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एक औरत ही आदमी को बेहतर बना सकती है

एक महिला को दूसरी महिला की जरूर मदद करनी चाहिए। तभी महिलाओं के जीवन में सही मायने में सुधार होगा

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“महिला दिवस हरदिन है” इसीको ध्यान में रखते हुए www.dainikindia24X7.com ने एक सप्ताह का आयोजन किया है. जिसमें हर तबके की महिलाओं से हम हर दिन रूबरू होते हैं। जिन्होंने अपने कार्यक्षेत्र में एक मुकाम हासिल किया है। इसी कड़ी में आज हम मिलते हैं प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका डाॅ मीता पंड़ित से संध्या रानी की खास बातचीत द्वारा……..

ग्वालियर घराने की गायकी से ताल्लुक रखने वाली डाॅ मीता पंड़ित हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक लक्ष्मण कृष्णराव पंड़ित की बेटी हैं। वे अपने परिवार की पहली महिला हैं जिन्होंने संगीत को अपने प्रोफेशन के रूप में अपनाया है। वे ख्याल, टप्पा, ठुमरी,भजन, तराना और सूफी संगीत गाने में बेहद निपुण हैं। वे अभी तक 25 देशों की यात्रा कर चुकी हैं। संगीत के लिए कई पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी मीता से बातचीत के कुछ अंश प्रस्तुत है………..

                                                                               इन दिनों महिलाओं पर काम का बोझ बहुत बढ़ गया है। एकल परिवार होने की वजह से  बहुत तरह की परेशानियों से उन्हें जुझना पड़ता है। यह परेशानी तब अधिक बढ़ जाती है जब पति समझने वाला नहीं होता है।

महिलाओं को घर का काम भी करना पड़ता है और बाहर का काम भी देखना पड़ता है। साथ ही बच्चे की भी जिम्मेदारी होती है। जबकि घर को चलाने में पति और पत्नी दोनों की अहम भूमिका होती है। प्रायः देखा जाता है कि महिला ही किचन संभालती हैं। आदमी को उससे कोई मतलब नहीं रहता है। संयुक्त परिवार में जिम्मेदारियां बंट जाया करती थीं, लेकिन एकल परिवार में तो सब कुछ स्वयं ही करना पड़ता है। इसके लिए समाज के साथ-साथ मां, दादी और नानी को ही जागरूक होना पड़ेगा, क्योंकि एक औरत ही आदमी को बेहतर बना सकती है।

हमारे परिवार में कोई रोक-टोक नहीं था। मेरे दो बड़े भाई हैं। मैंने अपने पिताजी को एक गुरू के रूप में ही देखा है। इसलिए अनुशासन के साथ-साथ सख्ती भी बहुत थी। हमारे घर का माहौल ही संगीतमय है। मैं अपने पिताजी से एक गुरू के तौर पर कोई भी समस्या के बारे में बात कर सकती थी। उनके कई शिष्य भी अपनी समस्याओं के बारे में जिक्र करते थे। वे एक सच्चे मार्गदर्शक की तरह हमें रास्ता बतलाते हैं। संगीत की विधा गाने-बजाने का ही माध्यम नहीं है, बल्कि व्यवहारशीलता भी है। मैं अपने को बहुत ही भाग्यवान मानती हूँ  कि पिता के रूप में मुझे ऐसे गुरू मिले हैं। इन्होंने हमेशा  मुझे प्रोत्साहित ही किया है। कभी कोई बंधन या अपना विचार नहीं थोपा है। यही वजह है कि मैंने एमबीए करने के बाद संगीत में पीएचडी की। मैं अभी तक 25 देशों की यात्रा अपने कार्यक्रम के दरम्यान कर चुकी हूँ।

हरेक इंसान के जिंदगी में दुख आते है। लेकिन उससे घबराना नहीं चाहिए। इससे हमारे अंदर परखने की शक्ति आती है। जिस रिश्ते में एक -दूसरे के प्रति सम्मान और प्यार नहीं हो। उस संबंध का जीवन में कोई महत्व नहीं रह जाता है।

महिलाओं को अपनी पसंद के अनुसार ही किसी प्रोफेशन को चुनना चाहिए। जबकि प्रायः देखा जाता है कि दूसरे ही इसका निर्णय करते हैं। जो की सरासर गलत है। यह निर्णय तो खुद लेना चाहिए। इसके लिए अपनी अंतर आत्मा की आवाज सुननी चाहिए। न कि दूसरे की बात को अहमियत देनी चाहिए। बचपन से ही महिलाओं को एक दायरे में सीमित कर दिया जाता है। जिससे उनकी मानसिकता भी वेैेसी ही हो जाती है। इसके लिए वे खुद ही जिम्मेदार होती हैं।

जबकि अपने जीवन को खुलकर जीना चाहिए। ईष्वर ने सबको विवेक दिया है। एक महिला को दूसरी महिला की जरूर मदद करनी चाहिए। तभी महिलाओं के जीवन स्तर में सच्चे अर्थों में सुधार होगा।

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