‘मास वैक्सीनेशन’ ने भारत को Omicron वेरिएंट के प्रकोप से बचाया- साइंटिस्ट प्रज्ञा यादव
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नई दिल्ली. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की साइंटिस्ट प्रज्ञा यादव ने बताया कि चीन ने जैसे ही अपने यहां शुरुआती कोविड मामलों को रिपोर्ट करना शुरू किया था, पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने भी इस वायरस का पता लगाने के लिए टेस्टिंग सिस्टम विकसित करने की तैयारी शुरू कर दी थी। एनआईवी पुणे ने ही वुहान से लौटे 3 भारतीय छात्रों में कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाया था। भारत में कोरोना के पहले 3 केस यही छात्र थे।
वैज्ञानिक प्रज्ञा यादव ने कहा, हमें पता था कि महामारी आ रही है और भारत को इससे निपटने के लिए संसाधनों को जमा करना होगा। उन्होंने कहा कि ओमिक्रॉन वेरिएंट को लेकर हम आशंकित थे। लेकिन जनवरी के बाद हमें राहत मिली, जब ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमित अधिकांश मामलों में कोई लक्षण दिखाई नहीं पड़ रहा था। सकम मृत्यु दर के साथ कोविड का ओमिक्रॉन वेरिएंट बहुत ज्यादा प्रभावशाली नहीं था। बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन और जीनोम सिक्वेंसिंग ऐसे कारण थे, जिसकी वजह से हम ओमिक्रॉन को खतरनाम होने से रोकने में सक्षम रहे। Read More: पंजाब के छोटे शहर से कॉमेडी किंग बननें का सफर, जानिए यहां
वैक्सीन का ‘मिक्स एंड मैच’ डोज ज्यादा प्रभावी है
प्रज्ञा यादव ने कहा कि भारत ने अभी तक कोविड वैक्सीन के ‘मिक्स एंड मैच’ डोज (कोरोना की दो अलग-अलग वैक्सीन को मिलाकर एक डोज तैयार करना) पर कोई क्लिनिकल ट्रायल नहीं कि, और उनके परिणामों का अध्ययन करने पर पता चला है कि वैक्सीनया गया है। लेकिन अमेरिका में ‘मिक्स एंड मैच’ डोज पर दो क्लिनिकल ट्रायल हुए हैं के कॉकटेल डोज से बेहतर इम्युनोजेनेसिटी मिलती है।
ओमिक्रॉन वेरिएंट के लिए बूस्टर डोज की जरूरत
कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वेरिएंट के मामले में कोविशील्ड, कोवैक्सीन और दोनों के मिश्रण की खुराक ले चुके लोगों में एंटीबॉडी का स्तर 6 महीने के बाद घटने लगता है। राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी), पुणे के एक अध्ययन से यह संकेत मिला है। आईसीएमआर की वैज्ञानिक डॉ. प्रज्ञा यादव ने कहा कि कोविड-19 के डेल्टा और अन्य दूसरे चिंताजनक वेरिएंट के मामले में पहली खुराक में कोविशील्ड और दूसरी खुराक में कोवैक्सीन दिए जाने पर अच्छे नतीजे मिले हैं।