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प्रेम, सद्भाव व एकता के पर्व ईद- उल-फितर और अक्षय फल दायी अक्षय तृतीया का महत्व -ज्ञानेन्द्र रावत
हर देश वासी को भाई भाई के रूप में एक दूसरे को स्वीकार करें तथा प्रेम और सद्भाव से देश के उत्थान के लिए कार्य करें -डा.इदरीस कुरैशी
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समूची दुनिया में प्रेम, सद्भाव व एकता के लिए विख्यात ईद- उल-फितर जिसे मीठी ईद भी कहते हैं और मानव जीवन में अक्षय फलदायी अक्षय तृतीया जिसे आखी तीज भी कहते हैं, का पर्व है। जहां तक ईद- उल-फितर या मीठी ईद का सवाल है, ऐसा माना जाता है कि इस दिन पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब द्वारा बद्र की लडा़ई में जीत हासिल होने की खुशी में सबको मिठाइयां बांटी गयी थीं। इसीलिए इसको मीठी ईद कहा जाता है। यह भी कि इसी दिन पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब मक्का से मदीना के लिए निकले थे। इस खुशी में ईद मनाई गयी जो कालांतर में परंपरा बन गयी। कहा यह भी जाता है कि पहली ईद हिजरी संवत 2 यानी 624 ईसवीं में तकरीब 1400 बरस पहले मनाई गयी थी। असलियत में यह त्योहार प्रेम, मदद, सदभाव और सबको साथ लेकर चलने का संदेश देता है। साथ ही यह दिन गरीबों को दी जाने वाली जकात यानी दान देने के लिए भी जाना जाता है। कहते हैं जकात यानी दान सबसे बड़ा फर्ज है जो हर मुसलमान के लिए जरूरी करार दिया गया है। इस दिन सभी मुस्लिम भाई रमजान के पाक महीने के 30 दिन बाद अल्लाह की इबादत यानी सुबह की पहली प्रार्थना जिसे सलात अल फज्र कहते हैं, अदा करते हैं। उसके बाद खुशी में आपस में, पडो़सियों से गले मिलते हैं और एक-दूसरे को ईद की मुबारकवाद देते हैं। उसके बाद मेवों से बनी मीठी सेवइंयां-खीर, खजूर और सूखे मेवों-फलों को आपस में मिल बैठ-बांट कर खाते हैं-खिलाते हैं।
प्रिय भारतवासियों,आज ईद उल फितर का त्योहार पूरे भारत में ही नहीं अपितु दुनिया भर में मनाया जायेगा। यह त्योहार ईश्वर का एक इनाम है एक माह तक रोजे रखने के उपलक्ष्य में। हमारे देश में जो परिस्थितियां बन रही हैं वह ठीक नहीं है। एक सुंदर भारत की कल्पना हमारे बुजुर्गों की थी वह टूटती नजर आ रही हैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि उसे मूर्ति रुप दे। और हर देश वासी को भाई भाई के रूप में एक दूसरे को स्वीकार करें तथा प्रेम और सद्भाव से देश के उत्थान के लिए कार्य करें। ईद की सभी को मुबारक बाद।डा.इदरीस कुरैशीमहासचिव, आल इंडिया मुस्लिम बेकबर्ड क्लासेस फेडेरेशन, दिल्ली
यह विचित्र संयोग ही है कि इसी दिन अक्षय तृतीया जिसे आखा तीज भी कहा जाता है, का शुभ पर्व भी है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन सतयुग की शुरूआत हुई थी, इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था, विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम, नर-नारायण और हयग्रीव का अवतरण तथा ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का प्रादुर्भाव हुआ था। मुख्यतः यह पर्व धन-धान्य की देवी मां लक्ष्मी की पूजा का पर्व है। इस दिन की गयी पूजा-पाठ, जप-तप और स्नान-दान का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन किए गये दान का क्षरण नहीं होता यानी कर्ता को उसका अक्षय फल प्राप्त होता है। असलियत में यह दिन सर्व सिद्धिदायक माना गया है।
इसीलिए इस दिन सभी शुभ कार्य यथा- सगाई, शादी-विवाह, भूमि-भवन-वाहनादि का क्रय-विक्रय और विशेषतः स्वर्ण और स्वर्णाभूषणों का क्रय-विक्रय अति फलदायी माना गया है। इसी दिन धन-धान्य की देवी मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति हेतु आदर, श्रृद्धा और विश्वास पूर्वक लक्ष्मीजी के श्रीयंत्र की पूजा और श्रीसूक्त का पाठ किया जाता है ताकि घर धन-धान्य, सुख-संपत्ति,यश-वैभव आदि समस्त संपदाओं से परिपूर्ण रहे। यही इस पर्व का पाथेय है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं चर्चित पर्यावरणविद हैं।)