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देश भयावह संकट के दौर में है–ज्ञानेन्द्र रावत

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आज देश कोरोना के चलते भयावह संकट के दौर से गुजर रहा है। यह तो सभी जानते हैं कि पूरा देश कोरोना नामक महामारी से बीते एक साल से जूझ रहा है। बीते तकरीबन एक साल दो माह के इस दौर में लाखों बेघरबार हुए, लाखों की तादाद में बेरोजगार और लाखों परिवार भूख-प्यास से बेहाल होकर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हुए सो अलग। सैकडो़ं ने बेरोजगारी से तंग परिवार का भरण-पोषण कर पाने में असमर्थ रहने पर आत्महत्या को ही आखिरी रास्ता चुना और लाखों अचानक अनियोजित लाकडाउन की घोषणा के बाद महानगरों से फटे हाल, नंगे पैर भूख-प्यास से बेहाल कैसे भी अपने वतन पहुंचने की चाह के चलते रास्ते में ही मौत के मुंह में चले गये, तो कुछ सड़क हादसे और कुछ वाहनों की चपेट में आने तो कुछ बस-ट्रक पलटने से मौत के मुंह में चले गये। सैकडो़ रेल की चपेट में आये वह अलग। उद्योग धंधे चौपट होने से जहां अर्थ व्यवस्था चौपट हुयी वहीं उद्योगों के मालिक तबाही के कगार पर पहुंच गये, वहीं कंपनियों में कार्यरत कामगार कंपनी-उद्योग बंद होने से दाने-दाने को मौहताज हो गये। छोटे दिहाडी़ मजदूर और घरेलू कामगारों का तो कोई पुरसाहाल तक न था।
एक साल बाद आयी इस दूसरी लहर के लिए भी अगर कोई जिम्मेदार है तो सरकार की लापरवाही, कुप्रबंधन, अदूरदर्शी नीतियां और देश के पंत प्रधान की चुनावी लिप्सा। जाहिर है इसके पीछे उनकी पांच राज्यों में सत्ता हासिल करने की अदम्य लालसा कहें या चाह जिसने कोरोना को परवान चढा़ने में अहम भूमिका निबाही। वह देश में कोरोना के दिनोंदिन सुरसा के मुंह की तरह बढ़ते ग्राफ को नजरंदाज कर केवल और केवल चुनावी रैलियों में मौजूद लाखों की भीड़ देख कर मुग्ध होते रहे और उन रैलियों में लाखों सिरों की गिनती कर यह समझकर गर्व करले कि देश की जनता का भगवान, भाग्य विधाता मैं और केवल मैं ही हूं, कोई और नहीं। यह उसके भ्रम के सिवाय और कुछ भी नहीं है। जबकि रैलियों में लाखों की भीड़ इकट्ठा कर असलियत में उन्होंने कोरोना की भयावहता को और हवा देने का ही काम किया है। वह बात दीगर है कि मद्रास हाईकोर्ट ने इसका ठीकरा चुनाव आयोग पर फोड़ते हुए कहा है कि रैली-दर-रैलियों के आयोजन पर अंकुश न लगा पाने के लिए चुनाव आयोग के अफसरों पर हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए। अदालती मामलों की वेबसाइट लाइव ला के अनुसार कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी ने कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर उभरने के लिए राजनैतिक दलों की चुनावी रैलियों को चुनाव आयोग द्वारा अनुमति दिये जाने पर सख्त फटकार लगाई और कहा कि इसके लिए पूरी तरह चुनाव आयोग जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि लोगों का स्वास्थ्य सबसे अहम है। यह चिंताजनक है कि संवैधानिक अधिकारियों को उनके दायित्व की याद दिलानी पड़ती है। अहम बात यह है कि जब कोई जीवित रहेगा तभी वह संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल कर सकेगा। मुख्य न्यायाधीश ने चुनाव आयोग को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि दो मई हेतु कोरोना प्रोटोकाल सुनिश्चित करने के लिए कार्ययोजना नहीं बनाई तो तत्काल प्रभाव से मतगणना रोक दी जायेगी। यहां एक और बात विचारणीय है कि जैसे ही भाजपा के मुख्य चुनाव प्रचारक प्रधानमंत्री ने रैलियां न करने की घोषणा की वैसे ही चुनाव आयोग ने रैलियों पर प्रतिबंध की घोषणा कर दी। इससे साबित होता है कि चुनाव आयोग सत्ताधारी दल और प्रधानमंत्री के सहायक की भूमिका निबाह रहा है। साथ ही उनपर भी जनसंहार का मुकदमा दर्ज होना चाहिए जो अपनी रैलियों को ऐतिहासिक बता रहे थे और उनको अपनी रैलियों में सिर्फ लोग ही लोग ही दिखाई दे रहे थे।
असली बात तो यह है कि सरकार कोरोना महामारी की भयावहता को छिपा रही है और संक्रमितों का सही आंकडा़ जनता के सामने आने नहीं दिया जा रहा है। अधिकारियों को इस बाबत निर्देश जारी किये गये हैं कि वह वास्तविक आंकडा़ जनता के सामने न आने दें। बीते दिनों कानपुर की घटना इसकी जीती जागती मिसाल है। हुआ यूं कि उस दिन कानपुर में कोरोना संक्रमितों की प्रशासन द्वारा मौतों की तादाद तीन बताई गई जबकि उस दिन कानपुर शहर के गंगा घाटों पर बने शमशानों पर चार सौ छियत्तर कोरोना संक्रमितों का दाह संस्कार हुआ। यह अकेले कानपुर का ही मामला नहीं है बल्कि यह पूरे देश की हालत है। कारण अस्पतालों में न बैड है, न आक्सीजन है, न दवाई न वैंटीलेटर। जो अस्पताल पहुंच भी गया, वह वहां से जिंदा वापस नहीं आता। सर्वत्र हाहाकार है कि अस्पतालों में आक्सीजन नहीं है। आये दिन हजारों मरीजों की आक्सीजन की अनुपलब्धता के चलते मौत हो रही है। विडम्बना यह कि कोई भी राज्य सरकारें आक्सीजन की अनुपलब्धता की बात को सिरे से नकारती हैं। असलियत यह कि आम आदमी तो आम आदमी, सरमायेदार, बडे़ बडे़ आदमी, अधिकारी, पुलिस अधिकारी, नेता, शिक्षाविद, डाक्टर, डाक्टर भी मेडीकल कालेज के बिना आक्सीजन मौत के मुंह में जा रहे हैं। सरकार की इस बाबत नाकामी का सबूत यह है कि बीते साल माह मार्च में ही इस बात के संकेत ही नहीं बल्कि चेतावनी मिलनी शुरू हो गयी थी कि साल 2021 की शुरूआत में ही देश में आक्सीजन की किल्लत का सामना करना पडे़गा। इसके बाबजूद न तो सरकार ने आक्सीजन प्लांट लगाए जबकि अधिकांश राज्यों में आक्सीजन प्लांट तक नहीं हैं। और तो और 80 हजार टन आक्सीजन दूसरे देशों को और भेज दी। इसे सरकार के कारकुरान, कर्णधारों और देश के नीति नियंताओं का मानसिक दिवालियापन ही कहा जायेगा और कुछ नहीं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।