प्रकृति से जो अमूल्य चीजें मिली हैं उनका बेवजह मिस यूज न करें -सुमन संथालिया
मैं बहुत ही सिम्पल और नेचुरल तरीके से दीपावली मनाती हूँ। और अपनी परंपरा को फाॅलो करती हूँ.....
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हमारे यहां ऐसी मान्यता है कि दीपावली के दिन भगवान राम चौदह वर्ष के वनवास के बाद जब अयोध्या आए तो उनके आने की खुषी में नगरवासियों ने दीप जलाए थे। इसीलिए हमारे यहां दीपावली त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार प्रतिवर्ष बहुत ही उल्लास के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। कई सप्ताह पहले से ही लोग इसकी तैयारी में लग जाते हैं। प्रसिद्ध एंटरप्रेन्योर और कलाकार सुमन संथालिया दीपावली के इस पावन त्योहार को किस तरह से मनाती हैं। आइए जानते हैं उन्हीं की जुबानीः–
मैं एक हाउस वाइफ ही नहीं हूँ बल्कि एक एंटरप्रेन्योर भी हूँ। मैं अपने घर के साथ-साथ दूसरे के घर को भी सजाती हूँ । इस त्योहार पर मैं अपने घर के लिए हर साल थोड़ा डिफरेंट प्लान करती हूँ। इसलिए अपने घर की साज-सज्जा करते समय सिम्पलिसिटी का विषेष रूप ध्यान रखती हूँ। इस बार दीपावली के लिए मैंने अपने घर का मेक ओवर किया है। मैँ अपने घर में पारंपरिक स्टाइल के साथ-साथ माॅडर्न टच भी देती हूँ।
लिविंग रूम में कुछ फेर बदल करके एक नया लुक देने की कोशिश करती हूँ। अब मौसम बदलने लगा है तो हल्के कलर की जगह डार्क रंग के कुशन कवर लगाती हूँ। एक तो दिखने में भी अच्छा लगता है और फेस्टिव लुक भी लगता है। कारपेट को चेंज कर देती हूँ। फर्नीचर के सेटिंग को भी बदल देती हूँ। इसके अलावा कमरे में पेड़-पौधे रखकर प्रकृति के सानिध्य का एहसास करती हूँ। मेरा मानना है कि बहुत मंहगे सामान से भी अपने घर को डेकोर कर सकते हैं। लेकिन इसके लिए इतना खर्च करना मैं ठीक नहीं समझती हूँ। वैसे तो अपनी-अपनी पसंद है। अपने आशियाने में साधारण चीजों को रखकर भी खूबसूरत बनाया जा सकता है, पर अपने बजट को क्यों अनावश्यक बिगाड़ना। इस पर सभी को एकबार जरूर सोचना चाहिए। इसलिए मैं सबसे गुजारिश करती हूँ कि अनावश्यक खरीदारी से बचें और अपने साधनों को नष्ट न करें।
दीपावली सुख, समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसलिए इस दिन गणेश और लक्ष्मी की पूजा होती है। मैं भी हर साल दीपावली के अवसर पर मिटटी के गणेश और लक्ष्मी जी की प्रतिमा खरीदती हूँ और पहले वाले का विसर्जन कर देती हूँ। हालांकि मैं कच्ची मिटटी की मूर्ति रखना चाहती हूँ। विसर्जन के लिए मूर्ति और पूजा की सामग्री को गंगा में नहीं डालती हूँ बल्कि मिटटी को खोदकर उसमें विसर्जित कर देती हूँ। इससे गंगा भी मैली नहीं होगी और प्रदूषण भी नहीं फैलेगा।
मैं बहुत कम फूलों से पूजा करती हूँ। क्योंकि मेरा मानना है कि इस समय सभी लोगों को प्रकृति के प्रति सजग रहने की आवश्यकता हैै। जब कम फूलों से पूजा हो सकती है, तो हजार फूलों की क्या जरूरत है। मैं प्रसाद के लिए खीर, हलुआ, लडडू और फल चढ़ाती हूँ। और उस दिन मिटटी के पारंपरिक दीये में सरसों तेल डालकर जलाती हूँ। हमारे यहां प्रथा है कि चांदी और सोने के सिक्के खरीदने की, तो मुझे भी लेना पड़ता है। बड़ों का मान रखने के लिए ये सब करना पड़ता है। हालांकि मुझे ये सब पसंद नहीं है। इस बार मुझे ब्रास की प्रतिमा लेनी है। ताकि इसे बार-बार चेंज नहीं करना पड़ेगा। भगवान को वस्त्र की जगह मौली और जनेउ पहना देती हूँ।हमारे यहां पंड़ित पूजा कराने के लिए नहीं आते हैं,लेकिन अब हमलोग खुद ही पूजा कर लेते हैं। मैं उस दिन कोई भी कपड़ें पहन लेती हूँ। ऐसा नहीं है कि नया ही पहनना है। पैसे की बर्बादी नहीं करती हूँ। दरअसल हमारे यहां दीपावली के नाम पर कोई बजट नहीं होता है। साथ ही हमारे घर में कोई पटाका भी नहीं जलाता है। मैं शुरू से ही बच्चों की ऐसी आदत डाली हूँ कि वे इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं।
मेरे लिए उपहार देने-लेने के लिए दीपावली का ही दिन नहीं होता है। कभी भी कुछ किसी को दिया जा सकता है। मैं राजस्थानी हूँ, तो उस दिन हमारे यहां भोग के लिए हलवा जरूर बनता है और हमारे यहां उस दिन खाने में सांगरी का साग जरूर बनता है। यह साग हमलोग के यहां दीपवाली पर बनना जरूरी है। हमलोग बाहर की मिठाई नहीं खाते हैं। मैं बहुत ही सिम्पल और नेचुरल तरीके से दीपावली मनाती हूँ। और अपनी परंपरा को फाॅलो करती हूँ। अंधविश्वासी होकर कोई काम नहीं करती हूँ। इसलिए रंगोली के लिए पैसे और समय की बर्बादी नहीं करती हूँ। सच पूछो तो मेरे लिए दीपावली के मायने ही अलग हैं। मैं कभी भी 11 या 21 दिये से अधिक नहीं जलाती हूँ। सभी इस दीपावली पर इस बात का खासतौर से ध्यान रखें कि प्रकृति से जो अमूल्य चीजें मिली हैं उसको बेवजह मिस यूज न करें।
प्रस्तुति-संध्या रानी
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