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साहित्य अकादेमी ने मनाई श्रीलाल शुक्ल की जन्मशती, संगोष्ठी और वृत्तचित्र प्रदर्शन

व्यंग्य को अस्त्र मानने वाले लेखक के योगदान को सराहा गया, वक्ताओं ने रागदरबारी, विश्रामपुर का संत जैसे उपन्यासों पर विचार रखे

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साहित्य अकादेमी ने प्रख्यात हिंदी कथाकार और व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल की जन्मशती के अवसर पर एक विशेष संगोष्ठी का आयोजन किया। इस अवसर पर साहित्य अकादेमी द्वारा निर्मित तथा शरद दत्त के निर्देशन में तैयार श्रीलाल शुक्ल पर केंद्रित वृत्तचित्र का प्रदर्शन भी किया गया।

अध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा – व्यंग्य और फैंटेसी ही है उपयुक्त माध्यम

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि जब सामाजिक विद्रूपता को उसकी पराकाष्ठा में व्यक्त करना होता है तो उसके लिए व्यंग्य या फैंटेसी ही उपयुक्त माध्यम होते हैं। उन्होंने कहा कि श्रीलाल शुक्ल ने व्यंग्य शैली को अपनाकर अपने समय से आगे की रचनाएँ दीं, जिन्हें वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता है।

सचिव के. श्रीनिवासराव और गोविंद मिश्र के विचार

अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा कि श्रीलाल शुक्ल का साहित्य समाज की वास्तविकताओं को सामने रखता है और व्यंग्य के माध्यम से सुधार की प्रेरणा देता है। वरिष्ठ साहित्यकार गोविंद मिश्र ने संस्मरण सुनाते हुए उन्हें मस्ती और अल्हड़ता से भरपूर व्यक्तित्व बताया। उन्होंने कहा कि शुक्ल जी मूलतः उपन्यासकार थे और उनकी औपन्यासिक दृष्टि अत्यंत विषद थी।

रामेश्वर राय ने दी गहन व्याख्या

अपने बीज वक्तव्य में रामेश्वर राय ने कहा कि श्रीलाल शुक्ल के लेखन की गहराई को समझने के लिए पारंपरिक आलोचना-औजार नाकाफी हैं। उनके उपन्यास आज़ादी के सपनों के टूटने, शहीदों से क्षमा प्रार्थना और इतिहास की आत्मस्वीकृतियाँ हैं।

परिवार के संस्मरण और व्यक्तिगत रुचियाँ

श्रीलाल शुक्ल की कनिष्ठ सुपुत्री विनीता माथुर ने अपने पिता के संस्मरण साझा किए। उन्होंने बताया कि शुक्ल जी को शास्त्रीय संगीत, शस्त्रों और खेलों में गहरी रुचि थी। परिवार ने उनसे विनम्रता, सरलता और उदारता के गुण पाए।

कुमुद शर्मा ने कहा – व्यंग्य बना अस्त्र

समाहार वक्तव्य में साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि शुक्ल जी ने व्यंग्य को एक अस्त्र की तरह इस्तेमाल किया और साठ के दशक के बाद के भारत की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों को सशक्त ढंग से सामने रखा।

व्यक्तित्व पर केंद्रित सत्र

इस सत्र की अध्यक्षता ममता कालिया ने की। उन्होंने कहा कि श्रीलाल शुक्ल अच्छे मनुष्य और लेखक थे, जिनकी बातें मजेदार और चुटीली होती थीं।

  • शैलेंद्र सागर ने कहा कि वे दूसरों पर अपने विचार थोपते नहीं थे और सबके विचारों का सम्मान करते थे।
  • अखिलेश ने उन्हें युवा ऊर्जा से भरपूर बताया और कहा कि वे नए लेखकों को पढ़ते और प्रतिक्रिया भी देते थे।

उपन्यासों पर केंद्रित सत्र

इस सत्र की अध्यक्षतानित्यानंद तिवारीने की। उन्होंने कहा कि रागदरबारी व्यंग्य और उपन्यास दोनों ही स्तर पर महत्वपूर्ण है।

  • विनोद तिवारी ने इसे डिस्टोपिया का उपन्यास बताया।
  • प्रेम जनमेजय ने विश्रामपुर का संतमकान और आदमी का जहर पर अपने विचार रखे।

उपन्यासेतर साहित्य पर चर्चा

इस सत्र की अध्यक्षता रेखा अवस्थी ने की। उन्होंने कहा कि शुक्ल जी की कहानियाँ अतिविशिष्ट हैं और व्यंग्य को वे शैली मानते थे, विधा नहीं।

  • सुभाष चंदर ने उन्हें हिंदी के पाँच श्रेष्ठ व्यंग्यकारों में गिना।
  • राजकुमार गौतम ने उनके विनिबंधों, कहानियों, रेडियो लेखन और साक्षात्कारों पर चर्चा की।

कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया। इस अवसर पर श्रीलाल शुक्ल के परिवार के सदस्य, देशभर से आए लेखक, साहित्यप्रेमी और विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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