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बैसाखी और नवरात्रि की धूम में गूंज उठी आज़ान…

"माता की कृपा, अल्लाह का करम और वाहेगुरूजी दी मेहर" एक साथ हर इंसान पर बरसने को तैयार है

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इस कठिन दौर में जब हर ओर इंसान त्राही-त्राही कर रहा है वहीं दूसरी ओर माता की कृपा, अल्लाह का करम और वाहेगुरूजी दी मेहर एक साथ हर इंसान पर बरसने को तैयार है और यही शुभ संदेश दे रही है इस शुभ संयोग के माध्यम से कि सभी जब छोटे-बड़े दायरों से निकल कर सिर्फ और सिर्फ मानवता को अपनायेंगे और प्रेम व भाईचारे के फूल खिलायेंगे तब कुदरत का ऐसा करिश्मा देखने को मिलेगा जहां अमन के फूल खिलेंगे, खुशियों की छाएगी बहार और हम सब मिलकर मनाएंगे सभी तीज-त्योहार…..
साल 2021 अपने साथ एक ऐसा शुभ संकेत लेकर आया है जिसे देखकर अब दुख और निराशा के बादल छंटते नज़र आ रहे हैं। जी-हां 13 अप्रेल 2021 के दिन ऐसा पावन संयोग बन रहा है जहां एक ओर हिंदुओं के नवरात्रि, मुसलमानों की रमज़ान और सिखों की बैसाखी एक ही दिन द्वार पर खुशियों की दस्तक लेकर पधारे हैं। इसी पावन मौके पर कुछ हिंदु-मुस्लिम और सिख भाइयों से इस शुभ संयोग के बारे में चर्चा की हमारी संवाददाता अंजू सागर भंडारी ने….

स्वामी श्री चेतनानंद जी महाराज (कामाख्या धाम वाले)
संयोग ये जो शब्द है ये इतना ”बड़ा“ है जिसमें ये जो तीनों का मेल हो रहा है न! ये जो इंसानी जितनी भी कोशिशे हैं जो इस संसार में घटती हैं उन सबसे ऊपर है। और ”शुभ“ है। हमारे यहां सनातन पद्धति में ऐसा कहा गया है कि मेहनत, बुद्धि और ताकत से जीवन में कोई चमत्कार नहीं होता। जब भी कोई चमत्कार होता है संयोग से होता है। हनुमान जी का दूसरा नाम संयोग है। रामायण में जब सुग्रीव और प्रभु राम के मिलन का शुभ संयोग बनाया था हनुमान जी ने तब दोनों के ऐसे काम हुए जो असंभव थे। मतलब हमारी सोच के बाहर। अब कोरोना काल में ये मत सोचिए कि से इसके कारण हुआ या उसके कारण क्यूंकि सबहिं नचावत राम गौंसाईं। ये जो बागडोर है सब महामाया के हाथ में है।  महामाया का पर्यायवाची शब्द है ’ब्रह्म’, ’सर्वव्यापक’, सर्वशक्तिमान। आज पहला नवरात्रि है, रोजे भी शुरू हो रहे हैं और बैसाखी भी है। जिस प्रकार हनुमानजी ने संयोग बनाया तो विचित्र घटना घटी सुग्रीव को राजपाठ मिला और सीताजी की वापसी हुई उसी प्रकार आज का ये जो शुभ घटनायें घटने जा रही हैं ये इंसान की सोच से परे हैं। इस शुभ संयोग को तो आप ये मान कर चलिये कि कुछ न कुछ सुखद बड़ी बात इस संसार में होने जा रही है। मैं केवल देश की बात नही कर रहा हूं बल्कि पूरे विश्व की बात का रहा हूं। कुछ ऐसा घटने  जा रहा है जो आपके और हमारे सबके हित में है। कोरोना वायरस को तो लोग ऐसे भूल जायेंगे जैसे कि एक बुरा सपना। गोपालदास नीरज की चंद पंक्तियां हैं जो मैं अक्सर अपने जनजागरण अभियान की सभाओं में संबोधित करते समय सुनाया करता हूं।
अब तो मज़हब कोइ ऐसा भी बनाया जाऐ,
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जायेआग जलती है यहां गंगा में, झेलम में भी
कोई बतलाए कहां जा के नहाया जाये मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूं भूखा तो तुझसे भी न खाया जाये।।अर्थात जब किसी व्यक्ति को मालूम पड़ता है कि आप उसके परिवार के लिये कुछ अच्छा कर रहे हैं तो वह आप पर फिदा हो जाता है। महामाया ने ऐसी खूबसूरत रचना की है। इतनी खूबसूरत सृष्टि बनाई है और आप इसमें कोई अच्छा काम करिये जिससे मां आप पर प्रसन्न हो जाये। इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है।इस समय सनातन धर्म उज्जवलित हो रहा है। और अब कुछ न कुछ तो करिश्मा होना ही है। ऐसे शुभ संयोग पर हम यही संदेश सभी को देना चाहते हैं कि आप छोटे-छोटे दायरों से उठिये और एक-दूसरे को सीने से लगा कर इकट्ठे हो जाइये। क्यूंकि किसी ने कहा है न कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। यदि दुनिया के सारे अच्छे लोग, सारे धर्म गुरू इकट्ठे हो जायें, सारे राजनेता इकट्ठे हो जायें। तो चमत्कार घटित हो सकता है। यह कोई मुश्किल काम नहीं है। महामाया की ऐसी कृपा बरस रही है और इस बार महामाया कोई बहुत बड़ा परिर्वतन सृष्टि में करने जा रही है और इसी वजह से से संयोग बन रहा है। ताकि सभी धर्मों के लोग एक साथ जुड़ें।

                                                              हाज़ी मोहम्मद नईम (व्यापारी)
यह तो मालिक का बहुत बड़ा करम और इनाम है कि वह ऊपर बैठा सब दिखा रहा है कि देखें मैंने तो कोई  भेदभाव नहीं रखा है। मैंने तो सिर्फ एक इंसान बनाया था। लेकिन लोगों ने अपने फायदे के लिये उन्हें गलतफहमी में डालने की कोशिश की है। हमने अपने बड़ों से सिर्फ एक ही बात सीखी है- हिंदु मुस्लिम, सिख इसाई हम सब हैं भाई-भाई। कोई भेदभाव नहीं है, कोई फर्क नहीं है। एक ऐसा समय था जब एक मुसलमान भाई हिंदु के घर में बैठकर नमाज़ पढ़ा करता था और हिंदु भाई खुद उसे वह जगह साफ करके देता था और साफ कपड़े देता था। लेकिन आज कुछ गलतफहमियों ने दिलों में इतनी दरार डाल दी है कि हिंदु-मुसलमान को और मुसलमान-हिंदु को देखकर ना जाने क्यूं परेशान है। इस संयोग के माध्यम से अल्लाह ने एक खूबसूरत मौका हमें दिया है कि इंसान अपनी इंसानियत को समझे। उसने नवरात्रि, रमज़ान और बैसाखी एक ही दिन ला कर दिखा दी ताकि इंसान अपनी नींद से जागे और इंसान अब भी ना जागे तो लानत है ऐसे इंसान पर। हमारे धर्म में रमज़ान के इस पाक़ महीने का बहुत ही महत्व है। इस महीने में हम उस खुदा की, उस अल्लाह की इबादत करते हैं, उसके करीब होने की कोशिश करते हैं और हमसे जो साल-भर में गुनाह किसी भी कारण से हो जाते हैं हम उनकी माफी उस खुदा से मांगते हैं। और यही प्रार्थना करते हैं कि हमारा आने वाला साल अच्छे से अच्छा हो और खुशियां लेकर आये। जिस वतन की सरज़मी पर हम पैदा हुए हैं उसे यूंही सजदा करते रहें, यही हम अपने बच्चों को भी यही शिक्षा देते हैं। हम भारतवासी हैं और भारतवासी ही रहेंगे। आज के इस शुभ मौके पर हम सभी देशवासियों से यही गुज़ारिश करेंगे कि जिस प्रकार उस भगवान ने कोई भेदभाव नहीं रखा है हम भी कोई भेदभाव न रखें और इंसान-इंसानियत को देखे, उसकी भावनाओं को देखे। छल-कपट न हो किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो। धर्म को याद रखें, कर्तव्य को न भूलें और सर्वप्रथम इंसानियत की दृष्टि रखें।
               हरविंदर सिंह बाॅबी (अकाली दल सरना ग्रुप के स्पोक्सपर्सन व  जरनल सेकरेट्री यूथ दिल्ली)
                                                              ये बड़ी ही अच्छी बात है कि कुदरत ही आपको संदेश दे रही है कि “मानस की जात सबै एकै पहचानबो”  (Every human life is same and equal) नवरात्रि, रोज़े और बैसाखी एक ही दिन आई है। मैं आज के इस शुभ संयोग के दिन यही संदेश देना चाहता हूं कि हम अपने-अपने धर्म के प्रति दृढ़ रहें और दूसरे धर्मों का सम्मान करें। हम सिखों में बैसाखी का बड़ा ही महत्व है। 13 अप्रैल 1699 को वैसाखी वाले दिन खालसा पंथ की सृजना की थी। और दूसरा ये आज का खास दिन जुड़ा है हमारे किसानों से। इस दिन खेतों में फसलें तैयार हो कर घर आती हैं। और खुशियां ही खुशियां लाती हैं। लेकिन बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि हमारा आज का किसान रास्ते पर खड़ा है। जो पूरे देश का पेट भरने वाला किसान आज अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए सरकार के सामने बेबस होकर रास्ते पर खड़ा है। आज के इस सुंदर संयोग पर हम वाहेगुरूजी से यही अरदास करते हैं कि हमारे देश के किसानों को न्याय मिले और वह सड़कों पर नहीं बल्कि शान से अपने घरों में अपने हक की रोटी खाये और खुशहाल ज़िंदगी जिये। हम नवरात्रि, रोज़े और बैसाखी के इस सुनहरे मौके पर सभी देशवासियों को यही संदेश देना चाहते हैं कि जिस प्रकार एक गुलदस्ते में तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूल होते हैं उसी प्रकार हमारा देश एक सभी धर्मों का देश है। अलग-अगल भाषाऐं हैं, अलग-अलग पहचान हैं। लेकिन फिर भी हम सब एक हैं। उसी प्रकार अलग-अलग धर्म होने के बावजूद भी हम सभी सर्वप्रथम भारतीय हैं। अपने-अपने धर्मों की खुश्बू फैलाते हुए हम सभी खुशहाल रहें, वाहेगुरूजी से यही विनती करते हैं।

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