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“ज़िन्दगी का सन्दूक”

हमने बहती हुई लहरों में से भी, कुछ सुख का सामान उठाया है....

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ज़िंदगी के संदूक से हमने ऐ दोस्तों थोड़ा सा वक्त चुराया है,
ग़मों पर डालकर रूमाल खुशियों वाला उसे कुछ पल के लिये सुलाया है।

जब चार दिन की है ज़िंदगी, फिर क्यूं इसको बर्बाद करें,
दो खाने में दो पीने में, यूं ही आने-जाने में हमने वक्त गंवाया है।
ज़िंदगी के संदूक से………

दुनिया को खुश करने की खातिर, अपनी खुशियों का दांव लगाया है,
क्यों परवाह करें उस दुनिया की, जिसने हमें सदा रूलाया है।
ज़िंदगी के संदूक से………

खोल के पिंजरा इस दिल का, खुद को खुद से आज़ाद करें,
ख्वाहिशों के पंखों को देकर थोड़ी सी हवा, हमने उसे उड़ाया है।
ज़िंदगी के संदूक से………

सागर की लहरों के जैसे इस जीवन में, सुख-दुख ने तूफान मचाया है,
हमने बहती हुई लहरों में से भी, कुछ सुख का सामान उठाया है।
ज़िंदगी के संदूक से………

एक दिन जाना है इस दुनिया से, फिर क्यूं हम खाली हाथ रहें,
उस खुदा की रहमत और उल्फत से, हमने अपना संसार सजाया है।

ज़िंदगी के संदूक से हमने ऐ दोस्तों थोड़ा सा वक्त चुराया है,
ज़िंदगी के संदूक से…….

वंदना हेमराज सोणावणे

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