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जानें क्यूँ है बिहार की होली खास……  

"भई,काहे नहीं पीएंगे भांग। साल में तो एक ही बार फगुआ आता है न"

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रंगों का पर्व सुनते ही होली की याद आ जाती है। जो स्वाभाविक भी है। कानों मेें ढ़ोल-झाल की ताल पर फागुन के गीत गुंजने लगते हैं। हवा के संग खेतों में गेंहू की बालें जब इठलाती हैं, तो प्रकृति के खूबसूरत नजारें नयनों को सुखद एहसास कराती हैं। वहीं घी के पूए वातावरण को सुगंधित कर देती है। इसीलिए बिहारियों की होली कुछ अलग ही होती है। उसकी अपनी एक मिठास है जिसमें हंसी-मजाक के साथ-साथ रिश्तों को भी संवारा जाता है। सबके घर में चूल्हा जले इसका भी खास ध्यान रखा जाता है। यही हमें सामाजिक भी बनाता है जो सबसे अच्छी बात है।

होली में सबके यहां पुआ, पुरी, कटहल का दम और दही बड़ा जरूर बनता है। हमारे यहां दो बार होली खेली जाती है। एक सुबह में और दूसरी पारी शुरू होती है अबीर से दोपहर में जिसे गुलाल कहा जाता है, सुबह में लोग नाश्ता करके अपने-अपने घर से रंग खेलने के लिए निकल जाते हैं। धीरे-धीरे एक टोली बन जाती है और घर-घर जाकर एक-दूसरे को इस तरह रंगों से नहला देते हैं कि पहचाना ही मुश्किल हो जाता है। उसके बाद सब नहा धोकर नए कपड़े पहनकर फिर निकलते हैं।

इस दिन लड़के और मर्द कुर्ता पैजामा और धोती कुर्ता पहनते हैं। जबकि औरतें और लड़कियां काॅटन की सारी व सूट पहनती हैं। हाथ में अबीर लेकर घर-घर में जाते हैं और बड़ों के पैर पर लगाते हैं। जबकि छोटे को टीका करते हैं और भौजी, साली, सरहज, जीजा और ननद-भाभी ये लोग एक-दूसरे के साथ जमकर होली खेलते हैं। रात के दस ग्यारह कब बज जाते हैं कि पता ही नहीं चलता है। उस दिन जो लोग मांसाहारी होते हैं। उनके घर में मीट जरूर बनता है। यही एक त्योहार है जिसमें मांस-मछली लोग खाते हैं। इसके अलावा भांग की शर्बत के बिना तो होली ही अधूरी रह जाएगी। जी हां, इस दिन लोग छककर भांग का शर्बत खूब पीते हैं। भई, काहे नहीं पीएंगे। साल में तो एक ही बार फगुआ आता है न।

लेकिन इसबार करोना को ध्यान में रखते हुए सभी अपने-अपने घरों में ही रहें। इससे आप भी सुरक्षित रहेंगे और दूसरे भी। होली के सुअवसर पर आपका यह सहयोग देश के हित के लिए सबसे बड़ा सेवा होगा।


 

dainikindia24X7.com की तरफ से होली की हार्दिक शुभकामनायें।

संध्या रानी

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