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“अपने घर में बुजुर्गों को सम्मान दें”

जिस दिन महिलाएं सहन करना बंद कर देंगी उसी दिन घर बिखर जाएगा

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बहूमुखी प्रतिभा की धनी जानी-मानी चित्रकार, लेखक, पत्रकार और डिजाइनर डाॅ. अलका रघुवंशी  ने रंगों की ललक की वजह से पेंटिंग की शुरुआत कीं। फिर उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और अपने चित्रों की प्रदर्शनी देश विदेश में कई जगह लगाईं। वे टाइम्स ऑफ इंडिया, द इंडियन एक्सप्रेस,पॉयनियर ,बीबीसी कई जगह काम कर चुकी हैं। आज भी वह एशियन ऐज के लिए लेख लिखती हैं। इसके अलावा अभी तक वे 26 किताबें लिख चुकी हैं। वे साड़ी भी डिजाइन करती हैं। उनके लिए ये सारे काम इश्क के जैसा है। इस काम को इश्कऔर इष्ट मानने वाली अलका रघुवंशी से संध्या रानी की एक खास मुलाकात………………

अब संयुक्त परिवार लगभग खत्म हो गए हैं और ज्यादातर एकल परिवार हो गए हैं। आर्थिक रूप से मजबूत होने के बावजूद भी घर और बच्चे की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही होती है। उन्हें बच्चे पालने के अलावा पीटीएम में भी जाना पड़ता है और होम वर्क भी करवाना पड़ता है। इसके लिए पिता जिम्मेदार नहीं होता है। वे घर और बाहर दोनों तरफ से पिसती हैं। जबकि कानून औरतों के प्रति बहुत सहयोगी रहा है और यह सपोर्ट होना ही सबसे बड़ी बात है। हमारे देश की महिलाओं को दुनिया के मुकाबले अधिक सुविधाएं मिली हैं। यहां सभी को एक जैसी सैलरी दी जाती है। इसमें कोई भेदभाव नहीं किया जाता है।

यह बहुत बड़ी सच्चाई है कि जिस दिन महिलाएं सहन करना बंद कर देंगी उसी दिन घर बिखर जाएगा। विकट परिस्थिति में भी महिलाएं अपना घर तोड़ना नहीं चाहती है। जहां तक हो सकता है हमारे सामाजिक दायरें बांधती भी हैं और प्रोटेक्ट करना चाहती है।

घरेलू हिंसा तो थमने का नाम ही नहीं ले रही है। मर्द औरत से अधिक शक्तिशाली होता है और इसी का वह नाजायज फायदा उठाता है। इसीलिए वह मारपीट पर उतारू हो जाता है। पहले परिवार में बुजुर्गों का सम्मान था। अगर घर में कोई इस तरह की बात होती थी तो वे संभाल लेते थे और उनसे सब ड़रते भी थे। लेकिन अब पहले जैसी बात नहीं रह गई है। न समाज का डर है और न अपने सगे संबंधियों का। पुलिस वाले भी बोलते हैं कि आपस का मामला है खुद ही सल्टा लो।

एकल परिवार में हर टेंशन को वे अपने घर लेकर आ जाते हैं। अगर औरत और आदमी को साथ रहना है तो एक-दूसरे को सम्मान देना होगा। पुरूषों को भी जागरूक होना पड़ेगा। महिलाएं पुरूषों की अपेक्षा अधिक काम करती हैं। इसलिए उनको सम्मान जरूर देना चाहिए। एक बार सीईओ इंदिरा नुई ने कहा था कि बच्चे को पालने में मेरे माता-पिता ने बहुत मदद की। कभी सास छह महीना रहती थीं तो कभी मां।

महिला और पुरूष दोनों को समझना होगा कि इस दुनिया में जीना है तो जियो और जीनो दो को आत्मसात करना है। इसी में दोनों की भलाई है। जब तक दोनों नहीं समझेंगे तब तक गाड़ी पटरी पर अच्छे से नहीं चलेगी। एकल परिवार में होने की वजह से महिलाओं को बच्चा होने के बाद अपनी नौकरी भी छोड़नी पड़ती है तब सवाल यह उठता है कि फिर इतनी पढ़ाई करने की जरूरत क्या थी। एक सीट तो बर्बाद हुआ। इससे किसी का तो भला हो जाता। महिलाएं पढ़-लिखकर अपने सपने को सच करना चाहती हैं, पर जिंदगी की सच्चाई कुछ अलग ही होती है। इसे सभी को स्वीकार करने में ही भलाई है।

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