मेरे अलफ़ाज़/कवितायुवागिरीसाहित्य

”औरत“

महिला दिवस पर कविता............

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दिलों में बस जाये वो मोहब्बत हूं मैं
कभी बेटी, कभी बहन, कभी मां
हर रूप में ममता की मूरत हूं मैं
मेरे आंचल से मांगा है आसमान ने आसरा
चांद-सितारों ने रौनक भी यहीं से पायी है
मैं मुस्कुराई तो महक गया गुलशन सारा
मेरे रोने से मची इस दुनिया में तबाही है
मैंने पलकें उठाई तो हुआ सवेरा
झुकाई तो शाम संग घिर आता है अंधेरा
खड़ी हो जाऊं तो चट्टान हूं मैं
चल पड़ूं तो तूफान हूं मैं
सब्र की मिसाल हूं मैं
हर रिश्ते को ज़िंदा रखती
खुद जलती मशाल हूं मैं
अपने हौसले से जो तकदीर को बदल दे
कुदरत का ऐसा नायाब करिश्मा हूं मैं
(जी-हां) मुझे फक्र है कि
एक ”औरत“ हूं मैं

-अंजू सागर भंडारी

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