तमिलनाडु और बंगाल में SIR विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- चुनाव आयोग दो हफ्ते में बताए, क्या प्रक्रिया पारदर्शी; हाईकोर्ट को सुनवाई रोकने का आदेश
मतदाता सूची पर उठे सवाल : DMK, TMC और कांग्रेस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, EC से जवाब तलब
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Supreme Court on SIR process: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया पर चुनाव आयोग से जवाब तलब किया है। कोर्ट ने आयोग को दो हफ्ते में रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया। साथ ही मद्रास हाईकोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट को इस मामले पर आगे की सुनवाई राेकने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि जब तक मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, तब तक किसी दूसरी अदालत में इस पर सुनवाई नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह बताने के लिए कहा है कि SIR प्रक्रिया पारदर्शी है या नहीं।
DMK, TMC और कांग्रेस समेत कई दलों की याचिका, AIADMK SIR के पक्ष में
तमिलनाडु और बंगाल में SIR प्रक्रिया को लेकर कई राजनीतिक दलों ने आपत्ति जताई है। DMK, CPI(M), TMC और बंगाल कांग्रेस इकाई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची से बड़े पैमाने पर नाम हटाने की कोशिश है। वहीं, तमिलनाडु की AIADMK पार्टी ने इस प्रक्रिया का समर्थन किया है और अपनी याचिका को भी मुख्य सुनवाई में शामिल करने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की। सभी पक्षों को सुनने के बाद यह आदेश पारित किया।
चुनाव आयोग ने कहा – घबराने की जरूरत नहीं, हर आपत्ति पर विचार होगा
चुनाव आयोग ने मद्रास हाईकोर्ट में पहले ही कहा था कि SIR को लेकर किसी को भी डरने की जरूरत नहीं है। आयोग के अनुसार, यह प्रक्रिया मतदाता सूची को अपडेट करने की है, जिसमें नई एंट्री जोड़ी जाएगी और गलतियों को सुधारा जाएगा। आयोग ने बताया कि 27 अक्टूबर को SIR की घोषणा की गई थी, जो 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 28 अक्टूबर से 7 फरवरी तक चलेगी। बिहार पहला राज्य है जहां यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। आयोग ने भरोसा दिलाया कि अंतिम वोटर लिस्ट सभी आपत्तियों पर विचार करने के बाद ही प्रकाशित की जाएगी।
क्या है SIR प्रक्रिया और क्यों जरूरी है
SIR यानी स्पेशल इंटेसिव रिवीजन का उद्देश्य, मतदाता सूची से दोहराए गए, मृत या विदेश लोगों के नाम हटाना और नए योग्य मतदाताओं का नाम जोड़ना है। यह प्रक्रिया 1951 से 2004 तक नियमित रूप से होती रही, लेकिन पिछले 21 साल से ठप थी। अब फिर से इसे एक्टिव किया गया है ताकि किसी भी राज्य में कोई अवैध वोट न रहे और कोई नागरिक वंचित न हो। इस दौरान बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) घर-घर जाकर जानकारी ले रहे हैं। मतदाता को अपने दस्तावेजों के साथ फॉर्म भरना होगा ताकि गलत या दो जगह दर्ज नामों को ठीक किया जा सके।
12 राज्यों में 5.10 करोड़ मतदाता, 5.33 लाख BLO तैनात
SIR प्रक्रिया 12 राज्यों,अंडमान निकोबार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, लक्षद्वीप, मध्य प्रदेश, पुडुचेरी, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में चल रही है। इन राज्यों में करीब 51 करोड़ मतदाता हैं। 5.33 लाख BLO और सात लाख से ज्यादा बूथ लेवल एजेंट्स (BLA) इस कार्य में जुटे हैं। मतदाताओं से आधार कार्ड, पासपोर्ट, पेंशन कार्ड, जाति प्रमाणपत्र, जन्म प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब आधार केवल पहचान प्रमाण के रूप में स्वीकार होगा, नागरिकता प्रमाण के रूप में नहीं।
राहुल गांधी ने उठाया था वोटर लिस्ट डिलीशन का मुद्दा
इस मुद्दे की राजनीतिक पृष्ठभूमि भी गर्म है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सितंबर में एक 31 मिनट की प्रस्तुति देकर आरोप लगाया था कि कई राज्यों में कांग्रेस समर्थकों के वोट जानबूझकर हटाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त लोकतंत्र नष्ट करने वालों की रक्षा कर रहे हैं। हालांकि, चुनाव आयोग ने इन आरोपों को पूरी तरह झूठा बताया और कहा कि ऑनलाइन किसी भी मतदाता का नाम डिलीट नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट अब इन सभी आरोपों और तर्कों पर विस्तार से सुनवाई करेगा।





