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Women’s Day: मन का डाक्टर बनना है-अनुराधा बी के

महिला दिवस एक ही दिन क्यों मनाया जाता है? महिला दिवस तो हर दिन और हर पल है। वे शिवशक्ति हैं।

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इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो पता चलता है कि हर युग में महिलाएं काबिल रही हैं। भले ही उसकी संख्या कम हो, लेकिन उनकी काबिलियत पर अंगूली नहीं उठाई जा सकती। अब सवाल यह उठता है कि यह महिला दिवस एक ही दिन क्यों मनाया जाता है? महिला दिवस तो हर दिन और हर पल है। वे शिवशक्ति हैं। जीवन में आए किसी भी विघ्नों से हार नहीं मानने वाली एक छोटी सी लड़की की कहानी है जो किसी भौतिक चीजों के प्रति आकर्षित नहीं थी,बल्कि आध्यात्म के प्रति लगाव था। लेकिन माता-पिता को यह पसंद नहीं था और उन्होंने अपनी बिटिया को साफ मना कर दिया था कि तुम्हें उस रास्ते पर नहीं जााना है। फिर भी उस छोटी सी लड़की ने हार नहीं मानी। इसके लिए वह कितनी बार अपनी मां की पिटाई की शिकार भी बनी। लेकिन उसने वही किया जो उसे पसंद था।
वह लड़की कोई और नहीं, बल्कि सहारनपुर की रहने वाली अनुराधा अपने भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं। बचपन से ही वह बहुत अच्छा गाती थीं और पढ़ाई में भी बहुत होशियार थीं। इसलिए उनके बड़े भाई अपनी बहन को डाक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन होनी को भला कौन टाल सकता है। उनको तो ब्रहमाकुमारी संस्था में ही जाना था। उनके पिताजी खेती-बारी करते थे और गांव में रहते हुए भी अपने बच्चों के परवरिश में कोई कमी नहीं किए और बहुत अच्छे संस्कार भी दिए थे। सबसे छोटी होने की वजह से घर में वह बहुत लाडली थीं। 12वीं की परीक्षा के बाद वह अपने बड़े भाई के साथ दिल्ली आ गईं।
नौ साल की उम्र से ही वह ब्रहमाकुमारी के सेंटर पर जाया करती थीं। जब वह 9वीं क्लास में पढ़ती थी, तब उनकी बड़ी बहन इस संस्था के लिए पूरी तरह से समर्पित हो गईं थीं। हालांकि उनके मम्मी-पापा को यह बिल्कुल पसंद नहीं था। इसलिए इनको भी अपनी बड़ी बहन से मिलने के लिए मना कर दिया गया था। अनुराधा जब भी सेंटर या अपनी बहन से मिलने के लिए जाती थीं, तो उनकी बहुत पिटाई होती थी। उनके बड़े भाई भी इस ज्ञान मार्ग में चलते थे तो उनसे भी घरवाले सब खफा रहते थे। इसी वजह से एक समय ऐसा भी आया जब उनके बड़े भाई को घर से निकाल दिया गया। यहां तक कि अपनी जीविका चलाने के लिए उन्हें मजदूरी भी करनी पड़ी और वही अपनी बहन के स्कूल का फीस भी भरते थे। जबकि घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। फिर भी उनके मम्मी-पापा फीस नहीं देते थे। बहुत ही कठिन परिस्थितियों में अनुराधा की 12वीं क्लास की पढ़ाई हुई थी, क्योंकि सबसे पहले उन्हें घर का सारा काम करना पड़ता था। उसके बाद ही अपनी पढ़ाई के लिए समय निकालना पड़ता था। इस वजह से जितना समय अपनी पढ़ाई पर देना चाहिए  उतना वह नहीं दे पातीं थीं। बड़े भाई-बहन मां-बाप की तरह उनका ध्यान रखते थे। इस बात को मम्मी भी बहुत अच्छे से जानती थीं। यही वजह है कि उन्होंने कसम दिया था कि अगर तुमने कभी ब्रहमाकुमारी के सेंटर में कदम रखा तो मेरी लाश से होकर गुजरना पड़ेगा।
एक दिन बड़े भाई ने अपनी बहन से कहा कि ब्रहमाकुमारी में टीचर की ट्रेनिंग दी जा रही है। तुम यह कोर्स कर लो। जब वहां गई तो उसी दरम्यान उन्हें पता चला कि वह अपने क्लास में फस्ट आई हैं। यह उनके लिए सबसे बड़ी खुशी की बात थी। उसी समय उन्होंने निर्णय लिया कि अब आध्यात्मिक पढ़ाई ही करनी है और मन का डाक्टर बनना है।  इस ज्ञान में चलने से सबसे अच्छी बात यह हुई कि उनके घर-परिवार में जो संस्कारों का टकराव था उसमें धीरे-धीरे परिवर्तन आने लगा और उनकी मम्मी बिल्कुल शांत हो गईं जो इसके सख्त खिलाफ थीं।

प्रस्तुति-संध्या रानी
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