राष्ट्रीय खुदरा नीति जल्द आनी चाहिए ताकि छोटे व्यापारियों को एक समान अवसर मिल सके
छोटे व्यवसायों को ई-कॉमर्स क्रांति की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए उनको तकनीकी समाधान प्रदान करते हुए सशक्त बनाना होगा
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कोविड-19 ने हजारों एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों) को बंद होने के कगार पर पहुंचा दिया है। लॉकडाउन, प्रतिबंधों से उबरनेके अलावा, वे नकदी के बड़े संकट का सामना कर रहे हैं, और इसने छोटे व्यापारियों की कमर तोड़ दी है। वैश्विक महामारी के कारण सेक्टर बुरी तरह प्रभावित हुआ है। तीसरी लहर में बढ़ते मामलों और तेजी से फैल रहे ओमिक्रोन वैरिएंट को देखते हुए, अनिश्चितता दिखाई दे रही है तथा बड़े और छोटे खुदरा विक्रेता और व्यवसाय केवल यही उम्मीद कर सकते हैं कि स्थिति और अधिक खराब न हो। राजस्व के सिकुड़ते स्रोतों के साथ, वित्तीय दबाव झेल रहे क्षेत्र को सुधारने में अभी लंबा समय लगेगा।
मई, 2021 में जारी एमएसएमई मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 63 मिलियन एमएसएमई हैं जो देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 29% का योगदान करते हैं। इस असंगठित क्षेत्र में 13 मिलियन से अधिक होरेका (होटल, रेस्तरां और खानपान) व्यवसाय और लगभग 12 मिलियन किराना स्टोर शामिल हैं। इस क्षेत्र का योगदान इतना है कि यह क्षेत्रीय असंतुलनऔरआय असमानता का समाधान और 110 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार के बड़े अवसर प्रदान करता है। एमएसएमई आर्थिक विकास की रीढ़ बने हुए हैं। 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने मिशन को प्राप्त करने हेतु देश के लिए इस विशाल उद्यमशील इकोसिस्टम को मजबूती प्रदान करना महत्वपूर्ण है। read more 10 करोड़ क्रिप्टो निवेशकों को क्रिप्टो रेगुलेशन बिल का इंतजार
वैश्विक महामारी के द्वितीय लहरके दौरान, मिनी लॉकडाउन और उससे संबद्ध प्रतिबंधों केकारण, पूरे भारत में कई छोटे व्यवसाय नष्ट हो गए हैं। कई छोटे खुदरा विक्रेता विशेष रूप से गैर-खाद्य (गैर-आवश्यक) सेगमेंट के खुदरा विक्रेता जैसेपरिधान, जूते, बर्तन, हार्डवेयर आदि बेचने वाले, शून्य बिक्री बता रहे थे, और दुकान बंद करने के लिए मजबूर हो गए थे। वर्तमान परिदृश्य में, राष्ट्रीय खुदरा नीति में तेजी लाना जरूरी है ताकि इस क्षेत्र में आसानी से व्यवसाय करने में बाधा पहुंचाने वाले कानूनों को सुसंगत बनाया जा सके।भारत के खुदरा इकोसिस्टम को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से तैयार की गई राष्ट्रीय खुदरा नीति, छोटे उद्यमियों और एमएसएमई को किसी भी नियामक उल्लंघन और दमनकारी मूल्य निर्धारण के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने में मदद करेगी जो उनके व्यवसाय और आजीविका को प्रभावित कर रही हैऔर उनके विकास को बाधित कर रही है। भारत सरकार के नीतिगत हस्तक्षेप से ई-टेलर्स और छोटे व्यापारियों, विशेष रूप से उन किराना दुकानों के लिएसमान अवसर उपलब्ध होगा, जो भारी छूट वाले खुदरा परिदृश्य में प्रतिस्पर्धा करने और प्रासंगिक बने रहने की कोशिश कर रहे थे।
व्यापार करना आसान बनाने और एमएसएमई को नकदी प्रदान करने के लिए सरकार समय-समय पर सहायक उपायों की घोषणा करती रही है। ऐसा ही एक उपाय पिछले साल घोषित ईसीएलजीएस (इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम) के तहत 3 लाख करोड़ रुपये का कोलेटरल-फ्री ऋण है, जो संकटग्रस्त व्यवसायों के लिए बड़ी राहत के रूप में आया है। हालांकि यह क्षेत्र लंबे समय से नियामक और अनुपालन आवश्यकताओं, लाइसेंसिंग तंत्र, कराधान की जटिलताओं और पर्याप्त नकदी (लिक्विडिटी) सुनिश्चित करने के लिए कार्यशील पूंजी की समस्याओं से जूझ रहा है।इन व्यवसायों को और अधिक वित्तीय सहायता और प्रत्यक्ष कर राहत की आवश्यकता है। छोटे खुदरा विक्रेताओं और एमएसएमई को अधिक लिक्विडिटी लाइन प्रदान करने के लिए, भारत सरकार सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट के अंतर्गत ऋण की सीमा को 2 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 5 करोड़ रुपये करने पर विचार कर सकती है।
इसके अलावा, कई वस्तुओं, जैसे कपड़ा, वस्त्र और जूतेआदि पर जीएसटी की दरों को5% से बढ़ाकर 12% कर दिया गया था, जिसेपहले के स्तर तक कम करने की आवश्यकता है। यह समय दो-स्लैब वाली व्यवस्था में स्थानांतरित करके जीएसटी दरों को युक्तिसंगत बनाने, कम करने और सरल बनाने के लिए उचित समय है। अनुपालन बोझ को हल्का करते हुए, करों कोघटाने से अर्थव्यवस्था में नकदी की स्थिति में सुधार होगा, और एक अनुकूल आर्थिक नीति छोटे व्यवसायों को ई-कॉमर्स क्रांति में शामिल होने में मदद करेगी।
लंबी अवधि के नजरिए से, सरकार को ऐसे नीति नियमन शुरू करने चाहिए जो नियामक बाधाओं को समाप्त करें और इस क्षेत्र की आर्थिक कठिनाइयों को कम करने के लिए साहसिक और सटीक संरचनात्मक सुधार पेश करे। सुधारों के अलावा, एमएसएमई को प्रौद्योगिकी और डिजिटल रूप से संचालित सेवाओं से काफी लाभ होगा जो अपेक्षाकृत समान अवसर के निर्माण को आगे बढ़ाते हैं। अधिकांश व्यवसायों के लिए, चाहे वे बड़े हों या छोटे, डिजिटलीकरण की भूमिका महत्वपूर्ण है। छोटे उद्यम प्रौद्योगिकी के प्रति अधिक ग्रहणशील हैं और डिजिटल हो रहे हैं क्योंकि कोविड-19ने उपभोक्ता की पसंद और व्यवहार में बदलाव ला दिया है। इस क्षेत्र में डिजिटल अपनाने पर, और नीतिगत सुधारों को विशेष रूप से एमएसएमई के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने पर सरकार को ध्यान देना चाहिए।
लेकिन डिजिटलीकरण के लिए महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है; कार्यशील पूंजी की कमी इस क्षेत्र के विकास की मुख्य बाधाओं में से एक है।
पीएम स्वनिधि (पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि) जैसी भारत सरकार की माइक्रोक्रेडिट योजना की तरह, जो छोटे उद्यमियों जैसे फेरीवालों और रेहड़ी-पटरी वालों को ऋण प्रदान करती है, भारत सरकार को आवेदन और अनुमोदन प्रक्रियाओं को अधिक सहज बनाना चाहिए ताकि मुद्रा (माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी) ऋण हासिल करना आसान बने और परेशानियों से मुक्त हो।
एमएसएमई और छोटे व्यवसाय मजबूत राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं; संपूर्ण विकासमें मदद करने के लिए, मांग और रोजगार के अवसर पैदा करने की उनकी क्षमता और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए उनको प्राथमिकता प्रदान करने की आवश्यकता है। एमएसएमई को फिर से मजबूती प्रदान करने से रोजगार के अधिक अवसर पैदा करने में मदद मिलेगी और इससे भारत को आत्मनिर्भर होने के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।
लेखक मेट्रो कैश एंड कैरी इंडिया के एमडी एवं सीईओ हैं और फिक्की के रिटेल एवं इंटरनल ट्रेड कमेटीके चेयरपर्सन हैं।