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सुदामा सेवा गीत

फिर जीवंत हो उठा भक्त और भगवान का पाँच हज़ार साल पुराना प्रेम

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सुरों में, शब्दों में दिल को छू लेने की शक्ति होती है। इसी के माध्यम से हम एक नन्हे बच्चे का ह्रदय झकझोर सकते हैं और भगवान तक भी अपने दिल की बात को पहुँचा सकते हैं। संगीत जगत के महानायक हरिहरन ने सुदामा सेवा गीत के जरिए हज़ारों-लाखों श्रोताओं के दिल को छूने का बखूबी प्रयास किया है बल्कि यूँ कहो कि यह जन-जन के अभियान की प्रेरणा है। अपने साथी कलाकारों– साक्षी होलकर और रैना हक़ के साथ इसे भक्ति और भावपूर्ण तरीके से संगीतबद्ध किया है। वहीं शब्दों को गीत में पिरोने का श्रेष्ठ कार्य किया है विनीत गर्ग ने।

‘कौन है सुदामा! ढूँढ़े वो कान्हा जिसको, मैं वो सुदामा…’ इस मधुर गीत के बोलों की खास बात यह है कि इसने पाँच हजार साल पुराने द्वापर युग के द्वारकाधीश कृष्ण और गरीब सुदामा के मैत्री संबंधों को एक बार फिर तरोताज़ा कर दिया है। भगवान और भक्त की दोस्ती की मिसाल के इस गीत को आप इस्कॉन द्वारका के यूट्यूब चैनल पर सुन सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि द्वारका सेक्टर-13 दिल्ली में भगवान कृष्ण के लिए श्री श्री रुक्मिणी द्वारकाधीश का भव्य इस्कॉन मंदिर निर्माणारत है। मंदिर निर्माण के लिए हरिहरन जी ने यह गीत गाकर भगवान के प्रति अपना प्रेम समर्पित किया है। उनके साथ लय में लय मिलाकर आप भी इस्कॉन द्वारका के इस भव्य कृष्ण मंदिर निर्माण में अपना सहयोग दें और बनें अपने कृष्ण के सुदामा। ज्ञात हो कि अब तक इस सुदामा सेवा अभियान से अब तक 42 हज़ार लोग जुड़ चुके हैं।

इन सुदामाओं के लिए यह प्रशंसनीय है कि परम भगवान कृष्ण अथवा अपने सखा की भक्ति के प्रति उन्होंने यह प्रथम कदम बढ़ाया है। मात्र 100 रुपए महीने की अल्प राशि प्रदान कर आप भी इस सेवा से जुड़ सकते हैं और पाँच साल की नियमित सेवा से सुदामा सेवक बन मंदिर जी में एक वर्ग फुट जगह अपने नाम से सुरक्षित करा सकते हैं। भविष्य में जब भी आप या परिवार का सदस्य इस मनोनीत नाम का अवलोकन करना चाहेगा तो एक कोड के जरिए इसे देखा जा सकता है। आप भी श्री श्री द्वारकाधीश के चरणों में अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के अभिलाषी हैं अर्थात सुदामा सेवा के इस अभियान में शामिल होना चाहते हैं तो इस नंबर 9953187871 पर संपर्क कर सकते हैं।

गरीब सुदामा ने ऐसे पाया मित्र का प्रेम

जब मित्रता की बात आती है, तो कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की मिसाल दी जाती है। अब आप कहेंगे, न तो वह समय है और न ही ऐसे दोस्त! पढ़ने और सुनने के लिए यह मिसाल सिर्फ एक मिसाल भर है। चलिए कुछ पंक्तियों में बीते युग का यह किस्सा दोहरा लिया जाए। शायद आप कहीं उससे स्वयं को जोड़ पाने का साहस कर सकें।

अनेकों कष्ट उठाकर गरीब सुदामा जब अपने सखा कृष्ण से मिलने द्वारकाधीश पहुँचे, तो कृष्ण ने भाव-विभोर होकर जिस आदर-सत्कार के साथ उनका स्वागत मिलाप किया, उसने सबको चकित कर दिया। सुदामा केवल कृष्ण के मित्र ही नहीं, परम भक्त भी थे। मित्र के मिलने पर भगवान ने उस पर अपना समस्त प्रेम उँडेल दिया, उसके सारे दुख हर लिए।

सच है कि भावों में अनन्य शक्ति है और भक्ति में प्रेम। सुदामा की भक्ति और कृष्ण का प्रेम वास्तव में एक मिसाल बन गया। एक पल के लिए सोच कर देखिए कि सुदामा की तरह भक्त बनकर क्या कृष्ण के प्रेम को आप भी पा सकते हैं। जी हाँ, बिलकुल आप भी इस प्रेम के अधिकारी हो सकते हैं, क्योंकि भगवान अपने सच्चे भक्तों का साथ कभी नही छोड़ते। जैसे-जैसे भक्ति बढ़ती जाती है, भक्त के प्रति भगवान का प्रेम भी बढ़ जाता है। कहते हैं कि आप भगवान के प्रति प्रेम करो, फिर आप उनके आदर्शों को अपनाने में सहजता महसूस करते हैं क्योंकि जिससे हम प्रेम करते हैं, उसकी बात को आसानी से मान भी लेते हैं। जान लीजिए, उधर भी यही नियम चलता है। जीवन का मित्र भले ही राह के किसी मोड़ पर आपका साथ छोड़ सकता है, पर यहाँ किसी धोखे की गुंजाइश नहीं है। बल्कि आप अपना उदाहरण प्रस्तुत कर दूसरों के लिए मिसाल बन सकते हैं और इस सिलसिले को आगे बढ़ा सकते हैं।

भले ही कृष्ण सुदामा की मित्रता बीते युग की कथा हो, पर कलियुग में भी सार्थक है। भगवान भी तो आदिकाल से सर्वव्याप्त हैं, तब भी थे, आज भी हैँ। बस, हमें देखना है कि हम कहाँ हैं! किधर जाना है! मंज़िल कहाँ है, लक्ष्य क्या है, रास्ता क्या है, साधन क्या हैं और जब इन सबके जवाब मिल जाएँ, तो बस उन्हें सिर्फ अपनाना ही तो है। कुछ समय के लिए सुदामा की भूमिका में आना ही तो है।

जो लोग वास्तव में अपने भावों को श्री हरि के चरणों में अर्पित करना चाहते हैं, उनके लिए हरिहरन जी का संदेश है कि भक्ति में अपार शक्ति है। मैंने भक्ति के लिए संगीत की राह चुनी, आप भी उनके सच्चे भक्त बनकर सुदामा सेवक की राह चुन सकते हैं।

प्रस्तुति-वंदना गुप्ता

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