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CALAMITY: क्या बुढ़ापा अभिशाप है?

बुजुर्गों को अपनों द्वारा सताया जाना दुर्भाग्यपूर्ण हैं।

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बुजुर्गों की दुखभरी दास्तान सुनकर अपनों से विष्वास उठ जाता है। जब अपने ही घरों से बेदखल कर दिए जाते हैं, वो भी उम्र के तीसरे पहर में। आखिर कहां चुक हो गई………….
कर्नाटक से एक शर्मसार कर देने वाली घटना सामने आई है जिसमें 80 साल के बुजुर्ग को हाथ-पैर बांधकर उसके दोनों बेटे डंड़े से पिटाई करते थे। इसी तरह की घटना अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में भी हुई थी और सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था। उसमें एक बेटी अपनी बुजुर्ग मां को चप्पल से मार रही थी। उसके घर के अगल-बगल के घरों से कुछ महिलाओं की चिखने-चिल्लाने की आवाजें आ रही थी कि अरे कैसी बेटी है, जो अपनी बूूढ़ी मां को मारती है। लेकिन इसके बावजूद भी उसके उपर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। उस बुजुर्ग महिला को किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। बस, शरीर बूढ़ा हो गया है।
      जबकि एक दिन तो सभी की बारी आने वाली है। क्या इस समस्या का समाधान सिर्फ वृद्धाश्रम है? आखिर मां-बाप बहुत ही मेहनत से अपने बच्चों की परवरिश करते हैं। फिर भी क्या वजह है कि बच्चे अपने मां-बाप को नहीं देखते हैं। मां-बाप अपने बच्चों से थोड़ा अपनापन और थोड़ा सा समय ही तो चाहते हैं। आखिर इसमें क्या बुराई है। क्या यह इच्छा करना गुनाह है? बच्चे सोचते हैं कि अब ये थक गए हैं। बेकार हो गए हैं। अब इनको हमारे सहारे की जरूरत है। एक समय वही मां-बाप अपने बच्चों की अंगुली पकड़ कर चलते हैं और जब वही बच्चे बड़े हो जाते हैं, तो अपने मां-बाप को ही बोझ समझने लगते हैं। ये समझने वाली बात है। ऐसे हालात में वृद्धाश्रमों का खुलना एक स्वभाविक है। कम से कम वहां एक दूसरे का सहारा तो बनेंगे, बड़े-बूढ़े अपने घरों से बेदखल कर दिए जा रहे हैं। उनके खान-पान, दवा-दारू और देखभाल के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। बूढ़ों को सताने में सबसे आगे खासतौर से बेटे और बहू ही होते हैं, लेकिन अब इस काम में बेटियां भी पीछे नहीं हैं।

     बुजुर्गों के लिए काम करने वाली एक संस्था के अनुसार अपने देश में आजकल हालत यह हो गई है कि दो में से एक बुजुर्ग अपने बच्चों द्वारा सताया जाता है। इतना ही नहीं उन्हें अपने ही घर से निकाल दिया जाता है। हालांकि पांच साल पहले यह संख्या पांच में से एक थी। बूढ़ों को सताए जाने के मामलों के अलावा जमीन-जायदाद प्रमुख मुददा (issue) होता है। जबकि कोर्ट बुजुर्गों के पक्ष में ही फैसला देती है। बच्चों को भी दण्ड देती है, मगर यह समस्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। अब से कुछ साल पहले तक बूढ़े अपने बच्चों और परिवार के लोगों की ज्यादती सहने के बावजूद कभी इस बात को दूसरों के सामने प्रकट नहीं करते थे,लेकिन सहने की भी एक सीमा होती है। यही वजह है कि अब बहुत से लोग कानून का सहारा लेकर अपने घरों से बच्चों को हटाए जाने की मांग करते हैं। सरकार ने बुजुर्गों के हिफाजत के लिए कानून तो बनाया है, लेकिन कानून बनाने से क्या फायदा। जब तक उसका पालन ही न किया जाए। कोई भी कानून कितना भी कारगर क्यों न हो, मगर अपनों के द्वारा ठुकराए जाने का जो मलाल होता है उसका क्या कोई इलाज है? जीवन के अंतिम सफर में उस अकेलेपन और अपमान के अहसास का क्या जो उनके करीबी जन कराते हैं? वे अपने मां-बाप को बार-बार यह अहसास दिलाते हैं कि अब हमको आपकी जरूरत नहीं है। उन्होंने जिनके लिए अपना सब कुछ लुटा दिया, अब वे ही दो वक्त की रोटी के लिए दुत्कारें जाते हैं। यह स्थिति किसी भी मां-बाप के लिए बहुत ही कष्टदायक हो जाती है। जब पति-पत्नी में से किसी एक के जीवित रह जाने पर स्थिति और भी खराब हो जाती है। न कोई सुनने वाला रहता है और न कोई कहने वाला।

     कई बुजुर्गों की कहानी बहुत ही दुखभरी (Sad) है। समाज भी उनकी परवाह नहीं करता है। एक बूढ़ी औरत बीमार है। वह वाॅकर (walker) से चलती हैं। फिर भी घर का सारा काम करती हैं। तीसरी मंजिल पर उनका घर है। इसलिए उनसे न कोई मिल सकता है और न वह किसी से मिल सकती हैं। फिर भी वह आए दिन अपने ही बेटे और बेटी से मार खाती है। जबकि अभी बेटे की शादी भी नहीं हुई है। लेकिन उनके मामले में कोई भी पड़ोसी कुछ नहीं बोलता है। जबकि उन्हें बेकार नहीं समझना चाहिए। उनके ज्ञान और अनुभव का लाभ नई पीढ़ी को जरूर लेना चाहिए। इसके बारे में समाज, सरकार और सभी परिवार वालों को गहराई से सोचना चाहिए, क्योंकि बुढ़ापा (old age)जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
प्रस्तुति:–संध्या रानी
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