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प्रकृति के पास दोबारा पहुंचना होगा -प्रयाग शुक्ल

संस्कृत साहित्य में है पर्यावरण की सुरक्षा का वैश्विक निदान -अजय कुमार मिश्र

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साहित्य अकादमी द्वारा आज पर्यावरण और साहित्य विषयक साहित्य मंच कार्यक्रम का आयोजन किया गया। ‘स्वच्छता ही सेवा’ के अंतर्गत आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात  कवि,अनुवादक,कला समीक्षक एवं चित्रकार प्रयाग शुक्ल ने की और इसमें पंकज चतुर्वेदी, राजीव रंजन गिरि जसविंदर कौर बिंद्रा (पंजाबी) अजय कुमार मिश्रा (संस्कृत) और अनवर पाशा (उर्दू) ने अपने विचार व्यक्त किए।
         कार्यक्रम के आरंभ में सभी अतिथियों का स्वागत साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने अंगवस्त्रम भेंट करके किया। प्रख्यात पर्यावरणविद् और संपादक पंकज चतुर्वेदी ने पर्यावरण शब्द को आधुनिक मानते हुए कहा कि पर्यावरण, विकास की तरह ही एक नई अवधारणा है और अब पर्यावरण कोई सम्मानित शब्द नहीं रहा है। अब इसने चिंता का रूप ले लिया है। आगे उन्होंने कहा कि हमारे प्राचीन साहित्य में प्रकृति थी। उन्होंने ‘महाभारत’ के वन पर्व में युधिष्ठिर और मार्कण्डेय ऋषि के संवाद के आधार पर बताया कि कलयुग के लिए या आने वाले समय के लिए उनकी जो चिंताएँ थीं वो आज हमारे सामने प्रत्यक्ष आ खड़ी हुई हैं। जिसमें ऋतुओं का बदलना, तालाब-नदियों का सूखना, फलों के स्वाद-सुगंध का कम होना और प्रचंड तापमान शामिल है।
          आधुनिक हिंदी साहित्य में उन्होंने फणीश्वर नाथ रेणु, चंद्रकांत देवताले, अज्ञेय और भवानी प्रसाद मिश्र की कविताओं और नासिरा शर्मा के उपन्यास ‘कुइयां जान’ का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे यहां पर्यावरण की चिंता तो है लेकिन वह बहुत व्यापक रूप में सामने नहीं आई है। दिल्ली विश्वविद्यालय के राजीव रंजन गिरि ने कहा कि प्रकृति और पर्यावरण एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं लेकिन उनके अलग-अलग अर्थ और भाव हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य में प्रकृति का चित्रण प्रतीकों के रूप में तो बहुत है, लेकिन चिंता न के बराबर है। उन्होंने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, राजेश जोशी और अरुण कमल की कविताओं के उदाहरण और काशीनाथ सिंह की कहानी का उदाहरण देते हुए बताया कि हमारे साहित्य में पर्यावरण की कतिपय चिंता यदि है, तो समाधान नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रकृति पर विजय जब से विकास का पर्याय बनी है तब से मुश्किलें और बढ़ी हैं।
           प्रख्यात पंजाबी लेखिका, अनुवादक जसविंदर कौर बिंद्रा ने कहा कि पंजाबी साहित्य में पर्यावरण को वातावरण कहा जाता है। उन्होंने पंजाबी साहित्य में प्रकृति से जुड़े मुहावरे, गुरुवाणी और भाई वीर सिंह के लेखन से उदाहरण देते हुए बताया कि पंजाबी साहित्य में प्रकृति सदा ही उपस्थित रही है।
          प्रख्यात विद्वान अजय कुमार मिश्र ने संस्कृत साहित्य के बारे में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि संस्कृत साहित्य जितना प्राचीन है उतना ही नवीन भी है। अंग्रेजों ने जो हमारी ज्ञान परंपरा थी उसको ख़त्म किया, इस कारण ही हम प्रकृति और पर्यावरण से दूर हो गए। हमारे यहाँ के गुरुकुल में पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों का लालन-पालन और संरक्षण होता था। आगे उन्होंने कहा कि संस्कृत साहित्य में ही पर्यावरण की सुरक्षा का वैश्विक निदान है। यह संस्कृत साहित्य के पास ही उपलब्ध है। ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ और ‘मेघदूत’ के उदाहरण देकर उन्होंने प्रकृति और मनुष्य के बीच के सहज और गंभीर संबंधों को उजागर किया।
          उर्दू के प्रख्यात विद्वान, शिक्षा शास्त्री और जे एन यू के प्रोफेसर अनवर पाशा ने उर्दू साहित्य के बारे में बताने से पहले कहा कि आज का दिन, दो महान हस्तियों महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री का जन्मदिन है जिन्होंने हमेशा भौतिक विकास का विरोध किया और अपने पूरे जीवन में सादगी को प्रोत्साहित किया। उनके लिबास से भी उनका चिंतन, उनका दर्शन हमें हमेशा पर्यावरण की रक्षा के संदेश देते रहे। उनके सिद्धांत पूरी मनुष्यता की भलाई के लिए थे। उन्होंने कहा कि मनुष्य ने प्रकृति के साथ शैतान जैसा रिश्ता निभाया है जबकि उसे बचाने के लिए हमें उसके साथ फ़रिश्ता बनना होगा। उन्होंने कई उर्दू कविताओं, जिनमें पर्यावरण की त्रासदियाँ अंकित थीं, को प्रस्तुत किया।
         अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रयाग शुक्ल ने कहा कि हम बहुत आगे निकल आए हैं। अब पीछे लौटना संभव नहीं लगता। लेकिन फिर भी हमें पर्यावरण की सुरक्षा के लिए गम्भीर प्रयास करने आवश्यक हैं। आगे उन्होंने कहा कि साहित्य भविष्य की घटनाओं का संज्ञान तो लेता ही है लेकिन उसके पास निदान नहीं होता है। वह लोगों को केवल सजग कर सकता है। उन्होंने रामचंद्र शुक्ल को याद करते हुए कहा कि उन्होंने कहा था कि एक राष्ट्र केवल मनुष्य से नहीं बनता, बल्कि वहाँ के पर्वत, नदियों, झीलों, पशु-पक्षियों और वनस्पतियों से बनता है। हमें इसके वास्तविक अर्थ को समझना होगा, तभी शायद हम प्रकृति के पास दोबारा पहुँच पाएँगे। कार्यक्रम का संचालन हिंदी संपादक अनुपम तिवारी ने किया।
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