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WAR IMPECT : यूक्रेन में फंसे student’s ने लगाई सरकार से सीट बढ़ाने की गुहार

विदेश आने-जाने में भी बहुत पैसे खर्च होते हैं और टिकट भी बहुत महंगा होता है, पैसे को देखें कि अपने बच्चे को....student's parents

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यूक्रेन में युद्ध को देखते हुए अभी तक 17 हजार हमारे भारतीय स्टूडेंटस अपने वतन वापस आ चुके हैं। उन्हीं बच्चों में से नेहा और आस्था ने बताया कि वहां से वह कैसे और किस तरह से आने में सफल हुई।
नेहा केडिया की परेशानियां 
नेहा केडिया फोर्थ ईयर की मेडिकल की स्टूडेंट हैं। उसके यूनिवर्सिटी में तकरीबन दो-तीन हजार भारतीय बच्चे पढ़ते हैं। 25 जनवरी के बाद से जब वहां धीरे-धीरे तनाव बढ़ने लगा और वहां के बारे में टीवी पर खबरे आने लगी तो स्वाभाविक है कि मां-बाप अपने बच्चे को लेकर चिंतित तो होंगे ही और इसी वजह से वे बार-बार अपनी बिटिया को इंडिया आने के लिए कहने लगे। लेकिन नेहा को वहां कुछ भी वैसा नहीं लग रहा था और न ही कोई इस तरह की संभावना ही दिखाई दे रही थी। फिर भी उसे इंडिया आना ही पड़ा और अंत में वह 19 फरवरी को ही यहां आ गई। हालांकि उसकी पढ़ाई ऑनलाइन ही चल रही थी। इसलिए उसे यहां आकर कोई परेशानी नहीं हुई और न ही उसका क्लास ही मिस हुआ।neha
बिमला केडिया ने कहा 
बिमला केडिया एक वर्किंग महिला हैं और नेहा केडिया की मम्मी हैं। हरेक मां-बाप की तरह वह भी अपने बच्चे को लेकर चिंतित रहती थीं, लेकिन बच्चा जब दूसरे मूल्क में हो और वहां युद्ध की बात हो रही हो तो डर लगना तो स्वाभाविक ही है। इसीलिए उन्होंने पहले ही अपनी बिटिया को यहां बुला लिया, यह उनके लिए सबसे बड़ी खुशी की बात है। अभी भी वहां बहुत सारे भारतीय बच्चे फंसे हुए हैं। ईश्वर उनकी रक्षा करें। उनके मां-बाप पर क्या गुजरती होगी, इस बात को मुझसे अच्छा कोई नहीं समझ सकता है।
आस्था अत्रे की परेशानियां  

आस्था अत्रे (छात्रा) खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी की फस्ट ईयर की स्टूडेंट है। चार महीना पहले ही वह यहां से गई है। उसने तो सोचा भी नहीं था कि इतनी जल्दी उसे वापस भी आना पड़ेगा। जबकि उसका क्लास ऑफ लाइन चल रहा था। खबरों के द्वारा ही पता चला कि युद्ध होने वाला है। इसलिए कई बच्चे तो इंडिया आने के लिए अपना टिकट पहले ही करवा लिए थे। वह भी युद्ध की आशंका को देखते हुए 24 फरवरी को यहां आ गई थी। अभी भी उसके कई सारे फ्रेंडस खारकीव में ही फंसे हुुए हैं। खारकीव यूक्रेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और वे लोग बंकर में ही छिपे हुए हैं। बाहर बम गिर रहा है, लेकिन बंकर में खाने-पीने की सुविधाएं हैं। फिर भी पानी की किल्लत हो गई है। अब तो वहां आलम यह है कि एटीएम भी काम नहीं कर रहा है। वहां जो भारतीय हैं, वही लोग बच्चों को हेल्प कर रहे हैं। वहां से बच्चों को निकालने में भारतीय दूतावास भी मदद कर रही है।

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अंबिका अत्रे ने क्या कहा

अंबिका अत्रे जो आस्था की मां हैं। उनका कहना है कि हमलोग चार महीना पहले ही जाकर बेटी को वहां छोड़कर आए हैं। वहां के हालात को देखते हुए वह बहुत खुश हैं कि उनकी बिटिया परिवार के साथ है। आस्था और नेहा की मां का एक ही सवाल है कि पढ़ाई में अच्छे होने के बाद भी जब बच्चे मेडिकल नहीं निकाल पाते हैं तो बच्चों का इंटरेस्ट देखते हुए उसे विदेश भेजने का निर्णय लिया जाता है। वहां आने-जाने में भी बहुत पैसे खर्च होते हैं और टिकट भी बहुत महंगा होता है। पैसे को देखें कि अपने बच्चे को। पैसा तो फिर कमा लेंगे। हमारे लिए तो बच्चे ही कीमती हैं। अगर हमारी सरकार मेडिकल में सीट बढ़ा देती तो आज इतने सारे बच्चे विदेश की तरफ रूख तो नहीं करते।

-संध्या रानी

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