कार्यक्रम के आरंभ में स्वागत वक्तव्य देते हुए साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि हम सब इतिहास का हिस्सा हैं और इस कारण सामाजिक बदलाव के भी कारक हैं। आगे उन्होंने कहा कि केवल नारों से ही नहीं बल्कि ज्ञान के आधार पर भी सामाजिक परिवर्तन की आधारभूमि तैयार की जा सकती है। अचला बंसल ने एक छोटे शहर बुलंदशहर के ऊपर लिखे अपने उपन्यास के आधार पर कहा कि कई बार सीधे तौर पर यह कह पाना मुश्किल होता है कि हमारे लिखे गए का सामाजिक बदलाव में क्या हिस्सा है। लेकिन लेखन में प्रयुक्त बहुत सी तात्कालिक समस्याएँ आगे चलकर सामाजिक बदलाव की पृष्ठभूमि तैयार करती है।
लक्ष्मी पुरी ने अपने माता-पिता पर लिखे उपन्यास के सहारे बताया कि इसकी पृष्ठभूमि बीसवीं सदी की शुरुआत है जब सारा देश स्वतंत्रता के लिए छटपटा रहा था। उस समय, सभी स्वतंत्रता के लिए जरूरी परिवर्तनों को अपने आस-पास महसूस कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उनके उपन्यास से स्त्री शिक्षा और जातिवाद के अनेक पहलू सामने आते हैं। इस तरह का लिखा गया इतिहास कई बार पाठ्य पुस्तकों का हिस्सा नहीं होता है लेकिन कहीं न कहीं सामाजिक इतिहास तो होता ही है।
निशात ज़ैदी ने दक्षिण भारत की एक महिला की लेखनी के अनुवाद के बाद महसूस किए गए अपने अनुभव सभी के साथ साझा करते हुए बताया कि इस पुस्तक में एक महिला के जीवन में आए सामाजिक बदलावों को देखा जा सकता है। अपने बच्चों के रहते पढ़ाई करने और घरेलू दिनचर्या के बावजूद बदलाव यहाँ भी देखा जा सकता है।
अध्यक्षीय वक्तव्य में मालाश्री लाल ने कहा कि आज के समय में आत्मकथा, जीवनी एवं अन्य साहित्यिक विधाओं में सामाजिक घटनाओं की सच्चाई ज्यादा स्पष्ट तौर पर देखी जा रही है जो सामाजिक बदलाव के अध्ययन के लिए अच्छा संकेत है। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के लेखन से हम इतिहास और सामाजिक बदलावों के के बीच खिंची एक पतली रेखा को मिटता देख रहे हैं। साहित्य हमेशा बदलाव की कुंजी रहा है और रहेगा भी। कार्यक्रम में कई महत्त्वपूर्ण लेखक और राजनयिक आदि शामिल थे।
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