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धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष: जानें महाशिवरात्रि पर चार पहर की पूजा का महत्व

आईये जाने क्या है शुभ मुहूर्त और आचार्यों के विचार

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आज यानि शुक्रवार को फाल्गुन की महाशिवरात्रि का त्योहार देशभर में बड़ी आस्था और धूमधाम से मनाया जा रहा है। शिवरात्रि पर रात्रि की पूजा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और जीवन के लिए लाभदायक होती है। साथ ही उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण चार पहर की पूजा होती है। ये पूजा संध्या से शुरू हो कर ब्रह्ममुहूर्त तक की जाती है।   इस पूजा में रात्रि का सम्पूर्ण प्रयोग किया जाता है। ये पूजा जीवन के चारों अंगों को नियंत्रित करती है। इससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, सब प्राप्त हो जाते हैं।
     महाशिवरात्रि के दिन शिव भक्त सच्ची निष्ठा के साथ भगवान शिव के नाम का उपवास यानि व्रत रखकर श्रद्धा भाव के साथ शंकर-पार्वती की पूजा-अर्चना करते हैं।
     महाशिवरात्रि पर चार पहर की पूजा करने का विधान है। आपको बताते है कि महाशिवरात्रि पर चारों पहर की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त।
महाशिवरात्रि पर चार पहर पूजन का शुभ मुहूर्त
प्रथम पहर पूजन मुहूर्त: 8 मार्च को रात में 6 बजकर 25 मिनट से 9 बजकर 28 मिनट तक
द्वितीय पहर पूजन मुहूर्त: 8 मार्च को रात में 9 बजकर 28 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक
तृतीय प्रहर पूजन मुहूर्त: रात में 12 बजकर 31 मिनट से 3 बजकर 34 मिनट तक (8-9 मार्च मध्यरात्रि)
चतुर्थ पहर पूजन मुहूर्त: मध्य रात्रि 3 बजकर 34 मिनट से अगले दिन सुबह 6 बजकर 37 मिनट तक।
     दिल्ली के प्रसिद्ध आचार्य और कथा वाचक नागेंद्र तिवारी ने महाशिवरात्रि पर चार पहर के पूजन का महत्व बताते हुए कहा कि   “भगवान शिव का सबसे बड़ा दिन महाशिवरात्रि को माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए आते हैं। इसलिए रात के समय में भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना का विशेष महत्व है। इसके अलावा चार पहर की पूजा करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त होता है। इसके अलावा चार पहर की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है। साथ ही व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।”
     आचार्य जी आगे बताते हैं  “महाशिवरात्रि के पर्व को बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस विशेष अवसर पर शिव भक्त भगवान शिव की बारात निकालते हैं। साथ ही साथ भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन व्रत भी करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से साधक को वैवाहिक जीवन से संबंधित सभी परेशानियों से निजात मिलती है। साथ ही दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।”
-ओम कुमार
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