“विश्व को सुंदर बनाने का कौशल स्त्रियों में ही है”
यदि लड़के को सही संस्कार मिले तो वह गैंग रेप में शामिल नहीं हो सकता है
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अभी हाल ही में प्रख्यात कथाकार और व्यंगकार डाॅ सूर्यबाला को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का भारत भारती सम्मान से सम्मानित किया गया है। उन्होंने देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी अपनी रचनाओं का पाठ किया है। उनकी अनेक रचनाओं को आठवीं क्लास से लेकर बीए और एमए तक के पाठयक्रमों में शामिल किया गया है। कई कहानियां उनकी काफी लोकप्रिय हुई हैं। सृजन के कार्य में आज भी वह काफी सक्रिय हैं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के एक सप्ताह के आयोजन के उपलक्ष्य में डाॅ सूर्यबाला से बातचीत की संध्या रानी ने……………..
पहले से अब महिलाओं में काफी बदलाव आए हैं, लेकिन कुछ बदलाव अच्छे हुए हैं तो वहीं कुछ बुरे भी। अच्छे बदलाव को देखकर बहुत खुशी होती है तो वहीं बुरे बदलाव को देखकर दुख होता है। जब मैं छोटी थी तो देखती थी कि विधवाओं को किसी भी शुभ कार्य में सम्मलित नहीं किया जाता था। यह सब देखकर मुझे बहुत दुख होता था। देश की आजादी के साथ-साथ महिलाएं भी स्वतंत्र हो रही थीं। गांधीजी के आहवान पर महिलाएं घर से बाहर निकल कर आईं। उन्होंने आजादी की लड़ाई में हिस्सा भी लिया और चुनाव भी लड़ीं। उस समय महिलाएं एक अच्छे उदेश्य को लेकर चल रही थीं। लेकिन धीरे-धीरे पश्चिमी सोच से प्रभावित होती चली गईं। भारतीय सोच व परंपराओं से नहीं। परिवार, विवाह अतिरेक के प्रति सिर उठाने लगीं। वह आत्ममुग्ध और आत्मकेंद्रित हो गईं। दूसरों की खुशी के लिए कुछ करने में अपने को पिछड़ापन मानती हैं। जबकि आज की स्त्री भी विवाह करना चाहती है,पर अपनी शर्तों पर।
हमारी परंपरा बहुत ही सोच समझकर बनाई गई है। आज स्त्री और पुरूष दोनों ही दोषी हैं। किसी एक को कठघड़े में खड़ा नहीं किया जा सकता है। मगर जहां संतुलन की कमी है वहां स्त्री संतुलन बना सकती है। अगर जीवन में असंतुलन बढ़ जाता है, तो समाज असंतुलित हो जाएगा और विक्षिप्तों की संख्या बढ़ती जाएगी। परिवार बिखर जाएगा। मर्द, औरत और बच्चे सब अकेले रह जाएंगे।
आज की स्त्री बेशक आर्थिक रूप से मजबूत हुई है, लेकिन अपने अंदर गलत किस्म की आक्रामकता न लाएं। प्रकृति में भी देखा जाता है कि जिस पेड़ में फल लगता है वह भी झूक जाता है। कभी भी पुरूष से समानता के चक्कर में न पड़ें। आज के जमाने में स्त्रियों के लिए चुनौतियां बढ़ गईं हैं। परिवार में एक संतुलन लानी चाहिए। दुनिया में कोई भी काम भावना के वश में होकर ही किए गए हैं। पुरुष को भी समझना है। उसे बराबर का सहयोगी बनाना है। महिलाएं ही परिवार, समाज और विश्व को बहुत सुंदर बना सकती हैं। प्रकृति ने भी महिलाओं को सारे गुण दिए हैं। मेरा मानना है कि यदि किसी लड़के को सही संस्कार मिले तो वह गैंग रेप में शामिल नहीं हो सकता है। गृहणी होने पर भी स्त्री अपने आप पर गर्व करे और गृह कार्य के महत्व को अपने पति और बच्चे को भी समझाएं, क्योंकि विश्व को सुंदर बनाने का कौशल स्त्रियों में ही है। इसीलिए स्त्रियों को ज्यादा समझदार होना चाहिए। मशहूर फ्रांस की लेखिका सिमोन द बोउआर ने कहा कि स्त्री पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। तो पुरूष भी पैदा नहीं होता, बनाया जाता है।