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ISKCON: कृष्ण प्रेम के लिए सुदामा सेवक बनें…

"जहाँ चाह वहाँ राह" बन ही जाती है। आप भी सुदामा सेवक बन उस राह को पकड़ सकते हैं, जो वैकुंठ को जाती है।   

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सेवा एक भाव है, भक्ति है, पूजा है, तरीका है आराधना का। जरूरी नहीं कि हर कोई इसे अपनाए पर अपनाना बेहतर है क्योंकि यह एक जरिया है वैकुंठ धाम जाने का। जहाँ जाने की लालसा हर एक की होती है। जी हाँ, इसकी शुरुआत हम इस लोक में उपस्थित कृष्ण मंदिर (द्वारका सेक्टर-13 स्थित रुक्मिणी द्वारकाधीश इस्कॉन मंदिर) निर्माण के द्वारा कर सकते हैं, जिसकी शुरुआत कुछ वर्षों पूर्व हुई। द्वारका एवं दिल्ली के लोगों के साथ-साथ विश्व के कोने-कोने से भक्तजनों ने इस निर्माण कार्य में अपना भरपूर योगदान देने का संकल्प किया है। कई क्षेत्रों के विशेषज्ञ इस संकल्प अभियान को आगे बढ़ाने में आगे आए हैं। इनमें डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, सी ए और व्यापार जगत के लोग पूर्ण स्वेच्छा के साथ ऊर्जावान रूप से जुड़े हैं। वे सामर्थ्य के अनुरूप स्वयं भी दान दे रहे हैं और अपने करीबी लोगों को भी इस मंदिर निर्माण (सुदामा सेवा) सेवा से जुड़ने को प्रेरित कर रहे हैं।

सच है कि जहाँ चाह वहाँ राह बन जाती है। आप भी सुदामा सेवक बन उस राह को पकड़ सकते हैं, जो वैकुंठ को जाती है, जहाँ हर प्रकार की खुशियों का आनंद ही आनंद है। अकसर ऐसे कामों में लोग कहते हैं कि हम सोचकर बताएँगे, अभी हाथ थोड़ा तंग है, कोरोना काल का दुष्प्रभाव है। पर आप जैसे ही सहयोग की सकारात्मक दिशा की ओर बढ़ते हैं, हर काम में सहजता अनुभव होने लगती है। जीवन में परिवर्तन होने लगता है। यह कोई जादुई कला या उपदेश नहीं, बल्कि विश्वास है, सेवा का भाव है, जो भगवान कृष्ण से जुड़कर पनपता है।

आपको पता ही है कि कोई पौधा लगाने के बाद जब कुछ दिन उपरांत उसकी कोपलें पनपती हैं, तो हमारे चेहरे पर मुसकान उभर आती है और धारणा बन जाती है कि अगर सही हवा, पानी और खाद मिलती रहे, तो यह बढ़ेगा, पनपेगा। सुदामा सेवा (मंदिर निर्माण सहयोग सेवा) को भी आप ऐसा ही पौधा समझिए, जिसे मात्र सौ रुपया महीने से आप लगा सकते हैं। पाँच साल तक नियमित रूप से ऐसे ही इस अल्पराशि से सेवा करते रहें। सुदामा सेवा से जुड़ने के बाद इस मंदिर के विशाल प्रांगण में एक वर्ग फुट जगह आपके नाम से अंकित की जाएगी। भविष्य में जब भी आपके परिवार से कोई अपने परिवार के सदस्य, जिसके नाम से दान किया गया था, अगर दानकर्ता नाम देखना चाहेगा, वह इस्कॉन की साइट पर और मंदिर आकर भी हमेशा वह नाम देख सकेगा।

रुक्मिणी द्वारकाधीश मंदिर, इस्कॉन द्वारका के ‘सुदामा सेवा’ अभियान से जुड़े रोहिणी सुता राम प्रभु का कहना है कि दरअसल, सुदामा सेवा बहुत सरल है। धनी व्यक्तियों के साथ-साथ आम लोग भी इस सेवा से जुड़ सकते हैं। अपने परिचितों को इस सुदामा सेवा योजना के बारे में बताएँ और उन्हें सुदामा सेवक बनाएँ। मात्र 6000 रुपए की यह सेवा भगवान की भक्ति के लिए कुछ भी नहीं। अब तक इस अभियान से 40 हजार लोग जुड़ चुके हैं। आप भी आज से ही इस सेवा से जुड़ने और अन्यों को जोड़ने का निश्चय करें। मेरा यही कहना है कि भगवान कृष्ण के प्रेम को पाने के लिए इस सुखद विचार से जुड़िए, इसके समर्थक बनिए। यकीनन भक्ति का यह मंच आपको खुशी प्रदान करेगा, सामर्थ्य को बढ़ाएगा और आपके विश्वास को मजबूती प्रदान करेगा। इस भक्ति सेवा भावना को और भी बढ़ाने के लिए आप नियमित इस्कॉन मंदिर जाने एवं पुस्तकें पढ़ने का संकल्प भी ले सकते हैं।

-वंदना गुप्ता —(लेखिका, पत्रकार और संपादक है।)

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