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Coal Crisis: आखिर क्यों देश में गहरा रहा कोयला संकट, जानें कारण

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नई दिल्ली. लगातार देश में कोल सकंट गहराता जा रहा है जिससे कई राज्यों में पॉवर कट की समस्या बन रही है। ऐसे में सरकार सवालों के घेरे में है । मार्च में बिजली मांग 8.9 फीसदी चढ़ी, जिसके पीछे बड़ी वजह आर्थिक गतिविधियां, खेत और घरेलू मांग में इजाफा होना रहा। ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, सुचारू बिजली आपूर्ति के लिए सरकार काम कर रही है। अब कंपनियां बिजली की कमी के लिए एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रही हैं। लेकिन महंगे बिल भरने के बावजूद आम जनता को कटौती से जूझना पड़ रहा है।

हड़ताल का असर 
1 अप्रैल से 15 अप्रैल 2022 के बीच कई खदानों में कोयले की ढुलाई हड़ताल और बाक़ी वजहों से प्रभावित हुई।  इस दौरान इस्टर्न कोल फ़िल्ड में 2 दिनों तक हड़ताल रहा.।CCL की 5 साइडिंग से क़रीब 10 दिनों तक कोयले की ढुलाई हड़ताल की वजह से बंद रही। MCL तालचेर में 3 दिनों तर हड़ताल रहा। राजस्थान के पर्सा कंटे से 11 की जगह केवल 4 रेक कोयले की लोडिंग हुई. NTPC के पाकरी बडवाडीह में 9 दिनों तक 8 की जगह महज़ आधे रेक की ढुलाई हुई। कोरबा कॉम्पलेक्स से हर दिन 12 की जगह केवल 6 रेक कोयले की ढुलाई हुई। यानि इस दौरान हर रोज़ क़रीब 35 रेक कम कोयले की ढुलाई हो सकी और इससे प्लांट्स का स्टॉक प्रभावित हुआ है।

थर्मल पावर प्लांट्स के पास कोयले के स्टॉक की कमी
दरअसल हर साल गर्मी बढ़ने के साथ ही इस तरह के संकट का सामना करना होता है। इसलिए पिछले साल यह तय किया गया था पावर प्लांट अपनी स्टॉक कैपेसिटी बढ़ाएंगे और कम मांग वाले सीज़न में ज़्यादा कोयला लेकर उसका स्टॉक करेंगे। Read More: मई में इतने दिन बंद रहेंगे बैंक, आरबीआई ने जारी की लिस्ट

मानसून का असर
बारिश की शुरुआत होते ही कोयले का संकट और बड़ा हो सकता है. इस दौरान न केवल कोयले की खुदाई प्रभावित होती है, बल्कि पानी की वजह से इसे लोड-अनलोड करने में भी ज़्यादा वक्त लगता है. इससे रेलवे के रेक ( मालगाड़ियों) का भी पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाता है।

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