रिश्तों की परिभाषा….
रिश्तों की सुनहरी डोर से बंधे हैं हम सभी, नहीं तो बिखर जाते हम कभी के कभी
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रिश्तों की परिभाषा जब हम ढूंढ़ने निकले,
झूम उठी पूरी बस्ती और हम भी झूम के निकले।
वहां देखा हमने कुछ ऐसा कि हम तो हो गये हैरान,
अजी वहां रिश्तों की ही ज़मीन थी और रिश्तों का ही आसमान।
वहां रिश्तों की ही खुश्बू से महक रही थीं हवाऐं और फ़िज़ाएं,
वहां हर रंग भी थे रिश्तों ने ही सजाये।
रौशनी भी रिश्तों ने ही चमकाई थी और
हर चेहरे पर मुस्कान भी वहां रिश्तों ने ही लाई थी।
हीरे-मोतियों से भी महंगा हर रिश्ते का मोल था,
सच पूछो! तो हर रिश्ता वहां अनमोल था।
जब रिश्तों के बिना देखा तो वहां बिल्कुल सुनसान था,
तब समझ में आया कि रिश्ता ही इस ज़िंदगी की जान था।
रिश्तों की सुनहरी डोर से बंधे हैं हम सभी,
नहीं तो बिखर जाते हम कभी के कभी।
संभालो सहेज कर रख लो इन रिश्तों को दिलों में अपने,
क्यूंकि ये कोई पराये नहीं ये तो हैं आपके अपने।
और हम आपको ये क्यूं कह रहे हैं क्यूंकि……
रिश्तों की परिभाषा जब हम ढूंढ़ने निकले
झूम उठी पूरी बस्ती और हम भी झूम के निकले…….
-अंजू सागर भंडारी