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बहू / बेटी

महिला सप्ताह स्पेशल में औरत का एक और दिल को छू लेने वाला पहलू

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जैसा कि हम सभी जानते हैं कि औरत के अनेक रूप हैं जिनसे उसने इस दुनिया को रूपमयी बनाया है उन्हीं रूपों में सबसे मधुर और कोमल रूप है बेटी का! लेकिन हमारे समाज का बड़ा ही अजीब प्रारुप है जिसमें जब वही बेटी किसी के घर की बहू बन जाती है तो उसे अनेकों जिम्मेदारियों के बोझ तले यूं दबा दिया जाता है जैसे कि उसका स्वयं का कोई अस्तित्व ही न हो, जैसे उसे किसी ममता या प्यार की ज़रूरत ही न हो….

       बहू / बेटी

बेटी तो है जिगर का टुकड़ा
बहू आँखों में खटकता कंकड क्यूं
बेटी पर तो प्यार लुटाते और
बहू को दिनभर ताने सुनाते
बेटी का दुख सहन न हो
बहू का दुखना नाटक है
बेटी को आराम मिले यही कामना होती है
बहू कामचोर है कहलाती,अगर दोपहरी सोती है
बेटी से कुछ गलती हो तो
बच्ची है सीख ही जाएगी
अगर हो जाये बहू से गलती
अक्कल तुझे कब आएगी
बेटी ही है दुआओं में शामिल
भले हमें दवा बहू ही देती है
आखिर क्यूं है यूं ममता का बटवारा
बहू भी तो आखिर किसी की बेटी होती है
बात-बात में बात को समझो
बस एक नज़र का फेर है यारों
एक बार तो बहू में भी ”बेटी“ की छवि निहारो
एक बार तो बहू को भी प्यार से
”बेटी“ कहकर पुकारो !!
-अंजू सागर भंडारी

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