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ऐसे कैसे सुरक्षित रहेंगे बाघ-ज्ञानेन्द्र रावत

अगर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट की मानें तो दुनिया में बाघों की प्रजातियों के अस्तित्व को बनाए रखना मौजूदा हालात में उनके प्राकृतिक आवासों के लिए खतरा बना हुआ है।

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पिछले दिनों केन्द्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने घोषणा की है कि देश में राजस्थान के रण थम्भौर से लेकर मध्य प्रदेश के पन्ना तक वाइल्ड लाइफ कारीडोर बनाया जायेगा। इसका अहम कारण अभयारण्यों में क्षमता से बहुत अधिक बाघों का होना है। उनके अनुसार इससे मानव आबादी में हमले की आशंका बढ़ गई है। देखा जाये तो देश में वर्तमान में 51 टाइगर रिजर्व हैं। दुनिया के 71फीसदी बाघ यानी कुल मिलाकर 3000 के करीब बाघ हमारे देश में हैं। देश में सबसे ज्यादा बाघ मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तराखण्ड इन तीन राज्यों में हैं। छत्तीसगढ़, ओडिसा, बिहार, राजस्थान और पूर्वोत्तर राज्यों में इनकी आबादी कम है। सरकार की मानें तो 5 नये टाइगर रिजर्व बनेंगे। फिलहाल छत्तीसगढ़ के गुरू घासी दास नेशनल पार्क, राजस्थान के रामगढ़ विषधारी अभयारण्य, बिहार के कैमरू वन्यजीव अभयारण्य, अरुणाचल के दिवांग वन्यजीव अभयारण्य और कर्नाटक के एम एम हिल अभयारण्य को टाइगर रिजर्व के रूप में विकसित करने की सरकार ने मंजूरी दे दी है। नये टाइगर रिजर्व में पर्याप्त भोजन और सुरक्षा का बंदोबस्त होते ही नये घरों में बाघों को शिफ्ट कर दिया जायेगा।
     अंतरराष्ट्रीय ग्लोबल टाइगर फोरम के अध्ययन में इस तथ्य की पुष्टि हुई है कि भारत की स्थितियां बाघों के आवास के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं। अध्ययन में पाया गया है कि भारत में कुल मिलाकर 38,915 वर्ग किलोमीटर का इलाका बाघों के रहने लायक है। यही नहीं नेपाल और तिब्बत भी बाघों के आवास के लिए उपयुक्त है। नेपाल में यह इलाका 2.213 वर्ग किलोमीटर और भूटान में 11,543 वर्ग किलोमीटर बाघों के अनुकूल है। भारत, नेपाल और भूटान के हाई एल्टीट्यूड वाले पारिस्थितिक तंत्र में बाघों के आवास पर किए अध्ययन के बाद जारी रिपार्टे में तीनों देशों में तकरीबन 52,671 वर्ग किलोमीटर इलाका बाघों के अनुकूल पाया गया। यहां पर दक्षिण एशिया के उपरी हिमालयी इलाके के तीनों देशों के बाघों के आवास माने जाने वाले क्षेत्रों का ट्रैकिंग तकनीक, तस्करी से बचाव, पर्यावरण बदलाव, तापमान जैसे कई बिन्दुओं पर बाघों के रहने लायक क्षेत्र को आधार बनाकर बारीकी से अध्ययन किया गया था। इस अध्ययन में भारत के पश्चिम बंगाल, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड को शामिल किया गया था। इसमें कहा गया कि भारत और नेपाल में जंगलों की चढ़ाई बाघों के लिए मुश्किल नहीं है। यह इलाका पूरी तरह जंगलों से घिरा है और उच्च तापमान विविधता और मध्यम शुष्क स्थिति बाघों के लिए बेहद अनुकूल है। यहां के जंगलों में पानी के लिए उन्हें भटकना नहीं पड़ता और पानी के निकास के जहां सुगम रास्ते हैं, वहीं इन इलाकों में इंसानी दखल भी बहुत कम है। अध्ययन की मानें तो बाघों के आवास की दृष्टि से यह स्थिति संतोषजनक कही जा सकती है।
     मौजूदा हालात में अब बाघ खुद-ब-खुद नये गलियारे बना रहे हैं। इसके जीते – जागते सबूत हैं कार्बेट-नघौर के बाघ। इसकी पुष्टि तो वन विभाग ही कर चुका है। उत्तराखण्ड वन विभाग की मानें तो हैडाखान के अलावा यहां पिथौरागढ़ के अस्कोट व केदारनाथ में भी बाघों की मौजूदगी के सबूत मिले हैं। वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक अब पहाड़ के जंगलों में बाघ नये इलाके तलाश कर रहे हैं। खासकर बौरवैली से दचेौरी रेजं होते हुए नैनीताल शहर से लगे पंगूट के जंगलों तक, दाबका वैली से नैनीताल के विनायक तक और मोहान कुमखेत से बेताल घाट व अल्मोड़ा के जंगलों तक अब  पहुँच रहे हैं। डीएफओ नैनीताल टी आर बीजूलाल के अनुसार समुद्रतल से 4500 मीटर से अधिक की उंचाई वाले इस पहाड़ी इलाके में 2016 से कार्बेट-नघौर सैंक्चुअरी में बाघों की तादाद तेजी से बढी़ है। इसलिए बाघ नए इलाकों की तलाश में पहाड़ों की ओर रुख कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि अब बाघ पहाड़ के जंगलों पर भी राज करने की तैयारी में हैं। सच्चाई यह है कि 1288 किलोमीटर के क्षेत्रफल वाले इस इलाके में तकरीबन 250 से भी ज्यादा बाघ हैं। इस कारण अब उनको आवास, क्षेत्र और भोजन की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।जंगलों के अंधाधुंध कटान ने इसमें अहम भूमिका निभाई है। यह खुलासा वन्यजीव कारीडोर की स्थिति सहित इलाके की पारिस्थिति के अध्ययन के लिए बनी समिति ने किया है जिसने डिस्परसल कम्युनिकेशन एण्ड कंजरवेशन स्टडीज फॉर टाइगर इन कुमांयूं हिमालयन प्रोजेक्ट किया।
      अब जरा बाघों की तादाद और सरकारी दावों पर नजर डालें। 2014 से 2018 के बीच, यानी 2018 की गणना के मुताबिक 34 फीसदी यानी 741 बाघों की देश में बढ़ोतरी हुई।इसे दुनिया की सबसे बड़ी वन्य जीव गणना कहा जाता है। यह गणना असलियत में कुल 15 महीनों में पूरी हो सकी। इसमें 3,81,400 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र का सर्वे किया गया और 3,17,958 वन आवासों को खंगाला गया। सबसे बड़ी बात यह कि इसमें 2461 बाघों की फोटो मिलीं। यह कुल बाघों का 83 फीसदी है। 2014 में देश में कुल 2226 बाघ की तादाद आंकी गई थी।जबकि 2018 में यह बढक़र 2967 हो गई थी। जहां तक बाघ संरक्षित क्षेत्र की बात है, 2014 में यह आंकड़ा 692 था जो अब बढक़र 860 हो गया है। यही नहीं सामुदायिक संरंक्षित क्षेत्र की तादाद भी बढक़र 43 से 100 हो गई है। 2018 की गणना की मानें तो मध्य प्रदेश देश में सबसे ज्यादा 526 बाघ वाला प्रदेश बन गया जब कि कर्नाटक 524 पर दूसरा, उत्तराखण्ड 442 पर तीसरा सबसे अधिक बाघ वाला राज्य बना। उत्तराखण्ड में तो बीते सालों में 102 बाघ बढे़। गौरतलब है कि 2011 में कर्नाटक ने सबसे अधिक बाघ वाले राज्य का दर्जा मध्य प्रदेश से छीन लिया था जो 2018 में उसने पुनः हासिल कर लिया। छत्तीसगढ़ और मिजोरम में बाघों की तादाद घटी जबकि ओडिसा में यथावत है। महाराष्ट्र में यह तादाद 198 से बढ़कर 312 हो गई है। यहां बाघों के कुनबे में 122 नए बाघ जुड़े। पश्चिम बंगाल में यह तादाद 74 से बढ़कर 88 तक जा पहुंची। यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि नौ साल पहले रूस के सेटंपीटसबर्ग में 2022 तक बाघों की संख्यां दोगुनी करने के लिए दुनिया के 13 देशों ने एक लक्ष्य निर्धारित किया था। इसको भारत ने चार साल पहले ही हासिल कर लिया। इससे ग्लोबल टाइगर फोरम के अध्ययन के निष्कर्ष की भी पुष्टि होती है कि भारत बाघों के लिए सर्वोत्तम सुरक्षित स्थल है।
     विडम्बना यह कि हमारे यहां एक ओर जहां बाघों की तादाद में बढ़ोतरी के दावे किए जा रहे हैं, इसके लिए वन्यजीव अभयारण्यों का बेहतर प्रबंधन माना जा रहा है, वहीं देश में बाघों के शिकार में बढ़ोतरी होना कम चिंतनीय बात नहीं है। भले सरकार द्वारा बाघ संरक्षण की दिशा में लाख योजनाएं चलायी जाये, मगर असलियत में देश में बाघों के शिकार की गति बढ़ रही है। देखा जाये तो 2012 से हर साल 98 बाघ की मौत हुई हैं। सबसे ज्यादा 2021 में 126 की मौत हुई। इनमें 60 अवैध शिकार, सड़क हादसों व इंसानी संघर्ष में मरे। इनमें 44 मध्य प्रदेश, 26 महाराष्ट्र् और 14 कर्नाटक में मरे। बीते 8 सालों में 750 की मौत हुईं जिनमें 168 की शिकार से और 319 प्राकृतिक कारणों से मरे। बाघों की आपसी संघर्षों में मौतों के मामलों में भी बढ़ोतरी चिंता की बात है। असलियत यह है कि बाघ संरक्षित क्षेत्र या फिर अभयारण्य, कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। बीते सालों में तकरीब 350 करोड़ से अधिक की वन्यजीव उत्पादों की बरामदगी साबित करती है कि वन्यजीव तस्करों को किसी का भय नहीं है। अगर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट की मानें तो दुनिया में बाघों की प्रजातियों के अस्तित्व को बनाए रखना मौजूदा हालात में उनके प्राकृतिक आवासों के लिए खतरा बना हुआ है। सरकार बीते दस सालों में तकरीबन 530 से अधिक बाघों की मौत का दावा करती है जब कि वन्य जीव विशेषज्ञ यह तादाद उससे भी कहीं अधिक बताते हैं। इनके आवास स्थल जंगलों में अतिक्रमण, प्रशासनिक कुप्रबंधन, चारागाह का सिमटते जाना, जंगलों में प्राकृतिक जलस्रोत तालाब, झीलों के खात्मे से इनका मानव आबादी की ओर आना घातक है, मानव जीवन के लिए भी भीषण समस्या है।तात्पर्य यह कि आपसी संघर्ष और दिनों दिन बढत़े अवैध शिकार के चलते इनकी मौतों का आंकड़ा भी हर साल बढत़ा ही जा रहा है। बीते बरस एनटीसीए की सदस्य भाजपा सांसद दीया कुमारी ने आरोप लगाया था कि रणथंभौर अभयारण्य से 26 बाघ गायब हो गए। दुख इस बात का रहा कि प्रशासन इस बाबत चुप्पी साधे रहा। विचारणीय यह है कि जब वन्यजीव अभयारण्यों का प्रबंधन इतना बढ़िया है, उस हालत में बाघ कैसे गायब हो जाते हैं या शिकारियों द्वारा मार दिये जाते हैं, इसका जबाव किसी के पास नहीं है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं चर्चित पर्यावरणविद हैं।
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