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“अब पीछे लौटकर देखने वाली नहीं हैं महिलाएं”

सदियों से महिलाएं त्याग की मूर्ति रही हैं। उनसे ही घर आंगन संवरता रहा है और पारिवारिक व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहती है

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अभी हाल ही में डाॅ.भगवतीषरण मिश्र की किताब विष्णुचरित्रम आई है। इसमें विष्णु के विभिन्न अवतारों पर प्रचुर प्रकाश डाला गया है। अभी तक वे छोटी-बड़ी मिलाकर 80 से अधिक किताबें लिख चुके हैं। देश के अनेक विश्वविद्यालयों में इनकी किताबों पर पीएच.डी और एम.फिल होते हैं। उनकी कृतियों में पवनपुत्र, काके लागूं पांव और प्रथम पुत्र सहित अनेक किताबें प्रसिद्ध हैं। वे हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी में भी लिखते हैं। उन्होंने गीता का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। इसके अलावा वे कई भाषाओं के जानकार हैं। उनकी कहानियां लोकप्रिय बाल पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा से रिटायर और अनेक पुरस्कारों से सम्मानित पौराणिक उपन्यासकार डाॅ मिश्र से महिलाओं के बारे में पुरषों का क्या है नज़रिया जानने के लिए संध्या रानी ने खास की बातचीत …

महिलाएं अब पहले से ज्यादा एडवांस हो गई हैं। वे पुरूषों से कंधे से कंधे मिलाकर चल रही हैैं। पहले घर का ही काम करती थीं। अब बाहरी कामकाज पर भी ध्यान देने लगी हैं। आस-पड़ोस से भी उनका संपर्क पहले से अधिक बढ़ा है। अब वे मात्र घर की चारदीवारियों में बंधने वाली नहीं हैं।

महिलाओं से भेदभाव तो जमाने से हो रहा है। यह कोई नई बात नहीं है। महिलाओं को द्वितीय श्रेणी की नागरिक मानने की प्रथा बहुत पुरानी है। आज महिलाओं में जब पहले की अपेक्षा शिक्षा का अधिक प्रचार-प्रसार हुआ है तो उनके संबंध में अब यह विचार बहुत हद तक परिवर्तित हुआ है।

आर्थिक रूप से मजबूत होने से ही उनमें स्वार्थ की भावना का विकास हुआ। इसीलिए उनमें पहले की अपेक्षा आक्रामकता अधिक दृष्टिगोचर हो रही है। महिलाएं पूर्व में प्रायः घर के आंगन में ही सीमित रहती थीं। आज उनमें शिक्षा का विकास हुआ है। इसके फलस्वरूप अब वे प्रागंण में केंद्रित रहने वाली अबला नहीं रही है। उन्होंने दुनिया देखी है। देश विदेश की बातें अब वे जानने लगी हैं। हर जगह परिवर्तन की हवा बह रही है। इसने पहले की अपेक्षा अधिक प्रभावित किया है। इससे आज आंतरिक एवं बाह्य विकास भी हुआ है जो सर्वथा स्वागत के योग्य है। महिलाएं अब पीछे लौटकर देखने वाली नहीं हैं। अगर कोई ऐसा सोचता है तो  निश्चय ही भ्रम का शिकार है। यह स्वागत योग्य घटना है। इसमें समाज व देश का विकास निश्चय ही निहित है।

इतना सब कुछ प्राप्त करने के बाद भी महिलाएं अवश्य ही असुरक्षा की शिकार हैं। इसके लिए सरकारों को आगे आना पड़ेगा और आवश्यक व्यवस्था सुनिश्चित करनी पड़ेगी। इसमें दो मत नहीं कि कानूनी प्रावधान की भी आवश्यकता पड़ेगी। यह पहले से भी उपलब्ध है लेकिन पर्याप्त नहीं है। महिलाएं त्याग की मूर्ति रही हैं। उनसे घर आंगन संवरता रहा है और पारिवारिक व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहती है। उनमें स्वाभाविक रूप से पुरूषों के अपेक्षा संवेदना अधिक होती है। उन्हें इन सब गुणों की पूर्वापेक्षा अधिक विकसित करना होगा।

तस्वीरें:-भूपिंदर सिंह

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