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“परिवार”
हम इस दुनिया में चाहे कितने भी पढ़-लिख जायें, चाहे कितनी भी तरक्की कर लें, कितने भी विद्वान, धनवार, शोर्यवान, ख्यातिवान बन जायें लेकिन हमें अपनी जड़ों को कभी नहीं भूलना चाहिये। क्यूंकि उन्हीं जड़ों ने हमें सींच-सींच कर हरा-भरा बनाया है……….जी-हां परिवार हमारी जड़ें हैं इसीकि वजह से आज इन ऊचाइयों पर हम खड़े हैं।
किसी ने पूछा परिवार क्या है?
इससे पहले कि हम बोलते आंखें छलक गई,
हमने कहा, अरे भई!
परिवार क्या है ये न पूछो
परिवार क्या नहीं है!! ये ज़रा सोचो
परिवार संस्कारों की पाठशाला है।
परिवार प्रेम की मधुशाला है।
परिवार लोरी है,स्टोरी है दादा-दादी की।
परिवार हिम्मत है, ताकत है पिता की।
हमारा पोषण करती है जो उम्रभर,
जी-हां परिवार,
मां की ऐसी भोजनशाला है।
जहां स्नेहभरा हर निवाला है।
अजी परिवार ही तो है,
जिसने पल-पल हमें पाला है।
जब दुनिया ने ठुकराया तब,
परिवार ही तो है जिसने हमें संभाला है।
इसीलिये तो जब किसी ने लिया परिवार का नाम,
तो आभार और प्रेम से छलका हृदय का प्याला है।
परिवार संस्कारों की पाठशाला है।
परिवार प्रेम की मधुशाला है।
परिवार मां की भोजनशाला है।
अरे भई परिवार ही तो है, जिसने पल-पल हमें पाला है…..
पल-पल हमें पाला है…..
हमारा पोषण करती है जो उम्रभर,
जी-हां परिवार,
मां की ऐसी भोजनशाला है।
जहां स्नेहभरा हर निवाला है।
अजी परिवार ही तो है,
जिसने पल-पल हमें पाला है।
जब दुनिया ने ठुकराया तब,
परिवार ही तो है जिसने हमें संभाला है।
इसीलिये तो जब किसी ने लिया परिवार का नाम,
तो आभार और प्रेम से छलका हृदय का प्याला है।
परिवार संस्कारों की पाठशाला है।
परिवार प्रेम की मधुशाला है।
परिवार मां की भोजनशाला है।
अरे भई परिवार ही तो है, जिसने पल-पल हमें पाला है…..
पल-पल हमें पाला है…..
–अंजू सागर भंडारी
फोटो -भूपिंदर सिंह