DMRC: प्रदूषण से बचाव के लिए एंटी स्मॉग गन
दिल्ली मेट्रो द्वारा कंस्ट्रक्शन साइटों पर प्रदूषण से बचाव के लिए एंटी स्मॉग गन का इस्तेमाल
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दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन अपनी कंस्ट्रक्शन साइटों पर प्रदूषण से बचाव के विभिन्न उपायों के रूप में 14 एंटी स्मॉग गनों का इस्तेमाल कर रहा है, जो समय-समय पर निर्माण कार्यों से उत्पन्न होने वाले धूल-कणों के वातावरण में बिखराव को हल्की फुहारों से रोकती हैं।
इस समय, फेज़-IV के साथ–साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दिल्ली मेट्रो की कुछ अन्य निर्माण परियोजनाओं के 12 सिविल कॉन्ट्रेक्ट चालू हैं। ये आधुनिकतम एंटी स्मॉग गनें 70 से 100 मीटर की दूरी तक हल्की फुहारें छोड़ने में सक्षम हैं। एक एंटी स्मॉग गन 20,000 वर्ग मीटर के क्षेत्र के लिए पर्याप्त मानी जाती है।
एंटी स्मॉग गनों के प्रयोग के दौरान यह सुनिश्चित किया जाता है कि छिड़काव के लिए इस्तेमाल होने वाला पानी कॉलीफोर्म, वायरस और बैक्टीरिया रहित हो। अधिक प्रभाव छोड़ने के लिए 10 से 50 माइक्रो मीटर वाली बूंदों के आकार के लिए अच्छी क्वालिटी के नोज़ल उपयोग में लाए जाते हैं। निर्माण कार्यों के क्रमिक विस्तार के साथ आने वाले दिनों में निर्माण स्थलों पर ऐसी और एंटी स्मॉग गनें लगाई जाएंगी। डीएमआरसी का पर्यावरण विभाग निरीक्षणों द्वारा यह ध्यान रखा जाता है कि साइटों पर ठेकेदार नियमित रूप से एंटी स्मॉग गनों का इस्तेमाल करते हों।
पारंपरिक तौर पर, पूरे विश्व में कोयला और सीमेंट निर्माण स्थलों पर एंटी स्मॉग गन का इस्तेमाल किया जाता है। नवंबर, 2016 में, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में डीएमआरसी संभवतः पहली ऐसी निर्माण कंपनी बनी जिसने एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में अपने निर्माण स्थलों पर एंटी स्मॉग गन का इस्तेमाल किया। निर्माण स्थलों पर एंटी स्मॉग गन के आरंभिक इस्तेमाल पर प्राप्त फीडबैक के आधार पर, डीएमआरसी के चौथे चरण के विस्तार कार्यों के लिए कॉन्ट्रेक्ट में इनके इस्तेमाल को अनिवार्य कर दिया गया है।
अब दिल्ली सरकार ने भी प्रदूषण से बचाव के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सभी निर्माण एजेंसियों के लिए एंटी स्मॉग गनों का इस्तेमाल करना अनिवार्य कर दिया है। जल छिड़काव करने, नोज़ल इत्यादि के संबंध में विस्तृत दिशानिर्देश भी जारी किए गए हैं।
डीएमआरसी अपने निर्माण स्थलों से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण के प्रभाव को कम करने के लिए एंटी स्मॉग गनों के नियमित इस्तेमाल के अलावा कई अन्य उपाय भी कर रही है। इन उपायों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए बैरिकेडों की प्रतिदिन सफाई की जाती है तथा किनारों से धूल साफ की जाती है। समस्त निर्माण सामग्री को उपयुक्त रूप से तिरपाल तथा अन्य सामानों से ढक कर रखा जाता है। साइटों से निकलने वाले वाहनों की उचित तरीके से सफाई की जाती है ताकि सड़कों पर धूल या मिट्टी न फैले। वाहनों में ले जाई जाने वाली सामग्री को भी पर्याप्त रूप से ढका जाता है।
भारत का समस्त उत्तरी भूभाग, विशेषकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अक्टूबर से दिसंबर माह के दौरान गंभीर प्रदूषण की गिरफ्त में रहता है।
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